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________________ क० २, ५-१०, ३, १-१० ] सो विउ जो णं वि मैइलियड जउ रमइ दिट्ठित 'रय - जियरु वि के विधावन्ति भड जेत्त सन्देण दणु-मीसियइँ जे धणुहर गुण - गहिय सर तेहऍ समरें गय- "गिरिवरेंहिं जुज्झकण्ड - छासट्टिमो संधि [ ६३ सो ण वि धउ जो ण वि कैवलियउ ॥ ५ re as मणुसु ण स्यणिवरु ॥ ६ जेत्त हें गलगज्जइ हत्थि-हडें ॥ ७ सुन्वन्ति तुरङ्गम- हिंसियइँ ॥ ८ जेत्त हुँङ्कार अन्ति र ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ [३] 'गयर - गण्ड-सेल- सिहंग्ग - विणिग्गय णइ तुरैन्ति । उद्धुवै धवल - छत्त' डिण्डीरुपील - समुब्वर्हन्ति ॥ १ पवरोज्झर -सोणिय - जल-पवाह चक्कोहर - सन्दण-सुमार मत्तेभ- कुम्भ- भीसण- सिलोह तं इतरेवि के "विवादति के विश्य धूसर के वि रुहिर - लित्त " विलग्ग पडीवा दन्त-मुसलें कें "विणियय-विमाणों झम्प देन्ति तर्हि तेहऍ रणें सोणिय- जलेण रावणवण पडिपेल्लिय सूरह मि भजन्ति 'मई । तामसमुट्ठिय रुहिर गई ॥ १० 11 Ps मालि (s य° ) उ. 12 P मइर्लिंभउ, A कइलियड 13PS °हडा, A ° जड. 144 सं. 15 Ps हुंकारु. 16 P मुभत्ति, A मुयंत. 17 P सूरहं, s सूरह, A सूराहं. 18 PA महं. 19 PA हूं. 15 करि-मयर-तुरङ्गम-क-गाह ॥ २ करवाल-मच्छ-परिहच्छ-वीर ॥ ३ सिय- चमर - वलीया - पन्ति-सोह ॥ ४ वुडन्ति के वि के वि उच्चरन्ति ॥ ५ ॥ के "वि हस्थि- हडऍ विहुणेवि घित्त ॥ ६ णं धुत्त विलासिणि- सिहिर्णे-जुअलें ॥ ७ णहें णिवर्डेवि वइरिहिँ सिरइँ लेन्ति ॥ ८ रउ णासि सज्जणु जिह खलेण ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ किउ विवरांमुहु राम लु । दुब्वाएं उबहि-जलु ॥ १० . 3. 1ps read दुबई in the beginning. 24 एग 3PA तुरंतिया, 3 तरंति. 4 A अअ . 5 पील wanting in Ps. 6 P marginally corrects as समुब्वइंतिया, 4 समुब्वहंतिया 7s °ग्गाहु, A °ह. 8 A चकोरसद्दणं, 9 P °चार 10s वलीया', A°वलाय. 11s A कि वि. 12 A उडुंति. 13 A उहहंति 14s कि वि. 15 A अहर 16 P 6 सोसिड. 17 P A विवरामुहुः 18 4 पडिपेल्लियओ. 5 १ (१. reading) व्याप्तः ३ रज ( जो ) निःकर. ४ न ज्ञायते ५ राक्षसः ६ मति, ७ गजः एवं पर्वता. [३] १ गजा एव गंडसेला लघुपर्वताः. २ फेनु. Jain Education International For Private & Personal Use Only 10 20 • www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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