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________________ क० १४, १–९; १ ५, १-९] ग म भवि चित्तङ्गु तेत्थु 'परमेसर दुज्जउ 'जाउहाणु तं णिसुर्णेवि पवलु अराइ- पक्खु हय भेरि तूर पडु पह वेज्ज पक्खरिय तुरङ्गम' जुत्त सयड वसावसु वसु रण-भर - समत्थ किंपुरिस गरुड गन्धव जक्ख जं यर-पओलिहिँ वलु ण माइ सणहॅवि पुरन्दरु विञ्झों उप्पर मिग- मन्द-भ-संकिण-गऍहिँ थिउ अग्गऍ' पच्छऍ भड-समूहु सुरवर स-पवरर-पहरण-कराल डसियाहर रत्तुप्पल-दलक्ख हर्यं पञ्च पञ्च चञ्चल वलगं ऍड जेत्ति रक्खणु गयवरासुं चदह अङ्गुलिहिँ णरो णरासु पञ्चहिं पञ्चहिँ गड गयवरासु " बहु रवि समरङ्गणे मेइणि [१४] १ रावणः २ अंबारी. [१५] १ हस्तै : त्रिभिः सोलहमो संघि [१४] १ सुर-परिमिउ सुरवर-राउ जेत्थु ॥ ण करेइ सन्धि तुम्हेंहिँ समाणु' ॥ २ सण्णज्झइ सरहसु दससयक्खु ॥ ३ किय मत्त महाग सारि - सज्ज ॥ ४ जस-लुद्ध कुद्ध सण्णद्ध सुहड ॥ ५ जम-ससि कुवेर पहरण - चिहत्थ ॥ ६ किण्णर पर अमर विरल्लियख ॥ ७ तं हयले उपऍवि जाइ ॥ ८ Jain Education International ॥ घता ॥ णिग्गउ अइरावऍ चडिउ । सरय - महाघणु पाउं ॥ ९ [१५] भीसणु तूर - मालु कि । सक्कु से ईं भू सेवि थिङ ॥ ९ * 14. 1 A सज्ज. 2 PS तुरिय संजुत्त. 3 P रणयरह मध्थ, 8 सुरणरभरसमस्थ, A रणसयसमत्थ. 4 A विरित्तियक्ख. 5 A जं. 6 s हयले णं. 7 P उप्पयवि, उपहि वि. 8s पय ब्रि. 9s wrongly numbers this Kadavaka as ॥ १५ ॥ 151 भगा 2 A पच्छछ अग्गइ. 3s सव्वई. 4 P हुए. 5s चलग्ग 64 - रा. 7 P अंगुलेहिं. 8s घाणुकिओ 9Ps वि. 10s जं. 11 s सयं. १३५ as विरऍवि पञ्चहिँ चाव- सऍहिँ ॥ १ सेणाas - मन्तिहि रइउ बूहु ॥ २ घण-कक्खहिँ पक्खहिँ लोयवाल || ३ गऍ गऍ पण्णारह गत- रक्ख ॥ ४ भड तिण्णि तिण्णि हऍ हऍ स खाग ॥ ५ तेत्तिउ जें पुणु विथ रहवरासु ॥ ६ 'रणिहिं तिहिँ तिहिँ हउ हयवरासु ॥ ७ " धाकि छंहिँ धाणुक्कियासु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ For Private & Personal Use Only 5 10 15 www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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