________________
१३६
पउभचरिउ [क० १, ५-१०, २, १-३
[१७. सत्तरहमो संधि] मन्तणऍ समत्तएँ. दूऍ णियत्तएँ उभय-वलहँ अमरिसु चडइ तइलोक-भयङ्करु सुरवर-डामरु रावणु इन्दहाँ अभिडइ॥
[१] किय करि सारि-सज पक्खरिय तुरय-थट्टा
उन्भिय धय-णिहाय स-विमाण रह पयट्टा ॥ १ आहय समर-भेरि भीसावणि सुरवर-वइरि-वीर-कम्पावणि ॥ २ हत्थ-पहत्थ करेंवि सेणावइ दिण्णु पयाणउ पचलिउ गरवइ ॥ ३
कुम्भयण्णु लङ्कस-विहीसण : णल-सुग्गीव-णील-खर-दूसण ॥४ "मय-मारिच्च-भिच्च-'सुअसारण अङ्गङ्गय-इन्दइ-घणवाहण ॥ ५ रण-रसेण भिजन्त पधाईय णिविसें समर-भूमि संपावियं ॥६ पञ्चहिँ धणु-सएहिँ पहु देप्पिणु रिउँ-बूहहों पडिवूहु रएप्पिणु ॥७ णिवडिउ जाउहाण-वलु सुर-वर्ले पहय-पडह-परिवड्डिय-कलयले ॥८ जाउ महाहउ भुवण-भयङ्करु उहिउ रउ मइलन्तु दियन्तर ॥९
॥घत्ता ॥ णर-हय-गय-गत्तइँ रह-धय-छत्तई संवई खण उद्धलियई। जिह कुलइँ दुपुत्ते तिह वड्डन्तें वेणि वि सेण्णइँ मइलियइँ॥१०
[२] विन्भम-हाव-भाव-भूभङ्गुरच्छराई।
जायइँ सुर-विमाणई धूलिधूसराई ॥ १ ताव हेइ-घट्टणेण करालउ उच्छलियउ सिहि-जाला-मालउ ॥२ सिवियहिँ छत्त-धऍहिँ लग्गन्तिउ अमर-विमाण-सयाइँ दहन्तिउ ॥ ३
1. 1 A reads the following Sk. stanza. in the beginning of this Sandhi : तावद् गर्जनित तुङ्गाः करटपट()लाजानधीरा(?)गण्डा
-मातङ्गदन्तक्षतगुरुगिरयो भग्ननानागुमौघाः॥ 'लीलोद्धसैलतागैर्निजयुवतिकरैः सेव्यमाना यथेष्टं ।
यावनो कुम्भिकुम्भस्थलदलनपटुः केसरी संप्रयाति ॥ 2 A पराइय. 3 A संपाइय. 4 P रियु. 5A पत्तइं. 6 s (marginally), A तिषिण 'वि (A विणि वि)खणे ओणल्लियई.
2. 1 P°भंगुरवरच्छराई, s भंगुरवरच्छरई, A भंगुरथुराई. 2 P धूसरई, s धूलीधूसरई, A धूलीधूसराई. 3 PS सिविएहिं. [१] १ भयाण(न)कः. २ मन्त्री.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org