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________________ क०१, १२, १-९,३, १-८] अट्ठारहमो संधि ॥ धत्ता ॥ महवयइँ को वि को वि अणुवय कॉवि सिक्खावयइँ गुणवयइँ । को वि दि९ सम्मत्तु लएवि थिउ पर रावणु एक्कु ण उक्समिउ ॥ ९ [२] धम्मरहे महारिसि भणइ तेत्थु 'मणुयत्तुं लहॅवि वइसरेंवि एत्थु ॥ १ । अहाँ दहमुह मोहन्धारें छूढ रयणायरें रयणु ण लेहि मूढ ॥२ अमियालऍ अमिउ ण लेहि केम अच्छहि णिहुअउ कट्ठमउ जेम' ३ तं वयणु सुणेप्पिणु दससिरेण वुच्चइ थोत्तुग्गीरिय-गिरेण ॥४ 'सक्कमि धूमद्धऍ झम्प देवि सक्कमि फण-फणिमणि-रयणु लेवि ॥ ५ सक्कमि गिरि-मन्दर णिलेवि सक्कमि दस दिसि-वह दरमलेवि ॥ ६ ॥ सकमि मारुउ 'पोट्टलें छुहेवि सक्कमि जम-महिसें समारहेवि ॥ ७ सक्कमि रयणायर-जलु पिएवि सक्कमि आसीविसु अहि णिएवि ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ ॥ सक्कमि सक्कहाँ रणे उत्थरेंवि सक्कमि ससि-सूरहँ पंह हरेंवि। . सक्कमि महि गयणु एक करेंवि दुद्धरु णउ सक्कमि वउ धरेंवि ॥ ९ [३] परिचिन्तेंवि सुइरु णराहिवेण 'लइ लेमि एक्कु वउ' वुत्तु तेण ॥ १ 'जं मइँ ण समिच्छइ चारु-गत्तु तं मण्ड लएमि णे पर-कलत्तु ॥२ गउ एम भणेप्पिणु णियय-णयरु थिउ अचल रज्जु भुञ्जन्तु खयरु ॥ ३ एत्तहें वि महिन्दु महिन्द-णामें पुरवर इच्छिय-अणुहूअ-कामें ॥ ४ तहों 'हिययबेय णामेण भज तहें दुहियञ्जणसुन्दरी मणोज ॥५ झिन्दुएण रमन्तिहें थण णिएवि थिउ परवइ मुहें कर-कमलु देवि ॥६ उप्पण्ण चिन्त 'कहाँ कण्ण देमि लेइ वट्टइ गिरि-कइलासु णेमि ॥७ विजाहर-सयइँ मिलन्ति जेत्थु वरु अबसें होसइ को वि तेत्थु ॥८ ॥ . 8 PS महन्वयई को वि अणुव्वयई. 9 P s को वि गुणवयइं, A missing. 10 PS विठ्ठ. 2. 1 A धम्मरव. 2 A मणुसत्तु. 3 A लेमि. 4 A णिद्दले मि. 5 Ps पोट्टलु, A पोट्टलि. 6 P समारहे मि.7 PS रयणायरे. 8 P °सूरहु, सूरह, A सूरहं. 9 A पहरेषि. 10 A पर दुधरु न सक्कमि. 3. 1 PS |उ मंडए लेवि ण. 2 P इच्छिए. 3 P गंदुएहि°, 5 गेंदुयहि. 4 Ps कवणु. [३] १ मनोवेगा. २ पूर्यते; पर्यालोचने प्रस्तावे, पूर्यते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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