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बृहत्कल्पभाष्यम् वर्णित मर्यादा का उल्लेख हुआ है। यदि स्थलगत मार्ग में प्रद्वेष को प्राप्त हो सकते हैं। अथवा वे निवर्तमान या तट पर पानी हो तो उसके लिए प्रस्तुत सूत्र है।
बैठे हुए हरित आदि की विराधना करते हैं अथवा स्तेनों या ५६१९.इमाउ त्ति सुत्तउत्ता, उहिट्ठ नदीउ गणिय पंचेव। श्वापदों से उपद्रव को पाते हैं, वे दूसरी नौका प्रवाहित करते
गंगादि वंजिताओ, बहुओदग महण्णवातो तू॥ हैं या अन्य नौका का क्रय करते हैं इनसे निष्पन्न प्रायश्चित्त प्रस्तुत सूत्र में गिनती की ये पांच नदियां उदिष्ट हैं। गंगा के वे भागी होते हैं। आदि पदों से ये अभिव्यंजित हैं। ये बहुजला और महार्णव ५६२५.मज्जणगतो मुरुंडो, णावं दट्टण अप्पणा णेति। कहलाती हैं। (गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका, मही ये पांच कहिगा जति अक्खेवा, तति लहुगा मग्गणा पच्छा। नदियां हैं)
स्नान करते हुए मुरुंड राजा ने साधुओं को देखा और ५६२०.पंचण्हं गहणेणं, सेसा वि उ सूइया महासलिला। स्वयं नौका लेकर गया। नौका में आरूढ़ होकर साधु कथा
तत्थ पुरा विहरिंसु य, ण य तातो कयाइ सुक्खंति॥ करने लगा। उस समय नौका चलाने में चप्पू के जितने __ इन पांचों के ग्रहण से शेष महासलिला-बहुजल वाली आक्षेप होते हैं उतने चतुर्लघु का प्रायश्चित्त आता है। पश्चात् नदियां सूचित की गई हैं। ये पांच नदियां जहां प्रवाहित होती राजा ने साधुओं को अन्तःपुर में कथा करने के लिए हैं, उन क्षेत्रों में मुनियों ने पहले विचरण किया था। ये नदियां प्रार्थना की। कभी सूखती नहीं, इसलिए इसका ग्रहण हुआ है।
५६२६.सुत्त-ऽत्थे पलिमंथो, णेगा दोसा य णिवघरपवेसे। ५६२१.पंच परूवेतुणं णावासंतारिमे . उ जं जत्थ।
सइकरण कोउएण व, भुत्ता-ऽभुत्ताण गमणादी॥ उत्तरणम्मि वि लहुगा, तत्थ वि आणाइणो दोसा।। वहां जाने पर ये दोष होते हैं सूत्रार्थ का पलिमंथ, . इन पांचों नदियों की प्ररूपणा करके जो नदी जिस देश में स्मृतिकरण, कौतुक, भुक्त-अभुक्त भोगों की स्मृति, प्रतिगमन जिस रूप में प्रवाहित हो उसका वर्णन करना चाहिए। जो आदि अनेक दोष नृपगृह में प्रवेश करने पर होते हैं। नौका द्वारा पार की जाती हो, उसको पार करने पर षट्काय ५६२७.वुब्भण सिंचण बोलण, विराधना का निष्पन्न प्रायश्चित्त आता है। जंघा आदि से
कंबल-सबला य घाडितिनिमित्तं। उत्तरण हो, संतरण रूप हो तो चतुर्लघु का प्रायश्चित्त और
अणुसट्टा कालगता, आज्ञाभंग आदि दोष निष्पन्न होते हैं।
णागकुमारेसु उववण्णा॥ ५६२२.अणुकंपा पडिणीया, व होज्ज बहवो उ पच्चवाया ऊ। कोई प्रत्यनीक साधुओं को नौका वाहन, सिंचन, जल में
___ एतेसिं णाणत्तं, वोच्छामि अहाणुपुवीए। डुबोना आदि करता है। यहां एक दृष्टांत है-मथुरा में
नौका आदि से नदी पार करने पर अनुकंपादोष, भंडीरयक्ष की यात्रा में कंबल-शबल नाम के दो बैलों को प्रत्यनीकदोष तथा अनेक प्रत्यवाय-आपत्तियां आती हैं। मित्र जिनदास को पूछे बिना वाहन में जोत दिया। उससे इनका नानात्व मैं क्रमशः कहूंगा।
वैराग्य को प्राप्त होकर दोनों बैल श्रावक द्वारा अनुशिष्टि ५६२३.छुभणं जले थलातो, अण्णे वोयारिता छुभति साहू। प्राप्त कर भक्त-प्रत्याख्यान से मृत्यु को प्राप्त कर नागकुमार
ठवणं व पत्थिताए, दटुं णावं व आणेती॥ देव में उत्पन्न हुए। साधु नदी पार करना चाहता है, यह जानकर नाविक, ५६२८.वीरवरस्स भगवतो, नावारूढस्स कासि उवसग्गं। अनुकंपा वश नौका को स्थल से नदी के जल में उतारता है मिच्छद्दिट्ठि परद्धो, कंबल-सबलेहिं तारिओ भगवं॥ अथवा दूसरे यात्रियों को उतार कर साधु को नौका में जब भगवान् महावीर नावारूढ़ होकर जा रहे थे, तब चढ़ाता है, अथवा साधु नौका से उतरेंगे यह सोचकर नौका सुदाढ़ा नाम के नागदेव ने उपसर्ग किया। उस मिथ्यादृष्टि को खड़ी रखता है या साधुओं को देखकर नौका को दूसरे देव ने भगवान् को जल में डुबोने का प्रयत्न किया तब तट से लाता है।
कंबल-शबल दोनों देवों ने भगवान् को उस उपसर्ग से मुक्त ५६२४.नावित-साधुपदोसो, णियत्तणऽच्छंतगा य हरियादी। कर दिया। ___जं तेण-सावएहि व, पवहण अण्णाए किणणं वा॥ ५६२९.सीसगता वि ण दुक्खं, करेह मज्झं ति एवमवि वोत्तुं।
नौका को लाते हुए देखकर लोग नाविक पर या साधु पर जा छुन्भंतु समुद्दे, मुंचति णावं विलग्गेसु॥ १. पूरे कथानक के लिए देखें कथा परिशिष्ट नं. १३१। २. पूरे कथानक के लिए देखें-आ. नियु. गा. ४६९-४७१, हारि. टी. पत्र १९९-२०१।
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