________________
२०११, २-१०, १२, १-१०]
जुज्झकण्डं-छासट्ठिमो संधि ६९ एत्तहें वि हणुउ वहु-मच्छरेण किर आयामिजइ णिसियरेण ॥२ ताणन्तर रामें सरहिं छिगणु, जिउ कह वि किलेसें कुम्भयण्णु ॥ ३ पेक्खन्तहाँ तहाँ रावण-वलासु वन्धेवि अप्पिउ भामण्डलासु ॥ ४ अवरो वि को वि जो भिडिउ जासु परमप्पर व्व सो सिद्ध तासु ॥५ एत्तहे वि ताव भय-भीसणेण रावण-धणु छिण्णु विहीसणेण ॥ ६ । परियलिऍ-चावे सियं-प्राणणेण आमेल्लिउ सूलु दसाणणेण ॥७ सरवरेंहिँ त पि अक्खित्तु केम वलि भुक्खिएहिँ 'भूएहिँ जेम ॥ ८ रोसिउ दहगीउ वि लड्रय 'सत्ति णावइ दरिसावइ णियय सत्ति ॥ ९
॥ घत्ता ॥ दाहिणऍ करें
रेहइ कइकसि-णन्दणहाँ।। सम्पाइय (?) गाइँ भवित्ति जणद्दणहाँ ॥ १०
[१२] 'जा गजन्त-मत्त-मायङ्ग-कुम्भ-णिद्दलण-सीला।।
दुद्धर-णरवरिन्द-दणुइन्द-विन्द-विद्दवण-लीला ॥ १ जा वइरि-णारि-रोवावणिय रह-तुरय-थट्ट-लोट्टावणिय ॥२ जा विजु जेम्व भीसावणिय जम-लोय-पन्थ-दरिसावणिय ॥३ जा दिण्णी वालि-तव-चरणे धरणेन्दें कविलासुद्धरणे ॥४ सा सत्ति सत्तु-सन्तासणहों किर मुअइ ण मुअइ विहीसणहों ॥५ तावहिँ खर-दूसण-महणेण -- रहु अन्तरे दिण्णु जणद्दणेण ॥ ६ 'अरें खल जीवन्तु ण जाहि महु जइ सत्ति सत्ति तो मेल्लि लहु' ॥७ तं णिसुणेवि रयणासव-सुऍण आमेल्लिय गजोल्लिय-भुऍण ॥ ८ विन्धन्तहुँ णल-णीलङ्गय? अवरहु मि असेसहुँ कइधयहुँ ॥९
॥ घत्ता ॥ तो लक्षणहों पडिय उर-स्थलें सत्ति किह । - दिहि रावणहाँ
रामों दुक्खुप्पत्ति जिह ॥ १० . 2 P S स्मण°. 3 s °सुवासु. 4 S A परियलिय. 5 A तिं. 6 P S उक्खित्त. 7 P भुखिएहि भूएहि, s मुक्खियेहि भुक्खेहि, 4 भुक्खिवएहि. 8 A भाइ णाई.
12. 1 Ps read दुवई in the beginning. 2 °दणुइंदविंद is not found in A. 3 Ps रोवावणिया and similarly the next three padas end in °या. 4 Ps. कालासु. 5 PS असेस', . असेसहु. 6 P कइद्धयहुँ, s कइयहु, A कइवयहुं. 7 A तो वि. 8A रामणहो. __ [११] १. शक्तीविद्या.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org