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व्यवहार भाष्य
सभ्यता एवं संस्कृति के तथ्यों को हम बहुत अल्पमात्रा में प्रस्तुत कर पाए हैं। इसका एक कारण तो यह है कि कुछेक तथ्य अनेक परिशिष्टों में समाहित हो चुके हैं अतः उनको पुनः यहां दोहराना उचित नहीं लगा।
इतना लिखे जाने पर भी महसूस हो रहा है कि अभी भी बहुत कुछ लिखना शेष है।
१ जून १९६६ जैन विश्व भारती, लाडनूं
मुनि दुलहराज समणी कुसुमप्रज्ञा
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