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________________ १२२ तं णिसुर्णेवि णिसियर लज्जियाँ तो सहसकिरणु सहसहिँ करेंहिँ दूरहों जि णिरुद्ध वइरि-वलु अमुणिय थाणों पासु ण दुक्कइ अट्ठावय- गिरि-कम्पावणहों 'परमेसर एक्के होन्तऍण एम भणन्तर्ण पण -सहा ि ushafte [ क० ३, ६-९ ४, १-९; ५, १-६ थिय महिलें विज्ज-विवज्जियाँ ॥ ६ णं विद्धई सहस - सहस - सरेंहिँ ॥ ७ णं जम्बूदीवें उवहि-जलु ॥ ८ ॥ धत्ता ॥ किय-संघाणहों तेलुक - " रणें रहवरु एंकु जें परिभमइ कर धणु एक एक गरु दुइ जॅ करु कहीं वि कहीं वि उरु कप्परिउ तं णिसुर्णेव उवहि जेम खुहिउ गत जेत्त सहसकरु "हउँ रावणु दुज्जउ केण जिउ 20 " माहेसरपुर व विरेहु किउ अञ्जण महिहरें सरय-घणु सण्णाहु खुरुप्पें कप्परिङ जें सबायामें मुअइ सर दससयकिरणेण णिरिक्खियर्ड 2. जज्जाहि ताम अब्भासुं करें दिट्टि मुट्ठि-सर-पयरहों । तिमिरु जेम दिवसयरहों ॥ ९ [ ४ ] पडिहारे अक्खिर रावणहों ॥ १ वलु सयलु र्धरिडं पहरन्तऍण ॥ २ सन्दण - सहासुं णं परिभमइ ॥ ३ चउदसहिं णवर णिवडन्ति सर ॥ ४ करि कहों वि कहों वि रहु जज्जरिउ ' ॥ ५ लहु तिजगविहसणें आरुहिउ ॥ ६ ates 'मरु पाव पहरु पहरु ॥ ७ जें पारा धण किङ' ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International विद्धन्तेर्ण स-रैहि महारहु छिण्णउ । चउ-पासेंहिँ जसुं चउदिसु विक्खिण् ॥ ९ [५] णिविसद्धे मत्त - गइन्हें थिउ ॥ १ उत्थरि स-मच्छरु गीढ-धणुं ॥ २ लङ्काहि कह व समुवरिउ ॥ ३ लुअ - पक्ख पक्खि णं जन्ति धर ॥ ४ पञ्चारि 'कहिँ धणु सिक्खियउ ॥ ५ पच्छलें जुज्झेज्जहि पुणु समरें ॥ ६ 6 A सो. 7 P s विषइ. 8 A अलुकइं. 4. 14 धरिउ सयलु. 2 P s एक वि. 3 A संदणहं सहसु. 4 Pg कह. 5 A पाव. 6 P. 8भणंतपूण 7Ps विद्धंतरण, A विंधंतेण 84 सरिहि. 9 PB पणय, A पणई. 10 Psणं जसु.11 P विखिष्णउं, 8 विखिष्णउ . 5. 1PSA णिवस. 29 सिहरे. 3P °वणु. 4 Ps कहि मि. 5P णिरिक्खिभउं, s णिरक्खियउं. 6s अज्झासु. [५] १ रथरहितः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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