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________________ कं० १२, ९, १, १ - १२] इय चरियाइँ सुवि अवरुण्डिर हणुवन्तु हवाग में दिवसयरुग्गमें गजेंवि दहवयणहों उपरि [ ५६ छप्पण्णासमो संधि ] हयानन्द - भेरी दंडी दिण्ण सङ्घा जयं णन्दणं णन्दिघोसं सुघोसं वर वैरि गहीरं पहाणं सिवं सन्तियत्थं सुकल्लाण-धेयं पणज्सुणी दुन्दुही नन्दिस विवाहप्पियं पत्थिवं णायरीयं मङ्गल-तूर हूँ णाहिँ एऍहिँ डउँडउँ-डउँडउँ-डमरुअ-सहिँ धुम्कु-धुम्मुकु-धुम्मुकु-तालेंहिँ किस-किस - सरेहिं मणोजेंहिँ दुग्गड - गेग्गदु-घाऍहिँ तं तूरहूँ सहु सुणेपिणु सरि-सोत्तेंहिँ आवेंवि" आवेंवि 18 . Jain Education International सुन्दरकाण्डं - छप्पण्णासमो संधि ॥ घन्ता ॥ वेड- दुम-पारोह -विसालेंहिँ । राहवेण स इं भुव-डालेंहि ॥ ९ दसरह-वंस-जेसुब्भर्वेण । दिणु पयाड राहणं ॥ [१] [ २७९ . करप्फालियाणेय तूराण लक्खा ॥ १ सुहं सुन्दरं सोहणं देवघोसं ॥ २ जणाणन्द - तूरं सिरीवद्धमाणं ॥ ३ महामङ्गलत्थं णरिन्दाहिसेयं ॥ ४ पवित्तं पसत्थं च भदं सुभदं ॥ ५ पयाणुत्तमं वद्धणं पुण्डरीयं ॥ ६ gg अण्णण अण्णेंहिँ भेऍहिँ ॥ ७ तरडक-तरडक-तरडक-हिँ ॥ ८ रुं- रुं-रुं-रुञ्जन्त-वमालेंहिँ ॥ ९ दुणिकिटि-दुणिकिटि-रिमदि-वज्र्जे हिँ याय भेय - संघाऍहिँ ॥ ११ www ॥ घत्ता ॥ राहव- साहणु 'संमिलैइ । सलिल समुद्दों जिह मिलइ ॥ १२ 11 P णवपरोहपचंडिहि, S णवर परोहपचंडे हि. 12Ps दंडेहि. • 1. P S समुब्भवेण. 2 P s उप्परे. 3 A पयाणउं. 4 A has ध्रुवकं at the end of the stanza, 5 Ps दडिं. 6 Ps जया. 7 P s वरीहं 8 P s पहारं 9PS पसण्णाझुणी. 10 P णामहिं णामहि, A शामिहिं. 11s धुम्मुकू, A धुम्मुक्क. 12 P डुनकिट्टि, s डणकिट्टि, A दुणिकिट्टि. 13 P $ थरुमट्टि, 4 थरिमदि. 14 P गेगेगेदुगेगेगेदुगेथरिगिथएहिं, s गिगदुगिगिगिदुगिथरिरिगिथाएहि. 15 A. omits this pada. 16 Ps. omit this word. 17 P संमेलs, s चलs. 18s पिहिमिहि भाणेवि. [१] १. एकीभवति, For Private & Personal Use Only 5 10 15 23 www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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