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________________ · २२४ ] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क.६, १०,७,१-3036,14 |घत्ता ॥ जइ एम विण किउ णिवारिउ तो आवामिय-आहवहों। रणे हणुव तुज्झु पेक्खन्तहाँ होमि सहेजउ राहवाँ ॥ १० [७] तं णिसुणेप्पिणु पवणे-सुउ स-रहसु पुलय-विसट्ट-भुई। पंडिणियत्तु विवरम्मुहउ गउ उजाणहाँ सम्मुहउ ॥१ पट्टणु णिरवसेसु परिसेसेवि अवलोयणियहें वलेंण गंवेसेंवि ॥२ रवि-अत्थवणे सुहड-चूडामणि पवरुजाणु पयट्टिउ पावणि ॥ ३ जं सुरवरतरूहिँ संछण्णउ मल्लिय-ककेल्लीहिँ रवणंउ ॥ ४ 10 लवलीलय-लवङ्ग-णारङ्गैहिँ चम्पय-वउल-तिलय-पुण्णग्गेंहिँ ॥५ तरल-तमाल-ताल-तालूऎहिँ मालइ-माहुलिङ्ग-मालूमेहिँ ॥ ६ भुअ-पउमक्ख-दक्ख-खजूरॉहिँ कुङ्कुम-देवदारु-कप्ताहिँ ॥७ वर-करमर-करीर-करवन्देहिँ एला-ककोलेहिँ सुमन्देहिँ ॥ ८ चन्दण-वन्दणेहिँ साहारॅहिँ एंव तरूहिँ अणेय-पयाहिँ ॥ ९ ॥ पत्ता । तहों वणहों मझें हणुवन्तण सीय णिहालिय दुम्मणिय । णं गयण-मग्गें उम्मिल्लिय चन्द-लेह वीयहें तणिय ॥ १० [८] सहिय-सहासेंहिँ परियरिय णं वण-देवय अवयरिय । तिल-मित्तु णऽवलक्खणु जहें णिवण्णिजइ का तहें ॥ १ वर-पाय-तलेंहिँ पउणारएहिँ सिङ्घल-णहेहिँ दिहि-गारऍहि ॥ २ उच्चङ्गुलिऍहिँ वेउल्लिएहिँ वटुंऍिहिँ गुप्फेहिँ गोल्लिएहिँ ॥ ३ वर-पोट्टरिऍहिँ मायन्दिएहिँ 'सिरि-पवय-तणिऍहिँ मण्डिएहिँ ॥४ ऊरुअ-जुएण णिलएण कडिमण्डलेण करहाडएण ॥ ५ 25 वर-सो'णिऍ कञ्ची-केरियाएँ तणु-णाहिएण गम्भीरियाऍ ॥ ६ ___7. 1 s पवणसुओ. 25 °भुओ. 3 PS पडिणियंतु, A पडिनियत्तु. 4 PA विवरम्मुहवं, 5A सम्मुहउं. 6 RS A गवेसिवि. 7 P A संच्छण्णउं. 8A रवण्णउं. 9 PS लवलिलवंगएल. 10 °णारिंगेहि, A नारिंगेहिं. 11 A °पुण्णागेहिं. 12 P S करउंदेहि. 13 PS कोलेहि. 14 P S एवं तरुहि अण्णण्ण पयारहि (P °पयारहिं). 15 P उम्मेल्लिय, A उम्मिलि. 8. 1 P तिणमेत्तु वि, तिलमित्तु वि. 2 P वेउल्लेहि, s वेउल्लिएहि, A चेउल्लिएहिं. 3 P वर्ल्डल्लिएहिं, S वटुंल्लिहि, A वटुलियहिं. 4 P गोलएहिं, S गोलएहि. 5 PS.जुयले. 6 Aणेयालएण. 7 PS °सोणिय, A °सोणी. 8 A केरियए. 9A °णा. 10 A गंभीरियए. [८] १ गोर्यावत् मण्डनैः (१). - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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