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________________ २८४] 10 सयम्भुकिउ पउमचरिउ थोवन्तरें तो सायरहों मज्झें विजाहर से समुह वे वि 'मरु तुम्हहँ कुइउ कयन्तु अज्जु s को पइसइ भीसणें जल - जालें को सेस-फणामणि- रयणु लेइ पच्चारि सयल वि अमरिसेण अह कुमुअ कुन्द सुणि मेहणाय दहिमुह माहिन्द महिन्द-राय एत्थन्तरे जयसिरि-लाहवेण 1" 'एए जे दणु दीसन्ति के वि तं वयणु सुर्णेवि पणमिय- सिरेण सुग्गीवें भणिउ रामचन्दु दवणों के मु लेवि आहुँ पडिमलु ण को वि समरें 2" तं णिसुर्णेवि रामहों हियउ भिण्णु पणिवा करेष्पिणु ते पयट्ट ॥ घत्ता ॥ लइ वलहों वलहों जइ सक्कों कहिँ लङ्का उवरि पर्याणड णलु घाइउ समुहु समुद्दहों गर गयों मइन्दु मइन्दहों [२०] १ गर्व नीताः, गृद्धिं प्रापिताः. [११] १ गलगर्जनं कृत्वा . Jain Education International [१०] वेलन्धर - पुरें तिर्यसहँ असज्झें ॥ १ थिय अग्गऍ दारुणु जुज्झु देवि ॥ २ को सक्कइ सक्कों हरेंवि रज्जु ॥ ३ को जीवइ ढुक्कऍ पल्य-कालें ॥ ४ को लङ्कहें अहिमुँहु पर वि देइ' ॥ ५ 'अक्किन्धाहिव अहो सुसेण ॥ ६ णल णील विराहिय पवण-जाय ॥ ७ अवर वि जे' णरवर के वि आय ॥ ८ 'हेवाइय पोरक्कऍहिँ । से समुद्देहिँ थक्कऍहिँ ' ॥ ९ [११] सुग्गीड पपुच्छिउ राहवेण ॥ १ कसु केरा थिय पहरणइँ लेवि ॥ २ पुणु पुणु थोग्गीरिय-गिरेण ॥ ३ 'ऍहु सेउ भडारा ऍहु समुहु ॥ ४ पाइक्काचारें थक्क वे वि ॥ ५ जइ दिन्ति जुज्झु णल-णील णवरें' ॥ ६ णिविसेण विहि मि आएस दिष्णु ॥ ७ रोमंश्ञ्च- उच्च-कञ्चुअ-विसट्ट ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ [ क० १०, १- ९, ११, १-९ 10. 1 Ps तिसहु, तियसहु, A तिसहं, 2 PS जलणे. 3 Ps णियय, P marginally 'पलयकाले' पाठे. 4 P A अहिमुहुं, s अहिमु. 5Ps सुणि. 6 P णरवइ जे, 8 णरवर जे. 7 A पयाणडं. 8PS सेय. 11. 1 A के. २ P sणाउ 3 Ps विहि वि, A विहिं मि. 4 Ps रोवंच 5Pg कंचुह 6 P ओरालवि, s उरालवि, 4 ओरालिवि. सेउ णीलु समावडिउ । जिह 'ओरालेवि अभिडिउ ॥ ९ २ शत्रुजनैः. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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