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________________ बृहत्कल्पभाष्यम् २३१ ०० गाथा संख्या विषय १९२ अर्थ महान् कैसे? १९३ अर्हत् अर्थ का ही कथन करते हैं। १९४ नियोग की परिभाषा। १९५ पत्रक और दंडिका दोनों संयुक्त रूप में अर्थ के सहायक। १९६ जैसा सूत्र वैसा अर्थ। १९७,१९८ भाषक, विभाषक और व्यक्तिकर की उदाहरण से अभिव्यक्ति। व्यक्तिकर है वार्तिकर। व्यक्तिकर के विषय में 'चार मंखपुत्रों' का दृष्टान्त। २०१ व्यक्तिकर की योग्यता। २०२,२०३ क्या सभी तीर्थंकरों की प्ररूपणा समान है? शिष्य का प्रश्न। आचार्य का समाधान। २०४ अनियत और नियत क्या? २०५,२०६ निरुक्त, निक्षेप आदि की प्ररूपणा सर्व अर्हतों की समान। 'शकट, गंत्री' का दृष्टान्त। २०७ आत्मांगुल के आधार पर क्षेत्र विभाग से तुल्य उपलब्धि। २०८ विधि शब्द के एकार्थक। २०९,२१० शिष्यों की पटुता के आधार पर अनुयोग की विधि। २११-२१४ अनुयोग विधि से संबंधित प्रश्न और आचार्य द्वारा समाधान। २१५ एकान्त अयोग्य शिष्य के वाचक सात दृष्टान्त। २१६,२१७ दारु (लकड़ी) का दृष्टान्त। २१८ धातु का दृष्टान्त। २१९ व्याधि का दृष्टान्त। २२० बीज का दृष्टान्त। २२१ कांकटुक (कोरडू) का दृष्टान्त। २२२ सामुद्रिक लक्षण के ज्ञाता का कथन। २२३ स्वप्नशास्त्री का दृष्टान्त। २२४ पहले अयोग्य पश्चात् योग्य विषयक प्रतिपक्ष के उदाहरण। २२५,२२६ अग्नि का दृष्टान्त। २२७ बालक और व्याधि का दृष्टान्त। २२८,२२९ सिंहशिशु, द्विपर्णवृक्ष तथा करील का दृष्टान्त। २३० स्थूलबुद्धि शिष्य क्रमशः बुद्धि को वृद्धिंगत कर निपुण होगा। गाथा संख्या विषय स्थूल से प्रारंभ कर सूक्ष्म में निपुणता की प्राप्ति। इसके सात दृष्टान्त। २३२ संवेगकर और निर्वेदकर आगम की वाचना दे। २३३ अनुयोग ग्रहण करने वाला शिष्य और ग्राहक आचार्य का उद्यम। २३४,२३५ गाय और दोहक विषयक चतुर्भगी। आचार्य और शिष्य विषयक चतुर्भंगी। २३६-२३८ चतुर्भंगी का विवेचन। २३९ उद्यमी आचार्य प्रमादी शिष्य को अनुयोग में प्रवृत्त करता है। आर्य कालक का दृष्टान्त। अनियुक्त आचार्य को उद्यमी शिष्य अनुयोग में प्रवृत्त कर देता है। २४० नियुक्त आचार्य दोनों समय अनुयोग करे। नियुक्त शिष्य उसे सुने। २४१-२४४ अनुयोग दाता के गुण। २४५ गुणी और गुणहीन के वचनों की स्थिति। २४६-२५५ अनुयोग किस सूत्र का? प्रस्तुत में कल्प और व्यवहार सूत्र का। इन विषयक जिज्ञासा और समाधान। २५६,२५७ अनुयोग के चार द्वार और उनके निरूपण का कारण। २५८,२५९ अनुयोगद्वार का एक द्वार-उपक्रम। लौकिक द्रव्योपक्रम का निरूपण। २६० लौकिक द्रव्योपक्रम। २६१ लौकिक कालोपक्रम। लौकिक अप्रशस्त भावोपक्रम और तीन दृष्टान्त। २६३,२६४ लौकिक प्रशस्त भावोपक्रम। २६५-२७० छह प्रकार का शास्त्रीय उपक्रम और प्रस्तुत का समवतार। २७१,२७२ निक्षेप के तीन प्रकार। २७३ नाम विक्षेप के छह प्रकार। २७४ भाव कल्प के पांच प्रकार। २७५ सूत्रालापक निक्षेप का प्रसंग होते हुए भी सूत्रानुगम का कथन। २७६ अनुगम के तीन द्वार। लक्षणयुक्त सूत्र ही सिद्ध । २७७ सूत्र के लक्षण। २७८-२८१ सूत्र के बत्तीस दोष। २८२-२८७ सूत्र के गुण और उनकी व्याख्या। २८८ सूत्रोच्चारण विधि। २६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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