________________
परिशिष्ट-८
[१४३
को पकड़ लेगा। तब मैं उछलकर सभी का निस्तरण कर दूंगा। तब सभी सियार पंक्तिबद्ध होकर सिंह की पूंछ पकड़कर कुएं के बीच उतरे। सिंह ने उछलकर सभी सियारों को कुएं से बाहर निकाल दिया। सभी सियारों ने ऊपर देखा। गगन में चन्द्रमा को देखकर वे प्रसन्न हुए। कुएं में देखा तो पानी के विलोडन के कारण चन्द्रबिम्ब न दिखने पर उन्होंने सोचा कि 'हमने चन्द्रमा का उद्धार कर दिया है।
___कुछ समय पश्चात् ऐसी ही घटना दुबारा घटी। उन सियारों में से एक सियार वहां कूप पर था। उसने सोचा, मैं भी सिंह की भांति चांद का उद्धार करूं। उसने अन्य सियारों से कहा--सभी मेरी पूंछ को पंक्तिबद्ध होकर पकड़ लें और कुएं में उतर जाएं। सभी सियार पूंछ पकड़कर कुएं में उतर गए। सियार ने सबके निस्तरण के लिए छलांग लगाई। वह असमर्थ था। सभी कुएं में गिरकर मर गये ।
(गा. १३८२ टी. प.७) ७१. नीलवर्णी सियार
___एक सियार रात में एक घर में घुसा। घरवालों ने उसे देख लिया। वे उसे बाहर निकालने लगे। उसे देख कुत्ते भौंकने लगे। वह भयभीत होकर इधर-उधर भागते हुए एक नीले रंग के कुंड में गिर पड़ा। ज्यों-त्यों उससे वह बाहर निकला। नीले रंग के कारण वह नीलवर्ण वाला हो गया था। उसको देखकर हाथी, शरभ, तरक्ष तथा अन्य सियार आदि पशुओं ने पूछा-तुम इस वर्ण वाले कौन हो ? उसने कहा—सभी वन्य पशुओं ने मुझे 'खसद्रुम' नाम से मृगराज बना दिया है। इसलिए मैं यहां आकर देखता हूं कि मुझे कौन प्रणाम नहीं करता है ? उन पशुओं ने सोचा, इसका वर्ण अपूर्व है, निश्चित ही यह देवता द्वारा अनुगृहीत है। वे बोले-देव ! हम सब आपके किंकर हैं। आप आज्ञा दें। हम आपके लिए क्या करें ? खसद्रुम बोला-मुझे हाथी की सवारी उपलब्ध कराओ।' उन्होंने आज्ञा का पालन किया। अब वह खसद्रुम हाथी पर चढ़कर घूमने लगा। एक बार उसे एक सियार मिला। वह आकाश की ओर मुंह कर 'हूं हूं' करने लगा। खसद्रुम भी अपने सियार स्वभाव के कारण उसी प्रकार आकाश की ओर मुंह करके 'हूं हूं' की आवाज करने लगा। तब हाथी, जिस पर वह चढ़ा हुआ था, ने जान लिया कि यह भी सियार ही है, उसने सूंड से उस खसद्रुम को धरती पर पटक कर मार डाला।
(गा. १३८३ टी.प.७) ७२. शशक ने सिंह को मार डाला
एक सिंह था। वह हरिणजाति में आसक्त था। वह प्रतिदिन हरिणों को मारकर खा लेता था। एक बार हरिणों ने सिंह से प्रार्थना की-वनराज ! आप केवल हरिणजाति पर आश्रित हैं। आप प्रसाद करें। सभी मृगजातीय अर्थात् अरण्य पशुओं को प्रतिदिन एक-एक के क्रम से खाइए। सिंह ने सोचा, इनका कहना युक्तियुक्त है। तब सिंह ने सभी मृगजातीय पशुओं को एकत्रित कर कहा -तुम सब यह निर्णय करो कि अपने-अपने कुल के औचित्य से, अपने-अपने क्रम के अनुसार प्रतिदिन एक पशु मेरे स्थान पर आ जाए। मुझे कहीं जाना न पड़े। उन पशुओं ने सिंह की शर्त स्वीकार कर ली। अब वन्य पशु बारी-बारी से सिंह के पास जाने लगे। एक बार शशक जाति की बारी आई। सभी शशक एकत्रित हुए, आपस में मंत्रणा की। पूछा गया-आज सिंह के पास कौन जाएगा ? एक वृद्ध शशक बोला-मैं जाऊंगा। सभी वन्य पशुओं के लिए शांति कर दूंगा। वह बूढ़ा शशक वहां से चला। मार्ग में एक कुआँ था। वह मरुप्रदेश के कुओं की भांति बहुत गहरा था। वह शशक वहां बैठ गया और संध्या के समय सिंह के पास पहुंचा। सिंह बोला-अरे ! तुम सायं यहां आए हो? इतना विलंब क्यों ? शशक बोला-प्रभो ! मैं प्रातः ही यहां पहुंच जाता, परन्तु मार्ग में एक सिंह ने मेरा मार्ग रोककर पूछा-कहां जा रहे हो ? मैंने कहा-मृगराज के पास जा रहा हूं। तब वह बोला--मृगराज तो मैं हूं। दूसरा कौन होता है मृगराज ? तब मैंने कहा-यदि मैं अपने मृगराज के पास नहीं जाऊंगा तो वह कुपित होकर शशक जाति का ही उच्छेद कर देगा। इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ और सारी बात बताता हूँ। दोनों में जो बलवान् होगा, हम उसकी आज्ञा मानेंगे। तब उस मृगराज ने मुझे कहा--जाओ। अपने मृगराज को कहो कि यदि उसमें शक्ति है तो मेरे सामने आए। तब मृगराज बोला-तुम उस सिंह को मुझे दिखाओ। तब शशक सिंह को साथ ले उस कूप की ओर चला। दूर स्थित होकर शशक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org