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६१९४.ओवुज्झंती व भया, संफासा रागतो व खिप्पेज्जा।
संबंधत्थविहिण्णू, वदंति संबंधमेयं तु॥ पानी में बहती हुई साध्वी भय से क्षिप्तचित्त हो जाती है, अथवा संस्पर्श से, राग से क्षिप्तचित्त हो जाती है संबंधार्थ विधिज्ञ आचार्य प्रस्तुत सूत्र में यह संबंध बताते हैं। ६१९५.रागेण वा भएण व, अहवा अवमाणिया णरिदण। ___एतेहिं खित्तचित्ता, वणिताति परूविता लोए॥
क्षिप्तचित्त होने के ये कारण हैं-राग, भय अथवा राजा से अपमानित होने पर। लोक में उदाहरणरूप में वणिग आदि प्ररूपित हैं। राग से-एक वणिग् भार्या पति का मरण सुनकर क्षिप्तचित्त हो गई। ६१९६.भयओ सोमिलबडुओ, सहसोत्थरिया य संजुगादीसु। __णरवतिणा व पतीण व, विमाणिता लोगिगी खेत्ता॥
भय से सोमिल नामक ब्राह्मण क्षिसचित्त हो गया। संग्राम आदि में सहसा शत्रु-सेना से गृहीत मनुष्य क्षिप्तचित्त हो जाते हैं। राजा से या पति से अपमानित स्त्री क्षिप्तचित्त हो जाती है। ये सारे लौकिक क्षिप्तचित्त के उदाहरण हैं। ६१९७.रागम्मि रायखुड्डी, जड्डाति तिरिक्ख चरिय वातम्मि।
रागेण जहा खेत्ता, तमहं वोच्छं समासेणं॥ राग से क्षिसचित्त का उदाहरण है राजक्षुल्लिका का। हाथी आदि तिर्यंच प्राणी के भय से तथा बाद में चरिका से पराजित निर्ग्रन्थी क्षिप्तचित्त हो जाती है। राग से जैसे राजक्षुल्लिका क्षिप्तचित्त हुई, वह मैं संक्षेप में कहूंगा। ६१९८.जियसत्तू य णरवती, पव्वज्जा सिक्खणा विदेसम्मी।
काऊण पोतणम्मि, सव्वायं णिव्वुतो भगवं॥ ६१९९.एक्का य तस्स भगिणी,रज्जसिरिं पयहिऊण पव्वइया।
___ भातुयअणुराएणं, खेत्ता जाता इमा तु विही॥
जितशत्रु राजा ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। स्थविर मुनि के पास उसने शिक्षा प्रास की और कालान्तर में विदेश चला गया। पोतनपुर में परतीर्थिकों के साथ सद्वाद किया। जैन शासन की प्रभावना कर वह भगवान् मुनि निर्वृत हो गया, मोक्षपद को प्रास कर लिया।
जितशत्रु राजा की भगिनी राज्यश्री को छोड़कर प्रवजित हो गई। कालान्तर में उसने सुना कि उसके मुनि भाई की मृत्यु हो गई है। वह भाई के अनुराग से क्षिप्तचित्त हो गई। क्षिप्सचित्त को स्वस्थ करने की यह विधि है६२००.तेलोक्कदेवमहिता, तित्थगरा णीरता गता सिद्धिं।
थेरा वि गता केई, चरण-गुणपभावगा धीरा॥ उसको आश्वासन देते हुए कहना चाहिए-त्रिभुवन के
बृहत्कल्पभाष्यम् देवों से पूजित तीर्थंकर भी नीरजा होकर सिद्धि को प्राप्त हो गए। चरणगुणप्रभावक कुछ धीर स्थविर भी सिद्धि में चले गए। ६२०१.बंभी य सुंदरी या, अन्ना वि य जाउ लोगजेट्ठाओ।
ताओ वि अ कालगया, किं पुण सेसाउ अज्जाओ।। ब्राह्मी, सुन्दरी तथा अन्य लोकज्येष्ठ साध्वियां भी कालगत हो गईं तो फिर शेष आर्यिकाओं की बात ही क्या? ६२०२.न हु होति सोतियव्वो, जो कालगतो दढो चरित्तम्मि।
सो होति सोतियव्वो, जो संजमदुब्बलो विहरे॥ वह शोचनीय नहीं होता अर्थात् उसके पीछे शोक नहीं मनाया जाता जो चारित्र को दृढ़तापूर्वक पालन करता हुआ कालगत होता है। वह शोचनीय होता है जो संयम पालन में दुर्बल होकर विहरण करता हुआ कालगत होता है। ६२०३.जो जह व तह व लद्धं, भुंजति आहार-उवधिमादीयं।
समणगुणमुक्कजोगी, संसारपवडतो होति॥ जो मुनि यथातथा प्रास आहार, उपधि आदि का परिभोग करता है, वह श्रमणगुणों से मुक्त योगी संसार को बढ़ाने वाला होता है। वह शोक करने योग्य होता है। (हे आर्ये! तुम्हारा भाई तो चारित्र का दृढ़ता से पालन करता हुआ कालगत हुआ है। उसके विषय में शोक करना व्यर्थ है।) ६२०४.जड्डादी तेरिच्छे, सत्थे अगणीय थणिय विज्जू य। ___ओमे पडिभेसणता, चरियं पुव्वं परूवेडं।
हाथी, सिंह आदि तिर्यंच प्राणियों के भय से, शस्त्र, अग्नि, स्तनित, विद्युत् आदि के भय से जो क्षिसचित्त होती है उसको स्वस्थ करने की विधि यह है-उस क्षिसचित्त साध्वी से छोटी साध्वी को तैयार कर सिंह आदि को डराने का उपक्रम कराने से क्षिसचित्त साध्वी भयमुक्त हो जाती है। इसी प्रकार वाद में पराजय होने के कारण क्षिप्तचित्त हुई साध्वी के सम्मुख उस चरिका को पहले बताकर लाया जाए और उससे स्वयं के पराजित होने की बात कहलाई जाए तो वह साध्वी स्वस्थ हो सकती है। ६२०५.अवहीरिया व गुरुणा, पवत्तिणीए व कम्मि वि पमादे।
वातम्मि वि चरियाए, परातियाए इमा जयणा।। कोई साध्वी आचार्य के द्वारा उपालब्ध होने पर अथवा प्रवर्तिनी के द्वारा किसी प्रमाद में शिक्षित किए जाने पर अथवा चरिका द्वारा वाद में पराजित होने पर अपमानित होकर क्षिप्तचित्त हो जाती है। भय से क्षिप्तचित्त उस साध्वी के लिए यह यतना है।
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