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________________ विषयानुक्रमणिका= गाथा संख्या विषय ३२६३-३२६५ आर्य पद के निक्षप के १२ प्रकार और उनका स्वरूप। आर्य जनपद और उनकी राजधानियों का नामांकन। ३२६६-३२६९ आर्यक्षेत्र में श्रमण-श्रमणियों के विहार का कारण। ३२७०-३२७४ भगवान् महावीर के काल की अपेक्षा से आर्यक्षेत्र का निरूपण। आर्य क्षेत्र के बाहर विहरण करने में लगने वाले दोष और स्कन्दक का उदाहरण। ३२७५-३२८९ ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि की वृद्धि और रक्षा हेतु आर्यक्षेत्र के बाहर विहरण की आज्ञा और उससे संबंधित संप्रतिराजा का दृष्टान्त। ३२९०-३२९२ निग्रंथ-निग्रंथी कैसे उपाश्रय में रहे? उसकी निरवद्यता का प्रतिपादन। दूसरा उद्देशक उवस्सए बीज-पदं ३२९३ उपाश्रय शब्द के चार निक्षेप। ३२९४ द्रव्य और भाव उपाश्रय का स्वरूप। ३२९५ उपाश्रय के एकार्थिक। ३२९६ वगडा के प्रकार तथा भाव वगडा का स्वरूप। ३२९७-३३०१ रहने योग्य और रहने अयोग्य उपाश्रय की जानकारी। ३३०२,३३०३ उत्क्षिप्त, विक्षिप्त, व्यतिकीर्ण, विप्रकीर्ण और यथालंद पदों की व्याख्या। ३३०४-३३०९ बीजाकीर्ण उपाश्रय में रहने से आने वाला प्रायश्चित्त तथा आज्ञाभंग आदि दोष, संयम और आत्मविराधना। सूत्र २ ३३१०-३३१२ राशीकृत, पुंजीकृत, कुलिकाकृत, पिहित, मुद्रित बीज वाले उपाश्रय में अगीतार्थ के रहने से आने वाला प्रायश्चित्त तथा उन पदों की व्याख्या। अपवाद में वहां रहने की यतना। ३३१३-३३२५ सूत्र में अगीतार्थ अथवा गीतार्थ का निर्देश न होने पर एक को अनुज्ञा तथा दूसरे को प्रतिषेध ? यह कैसे? शिष्य की जिज्ञासा। आचार्य का नाना सूत्रों के स्वरूप द्वारा समाधान। ३३२६,३३२७ उत्सर्गसूत्र और अपवादसूत्र का विषय और उनका स्वस्थान। गाथा संख्या विषय ३३२८-३३३१ शिष्य और आचार्य के संवाद के द्वारा उत्सर्ग और अपवाद सूत्र के रहस्य का प्रतिपादन। ३२३२ बीजाकीर्ण उपाश्रय में रक्षणीय तीन प्रकार की यतनाएं। ३३३३-३३६० अगीतार्थ के लिए तीनों प्रकार की अयतना का स्वरूप। ३३६१,३३६२ गीतार्थ मुनि निष्कारण धान्यशाला में रहे तो प्रायश्चित्त। ३३६३,३३६४ वसति मार्गणा के बाद भी अप्राप्त हो तो गीतार्थ को धान्यशाला में रहने की आज्ञा। ३३६५-३३६७ अनुज्ञापना की यतना विषयक विवेक। ३३६८-३३७१ धान्यशाला में रहने की विधि। ३३७२-३३७५ स्वपक्ष यतना में आचार्य (गीतार्थ) द्वारा रक्षणीय विवेक। ३३७६,३३७७ परपक्ष यतना का स्वरूप। द्वारबंद करने की विधि। ३३७८-३३८७ धान्य चुराने वालों को साधुओं द्वारा प्रतिबोधित करने की विधि। ३३८८-३३९२ चोर को जानते हुए भी उसका स्वरूप न बताएं। चोर के सामने मौन रहने का कारण। सूत्र ३ ३३९३-३३९५ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के लिए कौन सा उपाश्रय अकल्पनीय ? कोष्ठागुप्त, पल्यागुप्त, मालागुप्त आदि पदों की व्याख्या। ३३९६-३४०१ वर्षावास के लिए किस प्रकार के उपाश्रय में रहने से अगीतार्थ मुनि के लिए प्रायश्चित्त का विधान और अयतना का स्वरूप। उवस्सए वियड-पदं सूत्र ४ ३४०२,३४०३ मद्य आदि से प्रतिबद्ध उपाश्रय में रहने का निषेध। ३४०४,३४०५ 'हुरत्था' शब्द का अर्थ और 'परिहार पद' को छेद पद के बाद रखने का कारण। ३४०६ सुरा और सौवीर में अन्तर। ३४०७-३४१२ सुरा युक्त उपाश्रय में वास करने से अगीतार्थ को प्रायश्चित्त और वहां होने वाली अयतना का स्वरूप। ३४१३-३४१८ सुरायुक्त उपाश्रय में रहने वाले गीतार्थ मुनि के आश्रित स्वपक्ष-परपक्ष संबंधी यतना का स्वरूप। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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