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________________ पांचवां उद्देशक = = ६१५ पूर्वसूत्र में आहारविधि का निरूपण किया गया है। यह द्रव्य के चार प्रकार हैंअन्य पानकविधि का सूत्रारंभ किया जाता है। आहार के सूत्र १. उष्ण-शीत ३. उष्ण-उष्ण में काय-चतुष्क का ग्रहण किया गया है-प्राणग्रहण से त्रस, २. शीत-उष्ण ४. शीत-शीत। बीजग्रहण से वनस्पति, रजोग्रहण से पृथ्वी और अग्निकाय। चाउलोदक, चंदन और घृत-ये शीत-शीत होते हैं। प्रस्तुत सूत्र में भी कायचतुष्क-शीतोदक अप्काय, उष्णोदक ५९०३.आयाम अंबकंजिय, अग्निकाय, नालिकेरपानक आदि वनस्पतिकाय, दुग्ध-त्रस जति उसिणाणुसिण तो विवागे वी। काय। पानक में भी ये चार काय हैं। उसिणोदग-पेज्जाती, ५८९८.परिमाणे नाणत्तं, दगबिंदुं दगरयं वियाणाहि। उसिणा वि तणुं गता सीता। सीभरमो दगफुसितं, सेसं तु दगं दव खरं वा॥ आयाम, अम्लकांजी-ये यदि उष्ण हैं तो इनका विपाक इनके परिमाण में नानात्व है। दक बिन्दु को दकरज भी उष्ण ही होता है, उष्णोदक-पेय आदि द्रव्य उष्ण होने पर जानो। सीभर को दकस्पर्शित जानो। शेष जो प्रभूत उदक है भी शरीर में जाकर शीत हो जाते हैं। उसे दक कहते हैं। वह द्रव या खर कहलाता है।' ५९०४.सुत्ताइ अंबकंजिय-घणोदसी-तेल्ल-लोण-गुलमादी। ५८९९.एमेव बितियसुत्ते, पलोगणा गिण्हणे य गहिते य। सीता वि होति उसिणा, दुहतो वुण्हा व ते होंति।। __ अणभोगा अणुकंपा, पंतत्ता वा दगं देज्जा॥ सुत्त-मदिराखोल, अम्लकांजी, अम्लघनविकृति पूर्वसूत्र से यह द्वितीय सूत्र है। पानक को ग्रहण करते या अम्ल-तक्र, तैल, लवण, गुड़ आदि-ये द्रव्य शीत होने पर ग्रहण कर लेने पर प्रत्युपेक्षण करना चाहिए। उदक तीन भी उष्ण परिणाम वाले होते हैं। ये सारे द्वितीय भंग में कारणों से दिया जाता है-अनाभोग-विस्मृति के कारण, आते हैं। तृतीय भंग में उष्ण और उष्ण परिणाम वाले द्रव्य अनुकंपावश, प्रत्यनीकता से। आते हैं। ५९००.सुद्धम्मि य गहियम्मी, पच्छा णाते विगिंचए विहिणा। ५९०५.परिणामो खलु दुविहो, कायगतो बाहिरो य दव्वाणं। मीसे परूविते उण्ह-सीतसंजोग चउभंगो॥ सीओसिणत्तणं पि य, आगंतु तदुब्भवं तेसिं॥ ___ यदि वह उदक शुद्ध पात्र में लिया गया है, फिर ग्रहण परिणाम दो प्रकार का है-कायगत और बाह्य। यह द्रव्यों करने के पश्चात् यह ज्ञात हुआ कि यह शुद्ध नहीं है तो का परिणाम है। शरीर में आहारित द्रव्यों का जो शीत आदि विधिपूर्वक उसका परिष्ठापन कर दे। मिश्र अर्थात् पात्र में परिणाम होता है वह कायगत है और जो आहारित द्रव्यों का पहले उष्ण द्रव लिया हुआ है, पश्चात् पानी ले लिया गया, मूल परिणाम है वह बाह्य है। बाह्य परिणाम दो प्रकार का वह मिश्र कहलाता है। उष्ण-शीत के संगम से चतुर्भंगी है-शीत या उष्ण। वह भी दो प्रकार का है-आगंतुक और होगी। तद्उदभव। ५९०१.तत्थेव भायणम्मी, अलब्भमाणे व आगरसमीवे। ५९०६.साभाविया व परिणामिया व सीतादतो तु दव्वाणं। सपडिग्गहं विगिंचइ, अपरिस्सव उल्लभाणे वा॥ असरिससमागमेण उ, णियमा परिणामतो तेसिं॥ रिक्त पात्र में जो उदक लिया उसके परिष्ठापन की यह द्रव्यों के शीत आदि पर्याय स्वाभाविक या परिणामिक विधि है। गृहस्थ ने जिस भाजन से वह उदक दिया है, उसी होते हैं। असदृशसमागम से नियमतः उन द्रव्यों का में उसको डाल दे। यदि गृहस्थ उस पात्र में न डालने दे तो परिणाम-पर्यायान्तर होता है। उसे आकर के समीप जाकर उसकी परिष्ठापना कर दे। या ५९०७.सीया वि होति उसिणा, पात्र सहित उसको वृक्ष की छाया में रख दे। यदि अन्य पात्र उसिणा वि य सीयगं पुणरुवेंति। न हो तो अपरिस्रावी आर्द्र भाजन में डाल दे। दव्वंतरसंजोगं, ५९०२.दव्वं तु उण्हसीतं, सीउण्हं चेव दो वि उण्हाई। कालसभावं च आसज्ज॥ दुण्णि वि सीताई चाउलोद तह चंदण घते य॥ द्रव्यान्तर के संयोग से तथा काल-स्वभाव से शीत द्रव्य १. कांजिक और पानी का पात्र पास-पास रखे हुए हैं। कोई विस्मृतिवश कांजिक के बदले पानी दे देता है। ग्रीष्म का समय। अनुकंपावश शीतल पानी दे देता है। कोई प्रत्यनीकता से जानबूझकर कांजिक के बदले पानी दे देता है। २. सुत्त-मदिरा खोल यह देशविशेष में प्रसिद्ध कोई द्रव्य-विशेष। (वृ. पृ. १५५७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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