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________________ पीठिका: अपहरणकर्ता हैं?) ग्रंथकार कहते हैं जो अपूर्व हों-जिन्हें पहले कभी न देखा गया हो, जो विशेष तिथि के बिना बलि करने आए हों-ये अपहरणकर्ता के लक्षण हैं। वे भी यदि मुनियों से कहे-'आप बाहर जाएं, हम बलिक्रिया करेंगे।' तब उन्हें यह गाथा सुनाएन विलोणं लोणिज्जइ, न वि तुप्पिज्जइ घयं व तेल्लं वा। किह नाम लोगडभग! वट्टम्मि ठविज्जए वट्टो?॥ अन्नं भंडेहि वणं, वणकुट्टग! जत्था ते वहइ चंचू। भंगुरवणबुग्गाहित!, इमे हु खदिरा बइरसारा॥ गाथा सुनकर वे जान जाते हैं कि इन्होंने हमें पहचान लिया है। अथवा उनको कहे-ये उपकरण दूसरों के हैं। हम दूसरों के उपकरणों को नहीं छूते। इतना कहने पर भी वे न मानें तो उन्हें कहे-आप नहीं मान रहे हैं तो सुनिए, इन उपकरणों में से जो खराब होगा या चला जाएगा, उसकी पूरी जिम्मेवारी आप लोगों पर होगी। ५६९. कारणे सपाइडि ठिया, वासे वि करेंति एगमायोगं। सन्नाविय दिट्ठा वा, भणाइ जा सारवेमुवहिं॥ यदि कारणवश सप्राभृतिका सार्वजनिक स्थान में वर्षाकाल में भी रहना पड़े तो समस्त उपकरणों का एक आयोग अर्थात् गट्ठर बांध दे, जिससे कि उसमें से कुछ भी न निकाला जा सके। यदि शय्यातर अथवा अन्य द्वारा संदिष्ट व्यक्ति बलि क्रिया करने आए तथा स्वयं द्वारा पूर्वदृष्ट भी वहां आए हों तो वसतिपाल मुनि उनसे कहे-'मैं उपकरणों को एक ओर व्यवस्थित कर लूं तब तक आप रुकें।' ५७०. उव्वरए कोणे वा, काऊण भणाति मा हु लेवाडे। ___बहु पेल्लणऽसारविए, तहेव जं नासती तुज्झं। वसतिपाल मुनि तब उपकरणों को एक कमरे में अथवा कोने में रखकर उनसे कहे-बलि करते समय इन उपकरणों को बलि द्रव्य से खरंटित न करें। यदि बहुत सारे लोग जबरन वहां प्रविष्ट हो जाएं और उपकरणों को एक ओर रखने तक भी प्रतीक्षा न कर सकें तो उनसे पूर्ववत् कहे-यदि उपकरणों से कुछ भी नष्ट होगा तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों पर ही होगी। ५७१. नत्थि कहालद्धी मे, पुव्वं दिवे व बेति गेलण्णं। दाणादि असंकाण व, आउज्जंतो परिकहेइ॥ यदि वे धर्मकथा सुनने का आग्रह करें तो उनसे कहे-मेरे में कथालब्धि नहीं है। यदि वे कहे-मैंने तुमको पहले कथा करते देखा है। तब कहे-आज मैं ग्लान हूं। यदि धर्मकथा के लिए कहने वाले दानादि श्राद्ध हों, जो अशंकनीय हो तब जागरूकतापूर्वक धर्मकथा करे। ५७२. दट्टू पिणे न लब्भामो, मा किड्डह मा हरिज्जिहं को वि। संमज्जणाऽऽवरिसणे, पाहुडिया चेव बलिसरिसा॥ यदि वहां स्थान पर आकर कोई क्रीड़ा करें तो उनको कहे-हम यहां क्रीड़ा करते हुए व्यक्तियों को देखना भी नहीं चाहते, इसलिए यहां क्रीड़ा न करें। यह इसलिए कहे कि कोई भांडोपकरण का अपहरण न करे। प्रमार्जन, आवर्षण तथा प्राभृतिका में बलिद्वारवत् यतना करे। ५७३. खमणं निमंतिते ऊ, खंधारे कइयवे इमं भणति। किं णे निरागसाणं, गुत्तिकरो काहिई राया॥ यदि कोई भिक्षा के लिए निमंत्रण दे तो उसे कहे-आज क्षपण-तपस्या है। यदि कोई मायापूर्वक स्कंधावार का भय दिखाए तो उसे कहे-हम निरपराध व्यक्तियों के लिए क्या? राजा हमारा गुप्तिकर-रक्षाकर होगा। ५७४. पभु अणुपभु (णो व) निवेयणं तु पेल्लंति जाव नीणेमि। तह वि य अठायमाणे, पासे जं वा तरति नेउं॥ यदि यथार्थ में स्कंधावार आ जाए जो राजा तथा अनुप्रभु-सेनापति आदि के पास जाकर कहे। उनके द्वारा संदिष्ट राजपुरुष उपाश्रय में आकर उपाश्रय से अन्य व्यक्तियों को बाहर निकाल देते हैं। यदि वे नहीं जाते हैं तो उनसे कहे-मैं उपकरणों को ले जाता हूं, तब तब प्रतीक्षा करो। यदि वह सारे उपकरण एक बार में न ले जा सके तो अपने दोनों पार्यों में सारभूत भांडों को बांधकर, जितना ले जा सके उतना ले जाए। ५७५. कोल्लुपरंपर संकलि, आगासं नेइ वायपडिलोमं। अच्छुल्लूढा जलणे, अक्खाई सारभंडं तु॥ अग्नि से बचने के लिए सारे उपकरणों को 'कोल्लुकचक्र' न्याय से चार-पांच पोट्टलिकाओं में बांध दे। फिर खुले आकाश में, वायु की प्रतिलोम दिशा में उन पोट्टलिकाओं को रख दे। वहां वे अग्नि से अस्पृष्ट रहेंगे। परंतु अग्नि की प्रचंडता उस ओर भी प्रसारित होने लगे तो अक्ष आदि सारभूत पदार्थों को निकाल कर अग्नि से बचा ले। ५७६. असरीरतेणभंगे, पवलाए जणे उ जं तरति नेउं। न वि धूमो न वि बोलो, न इवति जणो कइयवेसुं॥ स्तेन दो प्रकार के होते हैं-शरीरस्तेन और अशरीरस्तेन। अशरीरस्तेनों के आने पर भागने वाले लोग जितना धनमाल बचा सकते हैं, उतना लेकर चले जाते हैं। कपटपूर्वक यदि कोई कहे-आग लग गई है। स्तेन आ गए हैं। तो उसे कहे-न कोई धूम दिखाई दे रहा है और न कोलाहल ही सुनाई दे रहा है। इस प्रकार समझदार व्यक्ति उस कपटपूर्वक कथन से विचलित नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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