________________
D४१
विषयानुक्रमणिका= गाथा संख्या विषय २८९ अहीनाक्षर-हीन के दो प्रकार। एक बहिन का
उदाहरण। २९० सूत्र के अर्थ की व्यापत्ति कैसे? २९१ विद्याधर का दृष्टान्त। २९२-२९४ राजपुत्र कुणाल का दृष्टान्त। २९५ कामिक सरोवरवासी बंदर का दृष्टान्त। २९६ व्यत्यानेडित का अर्थ और उसके भेद। २९७ स्खलित और मीलित के भेद। २९८,२९९ स्खलित, मीलित आदि से सूत्रोच्चारण करने पर
निष्पन्न प्रायश्चित्त। ३००,३०१ प्रायश्चित्त के प्रकार व उनका विवेचन। ३०२-३०८ संहिता, पद, पदार्थ आदि सूत्र की व्याख्या के छह
प्रकार। उनका स्वरूप और उनके प्रयोग की
विधि। ३०९ व्याख्या के पांच प्रकार। ३१०-३१३ सूत्र की अनेक व्याख्याएं।
अनुसरण के प्रकार और वणिक् के अंधे पुत्र का
दृष्टान्त। ३१५-३१८ सूत्र के तीन प्रकार व उनकी व्याख्या।
उत्सर्ग और अपवाद की परिभाषा। ३२०,३२१ उत्सर्ग से अपवाद में आने वाले भग्नव्रत हैं या
नहीं? शिष्य द्वारा प्रश्न। आचार्य का दृष्टान्त के
साथ समाधान। ३२२ अल्प क्या उत्सर्ग या अपवाद ? ३२३,३२४ उत्सर्ग और अपवाद स्वस्थान और परस्थान
कब? ३२५, ३२६ पद द्वार और पदार्थ द्वार। ३२६/१/२ तद्धित और सामासिक द्वार।
आख्याति पदार्थ और मिश्र पदार्थ। ३२८ आक्षेप और निर्णयप्रसिद्धि का अर्थ। ३२९ अर्थ का वशवर्ती है पद। ३३०-३३३ गुणयुक्त सूत्र की अर्हता। ३३४ कल्प व्यवहार के ग्रहण-योग्य परिषद् की परीक्षा
के लिए चौदह दृष्टान्त। ३३५,३३६ मुद्गशैल पर्वत का दृष्टान्त। ३३७ मुद्गलशैल सम शिष्य को सूत्र सिखाने के दोष। ३३८ सूत्र का अव्यवच्छित्तिकारक शिष्य कौन ? ३३९-३४२ कुट के आधार पर शिष्यों का ग्रहण और
अग्रहण।
गाथा संख्या विषय ३४३-३५२ शिक्षणीय और अशिक्षणीय शिष्य की पात्रता
और अपात्रता का विवेचन। ३५३-३५५ चार चतुर्वेदी ब्राह्मण और एक गाय का दृष्टान्त। ३५६-३५९ कृष्ण की चार भेरियां और भेरिपाल। ३६०,३६१ आभीरी का दृष्टान्त और अयोग्य शिष्य। ३६२,३६३ योग्य शिष्य को वाचना न देने और अयोग्य
शिष्य को देने से आचार्य को प्राप्त प्रायश्चित्त। ३६४ परिषद् के प्रकार। ३६५ परिषद् का स्वरूप। ३६६ कल्पाध्ययन ग्रहण करने की योग्यता। ३६७,३६८ अजानती परिषद् का स्वरूप।
दुर्विदग्धा परिषद् के प्रकार। ३७० किंचित्मात्रग्राही का लक्षण। ३७१,३७२ पल्लवग्राही का लक्षण व दृष्टान्त। ३७३-३७५ मूर्ख आचार्य कैसे? ३७६,३७७ दुर्विदग्ध शिष्य और दुर्विदग्ध वैद्यपुत्र की तुलना। ३७८-३८३ लौकिक पर्षद् के पांच प्रकार व उनका स्वरूप। ३८४ लौकोत्तर पर्षद् की व्याख्या। ३८५,३८६ लौकोत्तर बुद्धिपर्षत् के कार्य। ३८७-३८९ लोकोत्तर मंत्री परिषद् का स्वरूप और भंगनादित
कार्य की व्याख्या। ३९० संघ के अपराधी को दंड देने का अधिकार संघ
को है राजा को नहीं ? ३९१ श्रमण-श्रमणियों का शल्योद्धरण करने के लिए
चतुःकर्णा आदि राहस्यिकी पर्षद् । ३९२,३९३ श्रमण की गुरु के समक्ष आलोचना करने की
विधि। ३९४,३९५ श्रमणी की गुरु के समक्ष आलोचना करने की
विधि। ३९६-३९८ आलोचना के समय साथ रहने वाले श्रमण
श्रमणी की योग्यता। ३९९-४०१ कल्प और व्यवहार की वाचना के योग्य
छत्रान्तिका पर्षद्। ४०२ बहुश्रुत के प्रकार और स्वरूप। ४०३,४०४ चिर प्रव्रजित के प्रकार और स्वरूप। ४०५ कल्पिक के बारह प्रकार। ४०६ सूत्रकल्पिक का स्वरूप और योग्यता।
सर्वश्रुतानुपाती कब ? कैसे? ४०७ तीन वर्ष की अपूर्णता पर श्रमण क्या पढ़े ?
३२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org