________________
=६३
विषयानुक्रमणिका= गाथा संख्या विषय २९०७,२९०८ मार्ग में सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त के पश्चात्
गीतार्थ संविग्न की अन्य सार्थ में भिक्षा लेने की
विधि। २९०९,२९१० चोरपल्ली में भक्तपान ग्रहण करने की विधि और
अविधिपूर्वक भिक्षा ग्रहण से प्रायश्चित्त। २९११-२९१७ उजड़े या खाली गांव में भिक्षा लेने की विधि।
अविधि से भिक्षा ग्रहण में प्रायश्चित्त। उत्कृष्ट,
मध्यम और जघन्य द्रव्यों का स्वरूप। २९१८,२९१९ नीचे गिरे हुए प्रलंब तथा वृक्ष के ऊपर प्रलंब
विषयक चर्चा व कल्पनीय का विवेक। २९२० नन्दि पद की व्याख्या। २९२१-२९२३ आहार-पान संबंधी यतनाएं। २९२४-२९२६ रात्री में अप्रत्युपेक्षित भूमी में उच्चार-प्रस्रवण का
व्युत्सर्ग करने और शय्या-संस्तारक आदि ग्रहण
करने से प्रायश्चित्त और आज्ञाभंग आदि दोष। २९२७-२९३४ रात्रि में वसति आदि ग्रहण संबंधी अपवाद। २९३५-२९४२ रात्री में गीतार्थ निर्ग्रन्थों के लिए वसति ग्रहण की
विधि। २९४३-२९५७ गीतार्थ के साथ अगीतार्थ निर्ग्रन्थों के होने पर
रात्री में वसतिग्रहण की विधि। अंधकारमय वसति में प्रतिलेखन हेतु प्रकाश मंगवाने संबंधी
यतनाएं। २९५८-२९६८ ग्राम के बाहर वसति ग्रहण संबंधी यतनाएं।
आचार्य, गच्छ, कुल, गण, संघ आदि की रक्षा के लिए कृत दोषों की शुद्धीकरण का उपाय।
सूत्र ४३ २९६९ रात्री में वस्त्रग्रहण करना अकल्पनीय। २९७०-२९७३ रात्री में वस्त्रग्रहण संबंधी प्रायश्चित्त तथा
अपवाद। २९७४,२९७५ चोरों के चार प्रकार। २९७६-२९७८ चोरों द्वारा गृहस्थों के वस्त्र लूटे जाने पर उनको
वस्त्रादि देने की विधि। २९७९-२९८१ चोरों द्वारा निर्ग्रन्थ तथा निर्ग्रन्थी में से किसी एक
के वस्त्र लूटे जाने पर उनकी एक दूसरों को वस्त्र
लेने-देने की विधि। २९८२-३००० श्रमण-गृहस्थ, श्रमण-श्रमणी, समनोज्ञ और
अमनोज्ञ-इन युगलों में किसी के भी वस्त्र लूटे जाने पर उनके आपस में एक दूसरे को वस्त्र देनेलेने की विधि।
गाथा संख्या विषय ३००१ हताहृतिक वस्त्रों को रात्री में ग्रहण करना
कल्पनीय। ३००२-३००४ अध्वगमन के कारण। ३००५-३००७ मार्ग में आचार्यसंरक्षण की विधि और उसके
कारण। ३००८
चोरों के चार प्रकार। ३००९-३०१३ चोरों द्वारा श्रमण श्रमणियों के वस्त्र चुराए जाने
पर भद्रिक सेनाधिपति द्वारा वस्त्रों को पुनः भेजना अथवा साथी चोरों को वस्त्र देने के लिए भेजना। वे भय के कारण उपाश्रय के बाहर, या प्रस्रवण भूमि में वस्त्रों को फेंक कर चले जाते
हैं। उन फेंके गए वस्त्रों को लेने की विधि। ३०१४-३०२२ यदि चोराधिपति अथवा पापी चोर आचार्य को
मारने की इच्छा करे तो आचार्य को गुप्त रखने
की विधि। ३०२३-३०३७ चौरों द्वारा चुराए गए उपधि आदि की चोर-पल्ली
में गवेषणा करने की विधि । उपधि को इधर-उधर फेंके जाने पर उनको ग्रहण करने या ग्रहण न करने से दोषों के अल्पबहुत्व की जानकारी।
अद्धाण-पदं
सूत्र ४४ ३०३८,३०३९ हृताहृतिक आदि प्रयोजन से रात्रीगमन का
निषेध। ३०४० अर्थापत्ति के आधार पर मुनि को दिन में विहरण
करने की अनुज्ञा। ३०४१,३०४२ अध्वा के दो प्रकार। रात्रिविषयक मान्यता से
संबंधित दो परम्पराएं। ३०४३-३०५० रात्री में विहार करने पर मिथ्यात्व, उड्डाह तथा
संयम और आत्मविराधना आदि दोष और उनसे
संबंधित अपवाद। ३०५१,३०५२ पथ के दो प्रकार-छिन्नाध्वान्तर, अछिन्नाध्वान्तर।
उनका अर्थ। ३०५३-३०६० रात्री में पंथरूप अध्वगमन से लगने वाले दोषों
का स्वरूप तथा मार्गोपयोगी उपकरण न रखने
से लगने वाले दोष। ३०६१-३०६५ अपवाद में अध्वगमन संबंधी कारण और
अध्वोपयोगी उपकरणों को न लेने पर योग्य सार्थ की प्रत्युपेक्षा की विधि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org