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________________ १०६ [ १३ पेक्खप्पिणु वालि भडारेड भई 'किं मइँ जीवन्तेंण 20 ररहुँ परोप्परु हूउ चप्पु 1. पडिपेल्लियैड विण वहइ विमाणु विज्जाहर - कुमारि रयणावलि परिणेंवि वलइ जाम ता थम्भिउ महरिसि तव ते थिङ विमाणु णं सुके खीलिउ मेह-जालु 1. णं दूसामिऍण कुडुम्ब - वित्त णं कण- सेलें पवण-गमणु frees as किङ्किणीउ घग्घरेंहि मि घवघव घोसुं यत्तु पउमचरिउ तेरहमो संधि ] रावणु रोसारियउ । जाम ण रिउ मुसुमूरियउ' ॥ १ ॥ [१] तो एत्थन्तरेंण केयं पहुणा सब - दिसावलोयणेण वि www ॥ दुवई विहडइ थरहरेंड ण ढुक्कइ छुड छुड परिणियैड कलन्तु वे Jain Education International 'मरु कहाँ अथक्क[ ऍ] कालु कुछु ww www ॥ णिच्चालोय - पुरवरे । पुष्पविमाणु अम्वरे ॥ १ णं दुक्किय-कम्म-वसेण दाणु ॥ २ णं पाउसेण कोइल- वमालु ॥ ३ णं मच्छे धरि महायर्वन्तु (१) ॥ ४ ww णं दाण- पहावें णीय-भवणु ॥ ५ णं सुरऍ समत्त कामिणीउ ॥ ६ णं गिम्भयालु दद्दुरेहुँ पत्तु ॥ ७ अहो धरणि एजेविणु धरणि-कम् ॥ ८ णं महरिसि भइयऍ मुअइ पाणु ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ ॥ [२] [ क० १, १-१०२, १-२ उप्पर वालि भडाराहों । रइ-दइयँहों वडारोहों ॥ १० दुवई ॥ सब - दिसावलोयणं । रत्तुप्पलमिव णहङ्गणं ॥ १ करु केण भुयङ्गम-वयणें 1. 1 A भडारउ. 2 A पभणई. 3 Throughout, this designation occurs only in A 494 परिणिवि. 5s सुकिं 4 सकें. 6s पुच्छिउ, मच्छे. 7s महाववत्तु, A महाहवन्तु. 8s घग्घरयहि. 9s wanting. 10s °घोस. 11s गिण्हयालु. 12s ददुरहु, दहुरहं. 13s णरवरहु, A णरवरहं. 14 A अह धरणिएं. 15s पडिपेल्लिओ, A पंडिपेल्लियउ 16s परपहरई 17s दुक्कडं. 184 परिणियउं. 19s वर 20s वंदइ पेहो. 21 8 वडाराहो, A वड्डावहो. 2 184 कय. 23 कहे. The rest of the line is illegible in s. A कहुं रथक For Private & Personal Use Only छुछु ॥ २ www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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