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________________ १४४ धाइ धगधगन्तु धूर्मन्तउ रावण- वलु णासंघिय - जीविङ रयणीयर - पहाणें $ मसि वण्णुपरत 20 पउमचरिउ [ क० १४, ७-९ १५, १-१०; १६, १-४ चिन्धेहिँ छत्त-धऍहिँ लग्गन्तउ ॥ ७ णासइ जाला-मालालीविउ ॥ ८ [१५] उवसमिए हुआसणे वयण-भासुरेणं । वहल - तमोह -पहरणं पेसियं सुरेणं ॥ १ किउ अन्धार तेण रणङ्गणु " जिम्भइ अङ्गु वलइ णिद्दायइ पेक्खवि विलु ओणलन्तर अमराहिण राहु-वर-पहरणु पवर-भुअङ्ग-सहा सेंहिँ दट्ठउ गारुडत्थु वासर्वेण विसज्जिउ " खगउर्ड-पवणन्दोलिय मेइणि पक्ख-पवण-पडिपहय-महीहर परोवरस्स पत्तया घिरोर थोर-कन्धरा 25 स - सीयर व पाउसा ॥ घत्ता ॥ वारुण-वाणें धूमल - गत्तउ सरवरग्ग उल्हाविउ । पिसुणु जेम वोल्लावियउ ॥ ९ जेत अइरावणु मेलेंवर घाणु सरु णारायणु तिजंगविहसणें गऍ चडिउ । तेत्त रावणु जाऍवि इन्दहों अभिडिउ || १० [१६] मत्त गइन्द दोवि' उब्भिण्ण- कसण-देहा | णं गज्जन्त धन्त सम - उत्थरन्तं मेहा ॥ १ मयम्वु - सित्त-गत्तया ॥ २ पलोट्ट- दाण- णिज्झरा ॥ ३ मयन्ध मुक्क-अङ्कुसा ॥ ४ किंपि ण देक्खइ णिसियर - साहणु ॥ २ सुअइ अचेयं 'ओसुविणायइ ॥ ३ मेल्लिउ दिणयरत्थु पजलन्त ॥ ४ णाग-पास सर मुअइ दसाणणु ॥ ५ सुर-वलु पाण लएवि पणउ ॥ ६ विसहर - सरवर - जालु परज्जिउ ॥ ७ डोला - रूढी णं वर- कामिणी ॥ ८ च्चाविय सं- दिसिवह स- सायर ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International 5 Ps धूम उ 6P चिंधई, चिंधड़ 7 Psणासंघिउ 8P उल्हाविउ, s उण्हा विउ, A उहाविय. 9PS परंतउ. 15. 1 s reads gas in the beginning of the stanza. 2 Ps° तमोहं. 3 A पेक्खइ. 4 Ps णिचेयणु. 5 A वास. 6 Ps °सहा सें. 7s खगउडु 8 P s दस दिसि - वह सायर. 9s तिजय'. 16. 14 हो वि. 2Ps समुत्थरंत 3 P परोवरस्स मत्तया corrected to परोवरपम. तया, s°मत्तया. [१४] १ विध्यापितः. [१५] १ प्रभातें ( ? ). २ प्रकट ( ? ). For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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