SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० | सयम्भुकिङ पउमचरिउ किं लवणु कहूँ अङ्कुसु कुमारु किं पवणञ्जर दहिमुहु महिन्दु किं ण णील वि सत्तुहणु अङ्गु अविणारायण-तणय काइँ • गउ गव चन्दकरु दुम्मुहो वि www किं अवइयं विमल - मइ काइँ करेसइ 'दोण- सुय 10 इय वयहिँ मुणि-जण-मणहरेण आयण्णहि सेणिय दिढ-मणाहँ दस - दिसिं - परिभमिय-महाजसाहँ सुरवर-जण-णयण-मणोहराह कचणणों कञ्चणरहेण 'महु घरिणि जयद्दह जगे पसिद्ध दुइ दुहियउ ताहें वियक्खणड मन्दाइणि - णामें तहिँ 'महन्त 15 20 ऍड परियाणवि सहसति तेहिं परिपेसिय अङ्कुस लवण वे वि णं पचलिय अट्ठ वि दिस- करिन्द 25 अण्णेक तणय साहण- समाण [क० १, ६-११, २१- ९३, १-४ किं लेङ्काहिवु सुग्गीड़ तारु ॥ ६ चन्दोयरि जम्वु इन्दु कुन्दु ॥ ७ पिहुमइ सुसेणु अङ्ग तरङ्गु ॥ ८ to विवि अ-सयाइँ ॥ ९ अवरु वि किङ्करु जो वलहों को वि ॥ १० ॥ घत्ता ॥, TTE सयम्वर- कारण तुम्हहिँ विणु सोहन्ति ण वि किं सुमित्त सुप्पह गुण-सारा । ऍउ सलु वि वज्जरहि भडारा' ॥ ११ [२] वुच्चइ पच्छिम - जिण - गणहरेण ॥ १ वहु-दिवसेंहिँ रात्र लक्तणाहँ ॥ २ अमुणिय- पमाण-कय- साहसाह ॥ ३ मुसुमूरिय-अरिवर- पुरवराहँ ॥ ४ पट्टविउ लेहु कञ्चण- रहेण ॥ ५ सुर-सरि व सुवाणिय कुल-विसुद्ध ॥ ६ अहिणव- जोव्वणउ स - लक्खणाउं ॥ ७ लहु चन्दभाय पुणु रूववन्त ॥ ८ ॥ धत्ता ॥ Jain Education International मिलिय सयल महि - गोयर खेयर । इन्द-पडिन्द - रहिय णं सुरवर ॥ ९ [ ३ ] सरहसेंहिं राम-चकेसरेहिं ॥ १ हरि - णन्दण अड्ड कुमार जे वि ॥ २ णं वसु णं अट्ठ वि विसहरिन्द ॥ ३ पट्ठवियाहु-सय-प्पमाण ॥ ४ 8 P SA दु. 9 P° यई, S इ. 2. 1 Ps सु. 2 P marginally notes a variant सयंपह, A सयद्दह . 3A o. 4 p. २ विभीषणः ३ विसल्ला. [२] १ स्थानातू. २ " सुजला सुवचना च. ३ ज्येष्ठा. [३] १ वस्वष्ट परसमये [इ]ति कथयति. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy