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________________ ५८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०६१-९,७,१-९ पर-वल णिएवि रणे उत्थरन्तु लङ्काहिवेण थरथरहरन्तु ॥ १ करें कड्डिउ णिम्मलु चन्दहासु उग्गमिउ गाई दिणयर-सहासु ॥२ रिउ-साहणे भिडई ण भिडइ जाम सोण्डीर वीर पर तिणि ताम्व ॥ ३ ; इन्दइ-घणवाहण-वजणक सिर-णमिय-कियञ्जलि-हत्थ थक्क ॥ ४ . 'अम्हेंहि जीवन्तेंहिँ किङ्करेहिँ तुहुँ अप्एणु पहरहि 'किं करेहिँ' ॥५ सामिउ सम्माणवि वद्ध-कोह तिण्णि मि समरङ्गणे भिडिय जोह ॥६ चण्डोअर-तणयहाँ वजणकु घणवाहणु भामण्डलहों थक्कु ॥७ इन्दइ सुग्गीवहाँ समुहु वलिउ णं मेरु महोअहि 'महहुँ चलिउ ॥८ ॥ घत्ता ॥ णरु णरवरहों तुरयहाँ तुरउ समावडिउ। रहु रहवरों गयों महगउ अभिडिउ ॥९ [७] संञ्जऍ जय-लच्छि-पसाहणेण तिहुअणकण्टय-गय-वाहणेण ॥१ 15 हक्कारिउ सुरवइ-मद्दणेण सुग्गीउ दस -णन्दणेण ॥२ 'खल खुद्द पिसुण कइ-केई राय लङ्काहिव-केरा कुद्ध पाय ॥ ३ जिह रावणु मेल्लेवि धरिउ रामु तिह पहरु पहरु तउ लुहमि णामु॥४ तं णिसुणेवि किक्किन्धेसरेण विजाहर-णर-परमेसरेण ॥ ५ णिन्भच्छिउ इन्दइ 'अरें कु-मल्ल को तुहुँ को रावणु कवणु(?)वोल्ल' ॥६ 20 दोच्छन्त परोप्परु भिडिय वे वि सुं-पंणामइँ चाव करेंहिँ लेवि ॥ ७ दीहर-णाराऍहिँ उत्थरन्त । णं पलय-जलय णव-जलुं मुअन्त ॥८ ॥ घत्ता । विहिं मिजणेहि छाइउ गयणु महासरेंहिँ। णव-गन्भिणेहिँ पाउस-कालें व जलहरहिं ॥ ९ 6. 1 F S समुत्थरंतु. 2 PS थरहरथरंतु, A थरथरहंतु. 3 P S णाइ, A नाइ. 4 A भिडड न भिडउ. 5 P जावं. 6 P तावं. 7 A पहरणु. 8 A वजकण्णु. 9 P S घणुवाहणु. 10 A wण्णु. 11 SA सहहु. 12 A महागउ. 7. 1 A तहिं अवस सिर गंदणेण कोक्किउ सुरवहसुउ महणेण. 2 P रामणु. 3 PS सुपणामइ, A सुपणावह. 4 A जल. 5 P वेहि, s वेहि. [६] १ किं हस्तैः. २ मंथने. [७] १ संग्रामे. २ त्रिभुवनकंटको नाम रावणस्य हस्ती संवाहनो यस्य. ३ पताका. ४ विख्यात (1). www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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