________________
क० १३, ६-१०]
जुज्झकण्डं-एकुणसत्तरीमो संधि [८५ सउदासें जं तहिँ लेक्खियउ तं सयलु णरिन्दहों अक्खियउ ॥ ६ तिहुअणआणन्दु पधाइयउ कलुणइ (?) कन्दन्तु पराइयड़ ॥ ७ सयणहुँ उप्पाइउ दाहु पर जिणु जय भणन्ति मुअऽणङ्गसर ॥ ८ णिय जेण सो वि तउ करेंवि मुउ दसरहहाँ पुत्तु 'सोमित्ति हुउ ॥ ९
॥घत्ता
॥
एह वि मरेवि अणङ्गसर. उप्पण्ण विसल्ला-सुन्दरि । 'वल तहे तणेण जलेण पर स इँ भु व धुणन्तु उट्ठई हरि' ॥ १०
15
[६९. एक्कुणसत्तरीमो संधि]
[१] विजाहर-वयण-रसायणेण आसासिउ वलहदु किह ।
'णहें पडिवा-यन्दं दिट्ठऍण कहि मि ण माइउ उवहि जिह ॥ सरहसैंण पैरजिय-आहवेण . सामन्त पैजोइय राहवेण ॥ १. 'किं कहाँ वि अत्थि मणु सइय-अङ्गे जो एइ अणुर्द्वन्तऍ पयङ्गे ॥२ जो जणइ मणोरह महु मणासु जो जीविउ देइ जणद्दणासु' ॥३ तं वयणु सुर्णेवि मरु-णन्दणेण वुच्चइ रावण-वण-मद्दणेण ॥४ 'महु अत्थि देव मणु सइय-अङ्गे हउँ ऍमि अणुहन्तऍ पयङ्गे ॥५. हउँ जणमि मणोहर तुह मणासु हउँ जीविउ देमि जणणासु' ॥६ 'तारा-तणएण वि वुत्तु एव 'हउँ हणुवहाँ होमि सहाउ देव' ॥७ भामण्डलु पभणइ 'सुणु सुसामि हउँ विहिँ उत्तर-सक्खिणउ जामि ॥८
॥ घत्ता ॥ ते जणय-पवण-सुग्गीव-सुय रामहों चलणेंहिँ पडिय किह । * कल्लाण-काले तित्थङ्करहों तिण्णि वि तिहुवण-इन्द जिह ॥ ९ 8 s तहि मिलहि वि सुरत्तु विसल्लासुंदरि हुय. 9 P S A B उठेइ.
1. 1 P s °वाणरसाहणे. 2 P S A णहि. 3 P S पवडिय°. 4 P मणु corrected as मुण. 5 P S सइवि. 6 S पटुंतए. 7 P S चलणिहि, A वलणिहिं. ३ मयणसरः. ४ लक्ष्मणः. ५ | राम.
[१] १ चंद्रेण. २ जितसंग्रामेण. ३ 'T दृष्टः. ४ सूर्योदये, ५ सूर्योदयेण विना आगटामि ६ अंगदेन.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org