________________
૬૨
बृहत्कल्पभाष्यम्
गाथा संख्या विषय २८०३-२८०७ बिना पूछे वस्त्रग्रहण पर स्त्री द्वारा निमित्त आदि
की पृच्छा। ना कहने पर पुनः वस्त्रों की याचना। छिन्न वस्त्र न लेने पर राजकुल में
व्यवहार। वृक्ष के दृष्टान्त से समझाना। २८०८,२८०९ निमंत्रणावस्त्र की शुद्धता का स्वरूप। २८१०-२८१३ निमंत्रणावस्त्र के ग्रहण के अवग्रह की मर्यादा।
सूत्र ३९ २८१४
स्थंडिलभूमि में निर्गत निर्ग्रन्थ को कोई वस्त्रादिक की विज्ञप्ति करे तो उन वस्त्र आदि को जांच कर आचार्य के पास उपस्थित करे। उनकी आज्ञा लेने के पश्चात् रखने या पुनः लौटाने की विधि।
सूत्र ४०,४१ २८१५-२८१९ साध्वी यदि स्वयं के लिए वस्त्र आदि ग्रहण करे
तो उससे आने वाला प्रायश्चित्त और लगने वाले
दोष तथा पट्टक का दृष्टान्त। ૨૮૨૦ निर्ग्रन्थी के लिए गणधर द्वारा वस्त्र की परीक्षा
और पश्चात् उनको वस्त्र देने की विधि। २८२१ संयतिओं को स्वयं के लिए वस्त्र लेने की अनुज्ञा
होने पर प्रस्तुत सूत्र की सार्थकता कैसे ? शंका का
समाधान। २८२२-२८२९ निन्थियों के लिए वर्जनीय-अवर्जनीय स्थान।
वस्त्रों के उपयोग की विधि। २८३०-२८३५ वस्त्र से होने वाला लाभ-अलाभ के परिज्ञान का
उपाय और शुभाशुभ फल का निर्देश।
राइभोयण-पदं
सूत्र ४२ २८३६ रात्रीभक्तव्रत का भग्न होने पर सभी महाव्रतों की
विराधना का प्रतिपादन। २८३७ रात्री में भोजन ग्रहण करने का वर्जन। २८३८ रात्री तथा विकाल पद की व्याख्या। तद्विषयक
दूसरे आचार्यों का मत। २८३९,२८४० बयालीस दोषों में रात्री भोजन का प्रतिषेध नहीं
फिर छठे व्रत में उसका प्रतिषेध क्यों ? शंका
का समाधान। २८४१-२८४८ रात्री में भोजन ग्रहण करने से भगवान् की
सर्वज्ञता के प्रति शंका। मिथ्यात्व, संयमविराधना
गाथा संख्या विषय
आदि दोष तथा प्राणवध, महाव्रतादि विषयक
शंकादि दोष। २८४९-२८७१ रात्रि भोजन विषयक चतुभंगी। उसका विस्तृत
स्वरूप। उससे संबंधित सामान्य तथा नौ
संस्थित प्रायश्चित्त। ૨૮૭ર रात्रिभोजन ग्रहण संबंधित आपवादिक कारण। २८७३,२८७४ ग्लानाश्रित रात्रीभक्तग्रहण विषयक चतुभंगी और
उसके आपवादिक कारण। २८७५ क्षुधित, पिपासित और असहिष्णु के लिए
रात्रीभक्तग्रहण विषयक अपवाद । २८७६
चन्द्रवेध सदृश अनशन करने वाले मुनि के लिए
रात्रीभक्तग्रहण विषयक अपवाद। २८७७,२८७८ अध्वाद्वार से संबंधित ऊर्ध्वदर और सुभिक्ष
आश्रित चतुभंगी। प्रथम और तीसरे भंग में
अध्वगमन से प्रायश्चित्त विधान। २८७९-२८८१ प्रथम तृतीय भंग में ज्ञान-दर्शन-चारित्र निमित्त
देशान्तरगमन की अनुज्ञा। २८८२,२८८३ विहार मार्ग में साथ में ले जाने वाले उपकरण। २८८४-२८८७ चर्म उपकरणों के नाम। उनका स्वरूप और
उनका उपयोग। २८८८,२८८९ लोह-उपकरण के नाम तथा शस्त्रकोश का
स्वरूप। उनके उपयोग। २८९० नंदी भाजन और धर्मकरक का स्वरूप और उपयोग। २८९१,२८९२ परतीर्थिक-उपकरणों (गुलिका-खोल) का
स्वरूप और उपयोग। २८९३
अध्व निर्गत मुनि के विहारोपयोगी उपकरणों को
साथ न ले जाने पर प्रायश्चित्त और दोष। २८९४,२८९५ प्रस्थान करते समय शकुनावलोकन।
सिंहपर्षद्, वृषभपर्षद् और मृगपर्षद् का
स्वरूप। २८९७-२९०० सार्थ के साथ प्रस्थित मुनियों को अटवी के मध्य
सार्थवाह के द्वारा छोड़ देने पर उनको समझाने की विधि तथा भिक्षा आदि न मिलने पर उसको
प्राप्त करने की विधि। २९०१-२९०५ विहार मार्ग में सिंहादिपर्षदों का आगे-पीछे चलने
का क्रम। २९०६ मार्ग निर्गत मुनि की भक्तपान की प्राप्ति न होने
पर उसको एषणाविषयक विधि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org