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________________ विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय कालमर्यादा। ५०३३,५०३४ पारांचिक आचार्य की स्वगण से जाने की विधि और परगण में जाने का कारण। ५०३५ पारांचिक आचार्य की सामाचारी। ५०३६-५०४० कालपारांचिक आचार्य जिस आचार्य की निश्रा में प्रायश्चित्त का वहन करे उस आचार्य की कालपारांचिक आचार्य के प्रति संवेदना-व्यवहार आदि का निरूपण। ५०४१ वे कारण जिनसे आचार्य कालपारांचिक आचार्य के पास नहीं जा सकते। ५०४२ वे कार्य जिनके कारण आचार्य कालपारांचिक आचार्य के पास नहीं जा सकते। ५०४३ स्वयं आचार्य के न जा पाने पर उपाध्याय और गीतार्थ मुनि को वहां भेजने की विधि और पूछे या न पूछे जाने पर भी आचार्य के अनागमन का कारण जताने का निर्देश। ५०४४ उपाध्याय द्वारा पारांचिक के माहात्म्य को प्रकट करने की विधि। ५०४५ संघ की महिमा का प्रतिपादन। ५०४६-५०५४ पारांचिक मुनि द्वारा राजा को समझाने की विधि। राजा के समझने पर प्रतिबंधितों का विसर्जन, संघपूजा और राजा की प्रार्थना से प्रायश्चित्त वहन करने वाले पारांचिक मुनि की प्रायश्चित्त से मुक्ति। संघ रक्षण से उसकी निर्दोषता। ५०५५-५०५७ देश, देश-देश प्रायश्चित्त का स्वरूप और काल मर्यादा। संघ के पास प्रायश्चित्त वहन करवाने अथवा विसर्जित करने का अधिकार। सूत्र ३ ५०५८ अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त उपाध्याय विषयक विशोधि का हेतु है। ५०५९ अनवस्थाप्य के दो प्रकार। प्रत्येक के दो-दो भेद। ५०६०,५०६१ तीर्थंकर, प्रवचन, श्रुत आदि की आशातना करने पर आने वाले भिन्न-भिन्न प्रायश्चित्त। ५०६२ प्रतिसेवना अनवस्थाप्य के तीन प्रकार। ५०६३ साधर्मिक स्तैन्य का स्वरूप और उससे संबंधित प्रायश्चित्त। ५०६४-५०६७ उपधि स्तैन्य का स्वरूप। तद्विषयक प्रायश्चित्त कब, कहां और किसको? ५०६८ गुरु द्वारा उपधि लाने के लिए भेजे गए शिष्य द्वारा गाथा संख्या विषय यदि बाहर ही उसका विभाजन कर उसे ग्रहण कर लेने पर प्रायश्चित्त। वस्त्र गुरु को न देने पर प्रायश्चित्त। ५०६९,५०७० वस्त्र ग्रहण के लिए आचार्य को निमंत्रण। निषेध करने पर वस्त्र के प्रति लुब्ध साधु द्वारा माया पूर्वक ग्रहण कर लेने पर दोष तथा तन्निष्पन्न अप्रीति और प्रायश्चित्त। ५०७१ उपधि दग्ध हो जाने पर प्रलुब्ध शिष्य स्वयं यदि श्रावक के घर से गुरु के दिए बिना उपधि को ग्रहण करता है तो प्रायश्चित्त। गुरु द्वारा उपधि न देने पर प्रायश्चित्त। ५०७२ आचार्य द्वारा उत्कृष्ट पात्र दिए जाने पर यदि शिष्य उसमें लुब्ध होकर उसे लेना चाहे और निर्दिष्ट आचार्य को नहीं दे तो प्रायश्चित्त। ५०७३-५०८४ ससहायक-असहायक शैक्ष-शैक्षिका के अपहरण के प्रकार। उनसे लगने वाला दोष तथा तन्निष्पन्न प्रायश्चित्त। शैक्ष-अपहरण के आपवादिक कारण। ५०८५ स्थापनागृह का अर्थ। बिना आज्ञा के तथा मायापूर्वक वहां गोचरी जाने पर प्राप्त होने वाले नाना प्रायश्चित्त। ५०८६ गुरु की आज्ञा के बिना स्थापनाकुलों में जाने तथा श्राद्ध लोगों को भ्रम में डालने पर प्रायश्चित्त का विधान। ५०८७ विपरिणत श्राद्ध द्वारा आचार्य, ग्लान, क्षपक, प्राघूर्णक, बाल-वृद्धों के लिए प्रायोग्य द्रव्य न देने पर मुनि को प्राप्त होने वाला प्रायश्चित्त। ५०८८ परधार्मिक के दो प्रकार। उनके स्तैन्य के तीन तीन प्रकार। ५०८९-५०९५ आहार, उपधि तथा सचित्त के विषय में शिष्य शिष्यों से संबंधित स्तैन्य का स्वरूप। उनसे लगने वाला प्रायश्चित्त तथा अपवाद। ५०९६ गृहस्थविषयक स्तैन्य के तीन प्रकार। उनका आहार आदि का स्तैन्य करने पर लगने वाले दोष। ५०९७ आहार विषयक स्तैन्य का एक प्रकार। ५०९८ माता पिता आदि निज पुरुषों की आज्ञा के बिना अप्राप्तवय पुरुष को दीक्षित करना भी स्तैन्य का एक प्रकार। ५०९९ बिना आज्ञा स्त्री को प्रवजित नहीं किया जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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