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________________ बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय गाथा संख्या विषय ३०६६-३३६८ सार्थ के पांच प्रकार। कौनसे सार्थ में निर्ग्रन्थ- ३१७७-३१८२ संखड़ी में जाने से कब दोष होते है और कब निर्ग्रन्थियों को जाने से लाभ तथा उनके साथ नहीं। आचार्य द्वारा समाधान। जाने की विधि। ३१८३-३१८९ अनाचीर्ण संखड़ियों के विविध प्रकार। उनका ३०६९-३०७९ सार्थ की अर्हता तथा उसके गुणों की जानकारी स्वरूप और उनसे प्रायश्चित्त। करने की विधि। ३१९०-३२०६ संखड़ी में जाने योग्य आपवादिक कारण तथा ३०८० आठ प्रकार का सार्थवाह तथा आठ प्रकार के उनसे संबंधित यतनाओं के प्रकार। आदियात्रिक-सार्थ संरक्षक। एगागिगमण-पदं ३०८१-३०८५ अध्वगमन में सार्थ संबंधी ५१२० भांगे। सूत्र ४५ ३०८६-३०९१ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों की सार्थवाह से अनुज्ञा लेने ३२०७ विचारभूमी में एकाकी निर्ग्रन्थ का जाना वर्जित। की विधि तथा भिक्षा, भक्तार्थना, वसति, स्थंडिल ३२०८-३२१७ विचारभूमी के दो प्रकार। रात्री में अकेले निर्ग्रन्थ आदि विषयक यतनाओं का स्वरूप। को वहां जाने से लगने वाले दोष तथा उनसे ३०९२-३०९८ अध्वगमन उपयोगी अध्वकल्प का स्वरूप तथा संबंधित अपवाद और यतनाएं। लेने न लेने का विवेक । तविषयक प्रायश्चित्त। ३२१८-३२२१ रात्री में विहारभूमी-स्वाध्यायभूमि में जाने की ३०९९-३१०३ अध्वकल्प का उपयोग निर्दोष अथवा विधि और यतनाएं। आधाकर्मिक भोजन लेना निर्दोष ? सूत्र ४६ ३१०४-३१३८ अध्वगमन से संबंधित अशिव, दुर्भिक्ष राजद्विष्ट ३२२२-३२२४ अकेली निग्रन्थी को विचारभूमी में जाने आदि व्याघात और उनसे लगने वाली यतनाओं पर प्रायश्चित्त तथा स्त्री स्वभाव का वर्णन। का विस्तृत वर्णन। ३२२५-३२३४ निर्ग्रन्थी के योग्य उपाश्रय और उससे संबंधित ३१३९ साधु-साध्वियों को संखड़ी में जाना दिन में भी यतनाएं और अपवाद। नहीं कल्पता फिर रात्री में कैसे? ३२३५-३२३९ श्रमणीयोग्य विहारभूमी विषयक यतनाएं और ३१४०,३१४१ संखड़ी का तात्पर्य। उसमें जाने से निर्ग्रन्थ अपवाद। निर्ग्रन्थियों को प्रायश्चित्त। आरियखेत्त-पदं ३१४२-३१४८ दिवस और पुरुषों की अपेक्षा से संखड़ी के प्रकार सूत्र ४७ तथा उनसे संबंधित प्रायश्चित्त। ३२४०-३२४३ समनुज्ञात क्षेत्र को छोड़कर शेष क्षेत्रों में ३१४९,३१५० संखड़ी जहां होती थी उन पुरातन स्थानों के विहार करने की वर्जना। द्रव्य, क्षेत्र, काल और नाम। भाव विषयक प्रतिषेधात्मक सूत्रों का नामांकन ३१५१-३१५४ माया, कपट, लोलुपता आदि कारणों से संखड़ी पूर्वक उल्लेख। में जाने से प्रायश्चित्त। ३२४४-३२५८ आर्यक्षेत्र विषयक प्रथम उद्देशक के अंतिम सूत्र ३१५५-३१५७ संखड़ी वाले गांव आदि में जाते समय मार्गगत अथवा संपूर्ण कल्पाध्ययन को नहीं जानने वाला लगने वाले दोषों का स्वरूप। अथवा जानने पर उसे आचार में नहीं लेने वाला ३१५८-३१६२ संखड़ी वाले गांव में पहुंचने के पश्चात् वसति, आचार्य की अयोग्यता का निदर्शन। सर्पशीर्ष परतीर्थिक तर्जना आदि निमित्तों से लगने वाले और वैद्यपुत्र का दृष्टान्त। दोष। ३२५९,३२६० कल्पाध्ययन का अजानकार आचार्य की ३१६३-३१६७ संखड़ी वाले गांव में पहुंचने पर आवश्यक, अयोग्यता को प्रकट करने वाला वैद्यपुत्र का स्वाध्याय, प्रत्युपेक्षण, भोजन, भाषा, विचार दृष्टान्त। और ग्लानत्व विषयक दोषों का वर्णन। ३२६१,३२६२ भगवान् महावीर ने कब और कहां आर्यक्षेत्र से ३१६८-३१७६ संखड़ी वाले ग्राम में न जाकर यदि श्रमण बाहर संबंधित इस सूत्र की प्ररूपणा की-उसका रहता है तो उससे लगने वाले दोष। उनसे उल्लेख। आर्यक्षेत्र की सीमा। विहार भूमी का संबंधित शिष्य-आचार्य की प्रश्नोत्तरी। कल्प। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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