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________________ क० २,३-१०; ३, १-१०] के' सिरेंण पडिच्छिउ कुलिस- घाउ जलन्तऍ जलणं - जालें को पइडु मारि gas 'देव देव लम्विय-थिर-थर-पलम्व - वाहु मेरु व अकम्पु उवहि व अखोहु मज्झ-पड व उग्ग-तेज ओसारि विमाणु दवत्ति देव तेरहमो संधि को णिग्गउ पञ्चाणण-मुहाउ || ३ कोठि कियत - दन्तन्तराले ' ॥ ४ स-भुअङ्गमु चन्दण-रुक्खु जेर्मं ॥ ५ अच्छइ कइलासह उवरि साहु ॥ ६ महियलु व वहु-क्खमु वत्त- मोहु ॥ ७ तहों तव सत्तिएँ पडिखलिड वेर्ड ॥ ८ फुट्टइ ण जाम खलु हियउ जेम' ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ दर्हमुह हेट्ठामुह वैलिड । जोवण - भारु णाइँ गलिउ ॥ १० [३] ॥ दुबई ॥ तं माम-वयणुणिसुणेपिणु गयण लच्छि केरउ तो गज्जन्त-मत्त-मायङ्ग तुङ्ग - सिर- घट्ट - कन्धरो । उक्खय-मणि - सिलायलुच्छालिय-हल्लाविय- वसुन्धरो ॥ १ बहु-सूरकन्त - हुयवह-पलितु मरगय-मऊ - संदेह वन्तु वर-पराये - करणियर-तम्बु तरु-पडियै - पुप्फ-पत्त- सिहरु अहि-गिलिय-गइन्दै-पमुत्त-सासु सो तेहउ गिरि-कइलासु दिनु पञ्चारि 'लइ मुणिओ सि मित्त अज्जु वि रणु इच्छहि मइँ समाणु जं" पइँ परिहव रिणु दिण्ण पाहाणु जेम उम्मूवि ॥ घत्ता ॥ Jain Education International तं स कलन्तरु अल्लवमि । कइलासु जे सायरें घिमि' ॥ १० વ ससिकन्त-णीर- णिज्झर - किलिन्तु ॥ २ णील- मणि- पन्धारिय - दियन्तु ॥ ३ गय-मय-इ-पक्खालिय- णियम्बु ॥ ४ मयरन्द-सु-रस-मत- भमरु ॥ ५ सासुग्गय - मोतिय- धवलियासु ॥ ६ अण्णु वि मुणिवैरु मुणिवर-वरि ॥ ७ स कसाय - कोव - हुव ह पलित ॥ ८ जइ रिसि तो किं थम्भिर विमाणु ॥ ९ 20 3s किं सिरिण, 4 किं सरेण 4s जलणे. 5 A कयंत° 6s जेव. 78 मज्झण्ण, A मज्झण 88. 9 A दहमुहुं हेहामुहुं. 10 A चलिउ. 11s गणंगणि. 3. 1s° तुरंग, A सुंग. 2 A लुच्छ लियपहल्लाविग 39 ° सूरकंति'. 4s ° पलिस. 5 s किलित्त. 6s ओह 7s पोमराय 8s °तडिय 9A धुरा 10s अह. 1164 'दपसुत, 12s मुणिवर. 139 ईसाइको वहुवबहु. 14 4 अज 15s जो. 16 4 दिष्णएं. For Private & Personal Use Only 5 10 15 25 www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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