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________________ क० १, ५-९, २, १-९,३, १-२] वीसमो संधि १६३ पल्हायहाँ पडिदिणयर-पर्वणहुँ जाणेवि समरु वरुण-दहवयणहुँ ॥४ मारुइ सयण-जयासाऊरॅहिँ बुच्चइ पवणञ्जय-पडिसूरेहिं ॥५ 'वच्छ वच्छ परिपालहि मेइणि माणहि राय-लच्छि जिह कामिणि ॥ ६ अम्हेंहिँ रावण-आण करेवी पर-वल-जय-सिरि-वहुअ हरेवी'॥७ तं णिसुणेवि अरि-गिरि-सोदामणि चलण णवेप्पिणु पभणइ पावणि ।। ८ । ॥ घत्ता ॥ 'किं तुम्हें विरुज्झहों अप्पुणु जुज्झहाँ मइँ हणुवन्ने हुन्तऍण । पावन्ति वसुन्धर चन्द-दिवायर किं किरणोहें सन्तऍण' ॥९ [२] भणइ समीरणु 'जयसिरि-लाहउ अज्जु वि पुत्त ण पेक्खि आहउ ॥ १ ॥ अज्जु वि वालु केम तुहुँ जुज्झहि अज्जु वि वूह-भेउ णउ वुज्झहि ॥२ तं णिसुणेवि कुविउ 'पवणञ्जइ 'वालु कुम्भि किं विडंवि ण भञ्जइ ॥ ३ वालु सीहु किं करि ण विहाडइ किं वालग्गि ण डहइ महाडइ ॥४ वालयन्दु किं जणे ण मुणिज्जइ वालु भडारउ किं ण थुणिज्जइ ॥ ५ वालु भुवङ्ग, काइँ ण डङ्काइ बाल-रविहें तमोहु किं थक्कई॥६ एम भणेवि पहञ्जणि-राणउँ लकाणयरिहें दिण्णु पयाणउ ॥ ७ । दहि-अक्खय-जल-मङ्गल-कलसहिँ गड-कइ-बन्दि-विप्प-णिग्योसहि ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ हणुवन्तु स-साहणु परिओसिय-मणु एन्तु दिटु लङ्केसरण । छण-दिवसें वलन्तउ किरण-फुरन्तउ तरुण-तरणि णं ससहरण ॥९ 20 दरहों 'जे तइलोक-भयावणु सिरु णावेवि जोकारिउ रावणु ॥ १ तेण वि सरहसेण सबङ्गिाउ एन्तउ सामीरणि आलिङ्गिउ ॥ २ 3 A पल्हायहुं पडिदिगयरतणयहुं. 4 P पवणहु, S तवणहु. 5 A वोल्लइ. 6 P तुम्ह, s तुम्हे हिं, A तुम्हि. 7 The whole portion following तुम्हि wanting in A. 8 P हणुअंतें, s हणुवतें, A wanting. 2. 1 The first two lines are wanting in A. 2 5 अज. 3 P S अन्ज, 4 A विडव. 58 वालइंदु. 6s A भुयंगमु. 7s पहंजणे, A पहंजणु. 8 P SA राणउं. 9P SA प्रयाणउं. 10 A जय. 11 A °सेसहि. 12 P विप्प corrected to विंद, चिंद, 18 s किरणु. 3. 1 PS जे. ३ विद्युत्. [२] १ हनूमन्त. २ वृक्षम्. ३ हनूमन्तम्. ४ आगच्छतु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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