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________________ पीठिका ४. अनन्त हरित शकट ५. • अनन्तर प्रतिष्ठित चतुर्गुरुक परंपर प्रतिष्ठित चतुर्गुरुक • उभय प्रतिष्ठित दो चतुर्गुरुक शुद्ध । अनन्त हरित - साधु-शकट • अनन्तर प्रतिष्ठित दो चतुर्गुरुक • परंपर प्रतिष्ठित दो चतुर्गुरुक • उभय प्रतिष्ठित चार चतुर्गुरुक शुद्ध । ६. मिश्र प्रत्येक हरित साधु • अनन्तर प्रतिष्टित मासलप • परंपर प्रतिष्ठित-मासलघु • उभय प्रतिष्ठित दो मासलघु शुद्ध । ७. मिश्र प्रत्येक हरित-मंत्री अनन्तर प्रतिष्ठित मासलघु • परंपर प्रतिष्ठित मासलघु • उभय प्रतिष्ठित वो मासलघु • शुद्ध । ८. मिश्र प्रत्येक हरित-साधु-मंत्री • अनन्तर प्रतिष्ठित-दो मासलघु • परंपर प्रतिष्ठित दो मासलघु • उभय प्रतिष्ठित चार मासलघु ● शुद्ध । ९. मिश्र अनन्त हरित - साधु • अनन्तर प्रतिष्ठित-मासगुरु • परंपर प्रतिष्ठित मासगुरु • उभय प्रतिष्ठित दो मासगुरु शुद्ध । १०. मिश्र अनन्त हरित-गंत्री • अनन्तर प्रतिष्ठित-मासगुरु • परंपर प्रतिष्ठित-मासगुरु • उभय प्रतिष्ठित-दो मासगुरुक शुद्ध । ११. मिश्र अनन्त हरित साधु-मंत्री • अनन्तर प्रतिष्ठित दो मासगुरुक परंपर प्रतिष्ठित-दो मासगुरुक उभय प्रतिष्ठित चार मासगुरुक शुद्ध । Jain Education International १२. प्रत्येक बीज आदि -- साधु • अनन्तर प्रतिष्ठित- लघुपंचक • परंपर प्रतिष्ठित - लघुपंचक • उभय प्रतिष्ठित दो लघुपंचक • शुद्ध । १३. प्रत्येक बीज आदि-मंत्री ५५ • अनन्तर प्रतिष्ठित-लघुपंचक • परंपर प्रतिष्ठित लघुपंचक • उभय प्रतिष्ठित दो लघुपंचक • शुद्ध । १४. प्रत्येक बीज आदि-साधु-गंत्री • अनन्तर प्रतिष्ठित-दो लघुपंचक • परंपर प्रतिष्ठित दो लघुपंचक • उभय प्रतिष्ठित चार लघुपंचक शुद्ध । इसी प्रकार अनन्त बीज आदि में गुरुपंचक जानना चाहिए। तथा परीत अनन्त और मिश्र - अनन्तर और परंपर आदि में यथायोग्य प्रायश्चित ज्ञातव्य है। ५०३. दव्वे भावे च चलं, दव्वम्मी दुट्ठियं तु जं दुपयं । आयाएँ संजमम्मि य, दुविहा उ विराहणा तत्थ ॥ चल दो प्रकार से होता है द्रव्यतः और भावतः । द्रव्यतः चल वह है जो शकट दस्थित है। वहां लेपग्रहण करने में दो प्रकार की विराधना होती है-आत्मविराधना और संयमविराधना (आत्मविराधना शकट के गिरने से अभिघात हो सकता है संयमविराधना शकट के चलित होने पर प्राणियों का उपमर्दन ।) तत्थ । ५०४. भावचल गंतुकामं, गोणाई अंतराइयं जुत्ते वि अंतरायं, वित्तसचलणे य आयाए । भावचल का अर्थ है-शकट प्रस्थित होने वाला हो। उसमें बैल जोते जा रहे हों। उस समय लेपग्रहण करने से बैलों के चारे पानी का निरोध तथा आदमियों के भी अंतराय होता है। शकट में बैल जुते हुए हों, उनको वहीं खड़ाकर लेपग्रहण करने में अंतराय दोष होता है तथा बैलों के त्रस्त हो जाने पर चरणाक्रमण हो सकता है। इससे आत्मविराधना, संयमविराधना और सप्राणियों की हिंसा हो सकती है। ५०५. बच्छो भएण नासति, भंडिक्खोभे य आयवावती । आया पवयण साणे, काया य भएण नासंते ॥ शकट के वत्स बंधा हुआ हो तो वह भय से त्रस्त होकर दौड़ता है। शकट के चलित होने पर लेपग्रहण करते हुए मुनि के आत्मव्यापत्ति होती है, आत्माविराधना होती है। शकट के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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