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________________ तीसरा उद्देशक अंतिमरूप में राजा तक बात पहुंचानी चाहिए। वे वह निमित्त से चोर को जान लिया जाता है। इस प्रकार चोर ज्ञात संस्तारक दिला दे अथवा वे कहें-आप विहार कर जाएं। हो जाने पर वही यतना करनी चाहिए जो पिता-पुत्र के विषय हम संस्तारक को उसके स्वामी को सौंप देंगे। संस्तारक में है या अंतिम राजा को निवेदन करना चाहिए। स्तेनक को विनिर्दिष्ट कर लेने पर वे ऐसा कहेंगे अन्यथा ४६३४. विज्जादऽसई भोयादिकहण केण गहिओ न जाणऽम्हे। यह कहेंगे दीहो हु रायहत्थो, भद्दो आम ति मग्गति य॥ ४६२९.खंताइसिट्ठऽदिते, महतर किच्चकर भोइए वा वि। विद्या आदि न हों तो भोजिक आदि को कहना चाहिए, देसारक्खियऽमच्चे, करण निवे मा गुरू दंडो॥ हमारा संस्तारक कोई ले गया है, हम नहीं जानते किसने पिता आदि को कहे जाने पर भी यदि नहीं देता है तो लिया है? राजा का हाथ लंबा होता है। वह यदि गवेषणा करे ग्राममहत्तर-ग्रामप्रधान को कहे। कृत्यकर-ग्रामस्वामी को तो मिल सकता है। जो भोजिक भद्र होता है वह उसे ठीक कहे। वही भोजिक' होता है। फिर देश के आरक्षक, अमात्य, मानकर उसकी गवेषणा करता है। फिर न्यायालय में शिकायत करे, परंतु नृप तक न जाए। ४६३५.जाणह जेण हडो सो, कत्थ विमग्गामि णं अजाणतो। क्योंकि नृप का गुरुदंड होता है। इति पंते अणुसट्ठी-धम्म-निमित्ताइ तह चेव॥ ४६३०.एए उ दवावेती, अहव भणेज्जा स कस्स दायव्वो। जो भोजिक प्रान्त होता है, वह कहता है, उस संस्तारक ' अमुगस्स त्ति य भणिए, वच्चह तस्सऽप्पिणिस्सामो॥ चोर को लाओ। बिना चोर को जाने मैं उसकी खोज कैसे __ ये व्यक्ति वह संस्तारक दिला देते हैं या वे पूछते हैं- करूं? प्रान्त द्वारा यह कहने पर अनुशिष्टि, धर्मकथा तथा वह संस्तारक किसको देना है। अमुक को देना है यह कहने निमित्त आदि का प्रयोग करना चाहिए। पर वे कहते हैं-आप विहार करें। हम उसे संस्तारक अर्पित ४६३६.असतीय भेसणं वा, भीया वा भोइयस्स व भएणं। कर देंगे। साहित्थ दारमूले, पडिणीय इमेसु वि छुभेज्जा। ४६३१.जति सिं कज्जसमत्ती, वयंति इहरा उ घेत्तु संथारं। यदि भोजिक न हो तो साधु स्वयं व्यक्तियों को डराते हैं दिढे णाते चेवं, अदिट्ठऽणाए इमा जयणा॥ उस भय से स्तेन भयभीत होकर संस्तारक को द्वारमूल पर यदि उन साधुओं का उस संस्तारक से कार्य समाप्त हो लाकर रख देता है। जो प्रत्यनीक होता है वह यत्र-तत्र गया हो, मासकल्प पूरा हो गया हो तो भोजिक आदि द्वारा निक्षिप्त कर देता है। विसर्जित होने पर वे वहां से विहार कर दें अन्यथा दूसरा ४६३७.भोइयमादीणऽसती, अदवावेंते व बिति जणपुरओ। संस्तारक लेकर रहें। इस प्रकार संस्तारक के दृष्ट होने पर, मुज्झीहामो सकज्जे, किह लोगमयाइं जाणंता॥ स्तेन के ज्ञात होने पर विधि बतलाई गई है। अदृष्ट और भोगिक आदि के अभाव में, वे संस्तारक नहीं दिला पाते अज्ञात होने पर यह यतना है। तो साधु लोगों के समक्ष कहते हैं-हम लोकमत को जानते ४६३२.विज्जादीहि गवेसण, अद्दिद्वे भोइयस्स व कधेति। हुए अपने कार्य के प्रति कैसे मूढ़ हो सकते हैं? __ जो भद्दओ गवेसति, पंते अणुसट्ठिमाईणि॥ ४६३८.पेहुणतंदुल पच्चय, भीया साहति भोइगस्सेते। विद्या आदि से गवेषणा करनी चाहिए। अदृष्ट और साहत्थि साहरन्ति व, दोण्ह वि मा होउ पडिणीए॥ अज्ञात होने पर भोगिक को कहना चाहिए। जो भोगिक भद्रक भोगिक अपने आदमियों को कहता है-पेहुणतंदुल को होता है, वह स्वयं गवेषणा करता है, जो प्रान्त होता है वह पकाओ। लोग डरकर भोगिक को बता देते हैं कि इस व्यक्ति गवेषणा नहीं करता। फिर वहां अनुशिष्टि आदि का प्रयोग ने संस्तारक लिया है। भयभीत लोग इस आशंका से कि ये करना चाहिए। मुनि चोर को पहचान लेंगे। ये राजा को कहेंगे। राजा इनका ४६३३.आभोगिणीय पसिणेण देवयाए निमित्ततो वा वि। विश्वास कर लेगा। अतः वे संस्तारक की बात भोगिक को ___एवं नाए जयणा, स च्चिय खंतादि जा राया। बता देते हैं अथवा उपाश्रय के द्वार पर उसको स्थापित कर आभोगिनी विद्या का प्रयोग करना चाहिए। इसके जाप चले जाते हैं। अथवा दोनों वर्गों-हमारे या लोगों के प्रत्यनीक से चोर के मानस का भेद होता है। चोर पहचान लिया जाता न हों, यह सोचकर उस संस्तारक का संहरण कर वहां है। या अंगुष्ठ प्रश्न आदि से, या क्षपक द्वारा दृष्ट देवता से, स्थापित कर देते हैं। १. भोजिक और भोगिक एक हैं। २. आभोगिनी नाम विद्या सा भण्यते या परिजपिता सति मानसं परिच्छेदमुत्पादयति। (वृ. पृ. १२५०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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