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क० १२,१०,१३, १-१०,१४, १-६ ] सत्तरहमो संधि
॥ घत्ता॥ भडु को वि पडिच्छिर णिवट्टिय-सिरु सोणिय-धारुच्छलिय-तणु । लक्खिज्जइ दारुणु सिन्दूरारुणु फग्गुणै णाइँ सहसकिरणु॥१०
[१३] कत्थ ई मत्त-कुञ्जरा जीविएण चत्ता ।
कसण-महाघण व दीसन्ति धरणि-पत्ता ॥ १ कत्थ इ स-विसाणइँ कुम्भयलई णं रणवहु-उक्खलइँ स-मुसलइँ ॥२ कत्थ इ हय करवालंहिँ खण्डिय अन्त-ललन्त खलन्त पहिण्डिय ॥ ३ कत्थ इ छत्तइँ हयइँ विसालइँ णं जम-भोयण दिण्णइँ थालइँ॥४ कत्थ इ सुहड-सिराइँ पलोइँ णाइँ अ-णालइँ णव-कन्दोट्टई ॥ ५ ॥ कत्थ इ रह-चक्कइँ विच्छिण्ण कलि-कालहों आसण व दिण्ण. ॥६ कत्थ वि भडहों सिवङ्गण दक्किय "हियवउ णाहिँ' भणेवि उढुक्किय ॥७ कत्थ वि गिद्ध कवन्धे परिट्ठिउ णं अहिणव-सिरु सुह९ समुट्ठिउ ॥८ कत्थ इ गिद्धे मणुसु ण खद्धउ वाणेहिँ चञ्चुहिँ भेउ ण लद्धउ ॥९
॥ घत्ता
॥
कत्थ इ णर-रुण्डेंहिँ कर-कम-तुण्डेंहिँ समर-वसुन्धर भीसणिय । वहु-खण्ड-पयारेंहिँ णं सूआरेंहिँ रइय रसोइ जमहों तणिय ॥ १०
[१४] तहिँ तेहऍ महाहवे किय-महोच्छवेहि ।
कोक्किउ एकमेकु लङ्केस-वासवेहिँ ॥ १ "उरे उरें सक सक्क परिसक्कहि जिह णिहुविउ मालि तिह थक्कहि ॥२ हउँ सो रावणु भुवण-भयङ्कर सुरवर-कुल-कियन्तु रणे दुद्धरु' ॥३ तं णिसुणेवि वलिउ आँखण्डलु पच्छायन्तु सरहिं णह-मण्डलु ॥४ दहमुहो वि उत्थरिउ स-मच्छरु किउ सर-जालु सरेंहिँ सय-सकर ॥५॥ तो एत्थन्तर हय-पडिवक्खें सरु अग्गेउ मुक्कु सहसक्खें ॥६
108 पडिथिरु.
13. 1 Ps mostly read कत्थ वि. 2 P करवालिहि, s करवालिहिं. 3 The portion from व दिण्णइं up to गिद्ध क° in line 8 is missing in A. 4 PS सुहड. 5 P चंचुहे. ___14. 1 s reads दुवई in the beginning of this stanza. 2 A उर उर. 3 P सुरवलु, S सुरवल. 4 A आहंडल.
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