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परिशिष्ट
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के आगे-आगे चलता था। तीसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति की भांति राजा की उपासना करता, पर वह राजा के अश्व के आगे नहीं चलता, किंतु उसके
। जब घोड़ा खड़ा रह जाता तब वह राजा की सेवा करता। वह सदा आसन पर ही बैठता, भूमि पर नहीं। राजा के भेजने पर वह प्रयोजन सिद्ध करता, न भेजने पर वह ऐसे ही बैठे रहता। रण में राजपुत्र की हैसियत से युद्ध करता।
चौथे व्यक्ति में न अर्थ का आकर्षण था और न मान-सम्मान था। इन चार में से दूसरे और चौथे व्यक्ति को राज-सेवा का अवसर नहीं दिया गया।
(गा. ४५५७-५६ टी. प. ६४, ६५)
१२६. यथाकृत भोजन
एक गांव में अनेक साधुओं का आगमन हुआ। एक मुनि एक घर से रोटियां लाया। दूसरे मुनि ने भी वहीं से रोटी ग्रहण की। इसी प्रकार तीसरे, चौथे और पांचवें मुनि ने भी वहीं से आहार लिया। सभी आचार्य के पास आए। गोचरी दिखाई। गुरु ने देखा सभी के पात्रों में समान रोटियां हैं। उन्होंने सोचा, यह भिक्षा उद्गम आदि दोषों से युक्त तो नहीं है ? एक मुनि को उस घर में निरीक्षण करने भेजा। वह मुनि वहां गया और गृहस्वामी से पूछा-क्या आज आपके घर में कोई उत्सव विशेष है या कोई मेहमान आए हैं जो आपने इतना आरंभ-समारंभ किया है ? आपने मुनियों के लिए यह भोजन सामग्री बनाई है अथवा क्रीत की है ? मैं इस भिक्षा-वेला में किसी अतिथि को नहीं देख रहा हूं। मुनि ओजस्वी था। गृहस्वामी उससे प्रभावित हुआ और उसने कहा—यह भोजन यथाकृत है, औद्देशिक नहीं। मुनि को विश्वास हो गया। आचार्य के पास आकर उसने वस्तुस्थिति निवेदित कर दी। आचार्य ने उस घर को सब के लिए खोल दिया। (गा. ४५७६ टी. प. ६७)
१३०. समता का उत्कृष्ट उदाहरण
चिलाती पुत्र व्युत्सृष्ट-त्यक्तदेह होकर कायोत्सर्ग में थे। उसके शरीर पर लगे रक्त के गंध से पिपीलिका आदि जन्तु शरीर पर चढ़े और उसको चालनी बना डाला । परन्तु वह क्षण भर के लिए भी विचलित नहीं हुआ। १३१. साधना की परम कसौटी
___ कालादवैश्य मौद्गलशैल शिखर पर साधना रत था। एक प्रत्यनीक देव शृगाल का विकराल रूप बनाकर उसको खाने लगा। उसने उस उपद्रव को समभाव से सहा । १३२. बांसों का झुरमुट
एक मुनि प्रायोपगमन अनशन में स्थित था। उसे अनशन में देखकर कुछ प्रत्यनीक व्यक्तियों ने उसे उठाकर बांस के झुरमुट पर बिठा लिया। बांस फूटने लगे। उन बढ़ते हुए बांसों ने मुनि को बींध डाला और ऊपर उछाल दिया। पर मुनि ने उस वेदना को समभाव से सहा।
१३३. पिता-पुत्र और शृगाली अवंतीसुकुमाल अपने बाल पुत्र के साथ साधना में थे। शृगाली ने उन्हें तीन रात तक खाया।
(गा. ४४२५ टी. प. ८०) १३४. अनशन में उत्कट वेदना
___ कुछ मुनि पादपोपगमन अनशन में स्थित थे। वे प्रदेश विशेष में नदी के किनारे एक स्थान पर अपने शरीर का त्याग कर साधना में संलग्न हो गए। पानी बरसा। उफनती नदी के पानी में बहते हुए वे नदी के एक संकरे स्रोत में फंस गए।
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