SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क०७,९,८,१-९,९,१ उत्तरकण्डं-णवइमो संघि [२८७ ॥ पत्ता ॥ दुरियहाँ अवसाणे विणिग्गेवि कहें कि होसइ महुमहणु । को हउ मि भडारा होसमि को होएसइ दहवयणु' ॥९ [८] तं णिसुणेवि केवल-णाण धरु पभणइ सीराउहु मुणि-पवरु ॥१ 'आयण्णहि पुठवें सुरगिरिहे. जग-पायड-विजयावइ-पुरिहें ॥२ सम्मत्त-धीर-अवलंम्बियहाँ . होसन्ति सुणन्द-कुडुम्वियहाँ ॥३ रोहिणिहें गन्भे दिढ:कढिण-भुअ तो अरुहदास-रिसिदास सुअ॥४ वहु-कालें वय-गुण-णियम-धर होसन्ति सुराल' पुणु अमर ॥ ५ तेत्थहाँ चवेवि णिम्मल-विउले होसन्ति पडीवा तहिँ जे कुलें ॥६ दरिसाविय-चउविह-दाण-गुणु हरि-खेत्ते वे वि होसन्ति पुणु ॥७ तेत्थों वि पीय-जिण-धम्म-रस होसन्ति सणय-कुमार तियस ॥ ८ ॥घत्ता ॥ सायरइँ सत्त सुहु भुजेवि चवणु करेप्पिणु सुरपुरिहें। होसन्ति पडीवा वेण्णि वि ताहें जें विजयावइ-पुरिहें ॥९ [९] जस-धणहों कुमार-कित्ति-पहुहें गन्भन्भन्तरें लच्छी-बहुहें ॥१ होसन्ति मणिट्ट पहाण सुय जयकन्त-जयप्पह-णाम-जुअ॥२ तहिँ धरेवि घोर-तव-भार-धुर सत्तमएँ सगर्गे होसन्ति सुर ॥३ तहि काले सयल-णिहि-रयणवइ तुहुँ भरहें हवेसहि चक्कवड ॥४ लन्तव-सग्गहों चवेवि विवुह होसन्ति वे वि तउ अङ्गरुह ॥ ५ णामें 'इन्दरहम्भोयरह तियसहँ वि रणङ्गणे दुव्विसह ॥६ रयणस्थलें जयरें रजु करेंवि पच्छऍ पुणु दुद्धरु तउ चरेंवि ॥ ७ पावेंवि समाहि तुहुँ विमल-मणु होएसहि वेर्जयन्ते 'सुमणु ॥ ८ इन्दरहु वि जो चिरु दहवयषु जें वसिकिउ णीसेसु वि भवणु ॥९ ॥घत्ता ॥ सो मणुअत्तणे देवत्तणेहिं कइहि मि भवेहि भवेवि णरु । अट्ठविह-कम्म-विणिवारणु होसइ काले तित्थयरु ॥ १० 8. 1 PS पुव्वेहि. 2 Ps °अवलोइयहो. 3 A सिरि . 4 Ps °r°. 9. 1 P °वइहे, 8 वइहि. 2 PS A °हि. 3-4 P S °रुह. 5 P वयि', 8 वय. 6PS जो वि. [4] १ भोगभूमि. २ ' इन्द्र भविष्यन्ति. [९] १.इन्द्ररथाम्भोजरथनामानौ. २ T देवः ॥ mann Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy