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=बृहत्कल्पभाष्यम् मर गई। पुत्र माता की अस्थियां गंगा नदी पर ले गया। इधर ५९४५.आयावणा य तिविहा, उक्कोसा मज्झिमा जहण्णा य। श्वसुर और स्नुषा-दोनों हास्यक्रीड़ा कर रहे थे। निर्लज्जता उक्कोसा उणिवण्णा, णिसण्ण मज्झा ठिय जहण्णा॥ से दोनों निश्रेणी पर चढ़कर अभिप्रायपूर्वक परस्पर आतापना के तीन प्रकार हैं-उत्कृष्ट, मध्यम और विकृष्टतर पैर प्रहार करते हुए एक दूसरे का योनिघात कर जघन्य। उत्कृष्ट है-निपन्न, मध्यम है-निषण्ण, जघन्य हैडाला। दोनों नष्ट हो गए। इस प्रकार निर्लज्जता से विनाश खड़े रहना। हो गया।
५९४६.तिविहा होइ निवण्णा, ओमत्थिय पास तइयमुत्ताणा। ५९४३.पायासइ तेणहिए, झामिय बूढे व सावयभए वा। उक्कोसुक्कोसा उक्कोसमज्झिमा उक्कोसगजहण्णा॥
बोहिभए खित्ताइ व, अपाइया हुज्ज बिइयपदे॥ निपन्न आतापना के तीन प्रकार हैं-उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, द्वितीयपद-पात्र के अभाव में, स्तेन द्वारा हृत हो जाने उत्कृष्टमध्यम, उत्कृष्टजघन्य। ओंधे मुंह लेटकर की जाने पर, अग्नि में जल जाने पर, जलप्रवाह में बह जाने पर, वाली उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, पार्श्वतः लेटकर की जाने वाली श्वापद और बोधिक स्तेन का भय होने पर शीघ्र ही पात्रों उत्कृष्टमध्यम और खड़े होकर की जाने वाली तीसरी को छोड़कर भाग जाने पर, वह द्वितीयपद में पात्ररहित आतापना है-उत्कृष्टजघन्य। होती है।
५९४७.मज्झुक्कोसा दुहओ, वि मज्झिमा मज्झिमाजहण्णा य। नो कप्पइ निग्गंथीए वोसट्ठकाइयाए
अहमुक्कोसाऽहममज्झिमा य अहमाहमा चरिमा।
निषण्ण की जो मध्यम आतापना है उसके तीन प्रकार होत्तए॥
हैं-मध्यम-उत्कृष्ट, मध्यम-मध्यम और मध्यम-जघन्य।
(सूत्र १८) जघन्य आतापना के भी तीन प्रकार हैं-अधम उत्कृष्ट, ५९४४.वोसट्ठकाय पेल्लण-तरुणाई गहण दोस ते चेव।
अधममध्यम और अधम-अधम। यहां अधम शब्द जघन्य दव्वावइ अगणिम्मि य, सावयभय बोहिए बितियं॥
वाचक है। आर्यिका को व्युत्सृष्टकाय' होना नहीं कल्पता। क्योंकि
५९४८.पलियंक अद्ध उक्वडुग,मो य तिविहा उ मज्झिमा होइ। वह तरुणों द्वारा प्रेरित होती है, गृहीत होती है तथा पूर्वोक्त
तझ्या उ हत्थिसुंडेगपाद समपादिगा 'चेव॥ दोष होते हैं। द्वितीय पद में अर्थात् द्रव्य आपदा में, अग्नि के
मध्यम आतापना के तीन प्रकार हैं-मध्यम-उत्कृष्ट संभ्रम से, श्वापद तथा बोधिक का भय होने पर आर्यिका
पर्यकासनसंस्थित, मध्यम-मध्यम अर्द्धपर्यंक, मध्यम-जघन्य व्युत्सृष्टकाय भी हो सकती है।
उत्कटिक। तीसरे प्रकार की आताफ्ना अर्थात् खड़े-खड़े की
जाने वाली के तीन भेद कहे गए हैं-जघन्य-उत्कृष्ट नो कप्पइ निग्गंथीए बहिया गामस्स
हस्तिशुंडिका, जघन्य-मध्यम एकपादिका, जघन्य-जघन्यवा जाव सन्निवेसस्स वा उर्ल्ड बाहाओ समपादिका। पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहीए ५९४९.सव्वंगिओ पतावो, पताविया घम्मरस्सिणा भूमी। एगपाइयाए ठिच्चा आयावणाए
_ण य कमइ तत्थ वाओ, विस्सामो णेव गत्ताणं॥
निपन्न (शयित) की आतापना उत्कृष्ट होती है, क्योंकि आयावेत्तए॥
उसमें सर्वांगीण ताप लगता है। सूर्य की धर्मरश्मियों से भूमी (सूत्र १९)
प्रतापित हो जाती है। वहां वायु का प्रचार नहीं होता। शरीर कप्पइ से उवस्सयस्स अंतोवगडाए के अंगों को विश्राम नहीं मिलता। संघाडिपडिबद्धाए पलंबियबाहियाए ५९५०.एयासी णवण्हं पी, अणुणाया संजईण अंतिल्ला। समतलपाइयाए ठिच्चा आयावणाए
सेसा नाणुन्नाया, अट्ठ तु आतावणा तासिं॥ आयावेत्तए॥
इन नौ प्रकार की आतापनाओं में से अंतिम आतापना
अर्थात् समपादिका आतापना आर्यिकाओं के लिए अनुज्ञात (सूत्र २०)
है। शेष आठ आतापनाएं उनके लिए अनुज्ञात नहीं हैं। १. कथानक के लिए देखें कथा परिशिष्ट, नं. १३६ । २. मुझे दिव्य उपसर्ग सहन करने हैं'-इस अभिग्रह से शरीर का व्युत्सर्ग कर अभिनव कायोत्सर्ग में स्थित होना। (वृ. पृ. १५६७)
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