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पहला उद्देशक
२३७६. असतोणि खोमिरज्जू, एकपमाणेण जा उ वेढेइ । कडहूवागादीहिं पोत्तऽसह भए व बागमई ॥ रज्जु चिलिमिलिका पहले और्णिक दवरक वाली ले। उसके अभाव में क्षौमिकदवरक वाली ग्रहण करे। प्रत्येक के लिए एक-एक वही पांच हाथ लंबी और तीन हाथ चीटी। 'कडहू' वृक्ष आदि के वल्क से बनी हुई चिलिमिलिका ग्रहण करे वस्त्र की चिलिमिली न होने पर स्तेन आदि का भय होने पर वह वल्कमयी चिलिमिलिका ली जा सकती है।
२३७७. देह हिओ गणणेक्को, दुवारगुत्ती भये व दंडमई । संचारिमा य चउरो, भय माणे कडमसंचारी ॥ शरीर के प्रमाण से चार अंगुल बाला दंडक, प्रत्येक साधु को, एक-एक कल्पता है भय की स्थिति में उन दंडकों से द्वार का स्थगन किया जाता है। यह दंडमयी चिलिमिलिका है। पूर्वोक्त चारों प्रकार की चिलिमिलिकाएं संचारिम होती हैं, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाई जा सकती हैं। कटकमयी चिलिमिलिका असंचारिम होती है। इसका प्रमाण नहीं होता। जितनी चिलिमिलिकाओं का प्रयोजन हो उतनी ली जा सकती हैं।
२३७८. सागारिय सज्झाए, पाणदय गिलाण सावयभए वा । अद्भाण-मरण - वासासु चेव सा कप्पए गच्छे ॥ गृहस्थ के देखते स्वाध्याय करते समय, प्राणदया, ग्लान के लिए, श्वापद का भय होने पर, मार्ग में, मरण के समय तथा वर्षा में गच्छवासी साधुओं को चिलिमिलिका का परिभोग कल्पता है। २३७९.पडिलेहोभयमंडलि, इत्थी - सागारियट्ठ सागरिए । घाणा ऽऽलोग ज्झाए, मच्छिय डोलाहपाणेसु ॥ प्रत्युपेक्षण करते समय, भोजनमंडली और स्वाध्यायमंडली के समय, स्त्रियों से प्रतिबद्ध वसति में, सागारिक द्वार से संबंधित विषय में तथा स्वाध्याय के समय जहां दुर्गंध आती हो, जहां से रक्त चर्बी आदि दिखती हो, जहां अनेक लोगों का दृष्टिपात होता हो, मक्षिका - डोला -तिड्डी आदि प्राणियों की बहुलता हो तो चिलिमिलिका का उपयोग किया जा सकता है।
२३८०. उभओसहकज्जे वा, देसी वीसत्थमाह गेलने । अदा छन्नासह, भओवही सावए
दोनों संज्ञाओं के व्युत्सर्जन के समय, औषधी लेते समय, जिस देश में शाकिनी का उपद्रव हो वहां इन में ग्लान को चिलिमिलिका से आच्छन्न रखना चाहिए जिससे कि वह विश्वस्त रह सके।
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२३८१. छत्रवहणद्र मरणे, वासे उन्झक्खणी य कडओ य उल्लुवहि विरल्लिंति व, अंतो बहि कसिण इतरं वा ॥ मृत्यु हो जाने पर जब तक शव का परिष्ठापन नहीं किया जाता तब तक उसको चिलिमिलिका से ढंक कर रखना चाहिए तथा दंडक और चिलिमिलिका से मृतक को उठाकर वहन करना चाहिए। वर्षा बरस रही हो. पवन से प्रेरित जलकणिकाएं आ रही हो तो कटक चिलिमिलीका काम में लेनी चाहिए। वर्षा में भीगे वस्त्रों को सुखाने के लिए रज्जु चिलिमिलिका का उपयोग करना चाहिए। उसमें भी कृत्स्नबहुमूल्य उपधि को मध्य में और दूसरी उपधि को बाहर सुखानी चाहिए। (इन पांच प्रकार की चिलिमिलिकाओं का ग्रहण न करने तथा उपभोग न करने पर चतुर्लघुमास का प्रायश्चित्त तथा संयम और आत्मविराधना से निष्पन्न प्रायश्चित भी आता है।)
२३८२. बंभव्वयस्स गुत्ती, दुहत्थसंघाडिए सुहं भोगो ।
वीसत्यचिणादी, दुरहिगमा दुविह रक्खा य उपाश्रय में निवास करने वाली साध्वियां सदा चिलिमिलिका का उपयोग करती हैं। इससे ब्रह्मचर्य की गुप्ति तथा हाथ विस्तार वाली संघाटी में सुखपूर्वक रहा जा सकता है । वे विश्वस्त होकर बैठ-सो सकती हैं। दुःशील व्यक्तियों के लिए वे दुरधिगम्य होती हैं तथा आत्मरक्षा और संयमरक्षा भी सुखपूर्वक होती है।
दगतीर पदं
नो कप्पड निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा दगतीरंसि चिट्ठित्तए वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निद्दाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेत्तए, उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा परिद्ववित्तए, सज्झायं वा करेत्तए 'धम्मजागरियं वा जागरितए' काउस्सग्गं वा ठाणं ठाइत्तए ।
(सूत्र १९)
२३८३. मा मं कोई दच्छिह, वच्छं व अहं ति चिलिमिली तेणं ।
वगतीरे बिन चिट्ठ, तदालया मा हु संकेज्जा ।। मुझे कोई गृहस्थ न देखे और मैं भी किसी गृहस्थ का न देखूं, इसलिए चिलिमिलिका का उपयोग किया जाता है।
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