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________________ ॥ वा १५८ क्लमचरित [क० १०, 6-2011-0R तं णिसुणेवि जाणेवि सरेंवि गुणु अतिल्लु तेहिं ता रुण्णु पुणु ॥८ जं लईउ आसि पुण्यहिँ विणु तं दिण्णु विहिहे णं सोय-रिणु ॥ ९ ॥ पत्ता ॥ सैरहसे साइउ देन्तऍहिँ जं एक्कमेक्कु आवीलियउ । अंसु पणालें णीसरइ णं कलुणु महारसु पीलियउ ॥ १० [११] दुक्खु दुक्खु साहारेवि णयण लुहार्वेवि । माउलेण 'णिय णियय-विमाणे चडावेवि ॥ १ सुर-करिवर-कुम्भत्थल-र्थणहें गयणङ्गण जन्तिहें अञ्जणहें ॥ २ 10 णीसरिउ वालु अइ-दुल्ललिउणं णहयल-सिरिहें गम्भु गलिउ॥३ मारुइ देवत्ति णिवडिउ इलहें णं विजु-पुञ्ज उप्परि सिलहें ॥ ४ उच्चाऍवि विउ विज्जाहरहिँ णं जम्मणे जिणवर सुरवरोहिँ ॥ ५ अक्षणहें समप्पिउ जाय दिहि णं ण? पडीवउ लक्षु णिहि ॥६ णिय-पुरु पइसारेंवि णरवरण जम्मोच्छउ किउ पैडिदिणयरेण ॥ ७ ॥ घत्ता ॥ 'सुन्दर' जगें सुन्दर भणेवि "सिरिसइलु' सिलायलु चुण्णु णिउ । हणुरुह-दीवें पवड्डियउ ‘हणुवन्तु' णामु तें ताहुँ किउ ॥ ८ [१२] एत्तहे वि' खर-दूसण मेल्लावेप्पिणु । वरूणहों रावणहो वि सन्धि करेप्पिणु ॥ १ णिय-णयह पईसइ आव मरु णीसुण्णु ताम णिय-घरिणि-घरु ॥२ पेक्खेप्पिणु पुच्छिय का वि तिय 'कहिँ अञ्जणसुन्दरि पाण-पिय' ॥३ तं णिसुणेवि वुच्चइ वालियएँ 'णव-रम्भ-गब्भ-सोमालियएँ ॥ ४ 7 PS अतिल्लु तेण ता रुण्ण पुणु. 8 P S लइयउ, A लयउ. 9A विसहि. 10 The Ghatta is missing in A. 11 P सहरसु. 12 s पलाणे, __11, 1 P संहारेवि, 8 सहारिवि, A साहारिवि. 2 PS A चडाविवि. 3 Aथणाहे. 4. अंजणाहे. 5A इडत्ति. 6 सिलहिं. 7 P s जम्मण. 8 A णट्ठ. 9 लद्ध. 10 PS हशुलंद 11 PS पाउ, S नामु. 12 A तहो तेण.. 12. 1 wanting A. 2 PS A मेलावेप्पिणु. 3 This half is metrically des ective by two moras. ३ अत्यन्तम्. ४ शोकऋणम्. ५ आलिङ्गनम्. [११] १ नीता. २ चपल. ३ प्रतिसूर्येण. ४ श्रीशैलं नाम. [१२] १ पवनंजयः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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