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________________ INTRODUOTION 25 338 मारिश्चि पपुच्छिउ रावणेण। 18 1 2. 338 पप्रच्छ xxx मारीचम्। 14 5. ___VP. परिपुच्छइ मारीई। 14 3. 339 उहु कलयलु सुम्मइ काई माम। 339 अयि मारीच मारीच कुतोऽयं निनदो महान्। 18 13. 14 6. VP. कस्सेसो मेघसरिस निग्घोसो। 14 3. 340 जइ णामेण अणन्तवीरु। 18 1 4. 340 अनन्तबल-संज्ञया कथितो मुनिः। 14 10. 341 देवागमु। 18 16. 341 देवागमः । ___147. 342 परियाविणवैवि थुणेवि णिविटु 18 1 8. 342 नमस्कृत्य स्तुत्वा xxx स्थितः समुचितावनौ। 14 14. 343 महवयह को वि कों विअणुवयई xxx। 343 सम्यग्दर्शनमायाताः केचित् केचिदणुव्रतं । कों वि सम्मत्तु लएवि थिउ ॥ 18 19. महाव्रतधराः केचिजाताः। 14 354. 344 धम्मरहु महारिसि भणइ तेत्थु xxx 344 अथ धर्मरथाख्येन मुनिनाऽभाषि xxx xx रयणायरें रयणु ण लेहि 18 2 1-2. द्वीपोऽयं धर्मरत्नानां xxx गृह्यतामेकमप्यस्माद्रत्नम् ॥ 14 355-356. VP. भणिओ धम्मरवणं मुणिणा xxx रयणद्दीवे जहा रयणं । 14 151. 345. 1825-7. 345 of हुताशनशिखा पेया बद्धव्यो वायुरशुके । उत्क्षेप्तव्यो धराधीशः। 14 363. 346 णउ सक्कमि वउ धरॅवि। 18 2 9b. 346 न समर्थोऽहं सेवितुं यत्तपोव्रतं । 14 364. __VP. असमत्थोहं। 14 152. 347 परिचिन्तेंवि । 18 3 1. 347 अवधार्य । 14370. 348 5 मई ण समिच्छइ चारुगत्तु, 348 न मया नारी, परस्येच्छा विवर्जिता। तं मण्ड' लएमिण पर-कलत्तु। 18 3 2 गृहीतच्या ॥ 14 371 349 महिन्दु महिन्द-णामें पुरवरें। 18 3 4 349 महेन्द्राख्यः xxx महेन्द्रनगरं तच्च पुरम्। ___15_13-14 VP.महिन्दनयर कयं महिन्देणं। 15 10 350 तहों हिययवेय णामेण भज, 350 (a) नार्या हृदयवेगायाम्। 15 15 तहाँ दुहियाणसुन्दरि मणोज । 18 3 5 __(b) अञ्जनासुन्दरी त्रैलोक्यसुन्दरी 15 16 VP. (a) हिययसुन्दरीए महिन्द-भजाएँ 15 11 (b) वरअञ्जणसुन्दरि। 15 12 351 झिन्दुएण रमन्तिहें। 18 36 351 क दुकेनासौ रममाणा। 15 21 ___VP. कीलन्ती ते(गे)न्दुएण। 15 13 352 उप्पण्ण चिन्त। 18 37 352 चिन्तातिदुःखितः। 15 22 353 गड xxx जिणु-अट्टाहिएँ अट्ठावयहाँ। 353 फाल्गुनाष्टदिनोत्सवे जग्मुरष्टापदे । 1839 1874-75 354 एत्तवि ताव पल्हाय-राउxxx भाउ। 354 पलादोऽपि तदाऽयासीत्। 1878 ___ 18 4 1 VP. पल्हाओ वि नरवई xx गन्तूण। 15 33 355 मयणाउरु पवणञ्जय-कुमार। 355 दिवसानां त्रयं सेहे न प्राङ्गादिः प्रतीक्षितुम् । णउ विसहइ तइयउ दिवसु एन्तु ॥ मन्मथसंभवैः पूरितो xx बाणै. ॥ 15 94-95. 1851-2 VP. न सहइ पवणंजओ गमिङ मयणोरगावरद्धो। 15 43-44, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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