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________________ पध्मचरिङ क०१८,३-3031,1-६ तं णिसुणेवि भणइ सुर-ऋन्धन 'तुम्ह वि अम्ह वि एउ णिवन्धष्णु ॥ जमु तलवरु परिपालउ पट्टणु पङ्गणु णिक्किउँ करउ पहज्रशु॥४ पुप्फ-पयरु 'घर देउ वणासइ सहुँ गन्धबंहिँ गायउ सरसइ ॥ ५ वत्थ-सहासइँ हवि पक्खालउ कोसु असेसु कुवेरु णिहालउ ॥ ६ । जोण्ह करेउ मियङ्कु पिरन्तर सीयलु णहयले तवउ दिवायरु ॥७ अमरराउ मजणउ भरावउ अण्णु वि प्रणहिँ छडउ देवावट । ८ संप्रतिवाणु सम्वु सहसारें मुकु सक्नु लङ्कालङ्कारें ॥९ णिय-रजु विवजेवि गड़ पव्यजेवि सासवपुरहों सहसणयणु । " जय-सिरि-वहु मण्डेवि थिउ अवरुण्डबि स भुय-फलिहिँ दहवयणु॥१० इय चारु-प्रउमचरिए धपञ्जयासिय-सयम्भुएव-कए । जाणह 'स व पावि जय' सत्तारहमं इमं पव्वं ॥ . [१८. अट्ठारहमो संधि] रणे माणु मलेवि पुरन्दरहों परियश्चेवि सिहर मन्दरहों। is आवई वि पडीवउ जाम पहु ताणन्तरें द्रिष्टु अणन्तरहु ।। [१] पेक्खेप्पिणु गिरि-कञ्चण-सुभहुँ जिण-वन्दण-दूरुच्छलिय-सद्दु ॥ १ सुरवर-सय-सेव-करावणेण मारिचि पपुच्छिउ रावणेण ॥ २ 'भड-भक्षण भुवणुच्छलिय-णाम उहु कलयलु सुम्मइ काइँ माम' ॥३ ॥ तं णिसुर्णेवि पभणइ समर-धीरु एहु जइ णामेण अणन्तवीरु ॥४ दसरह-भायर अणरण्ण-जाउ सहसयर-सणेहें तवसि जाउ ।। ५ उप्पण्णउ एयहाँ एत्थु णाणु उहु दीसइ देवागमु स-जाणु' ॥६ तं वयणु सुणेप्पिणु णिसियरिन्दु गउ तेत्तहे जेत्तहें मुणिवरिन्दु ॥ ७ परियञ्चेवि णवेवि थुणेवि णिविट्ठ सयलु वि जणु वयइँ लयन्तु दिट्ठ ॥ ८ 4 P णिक्कउ. 5 PS पुरे. 6 PS गंधब्वें, A गंधग्विहिं. 7 A मयंकु. 8 A मि. 9 P S सयं. 10 P °वलेहिं, A °फलिहि हिं. 11 P धर्णजयासु, s ध्रणंजयासि. 12 P जउहाण, s जाउहाण. 1. 1 A आवेषि. 1 Cl. PS °सुहाउ, 2 PS °णाउ. 3 A मारीइ. 4 A सुबइ.5 P.S वीरु. 6 P S उहु. 7-P S एहु. [१] १ अनन्तऋषिनामेदम्. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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