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PAUMACARIU
324 सारहि वाहि वाहि रहु तेत्त है xxx 324 उवाच सारथि xxx तस्यैव शक्रसंशस्य जेत्तहँ सुरवइ। 17 10 1-3. संमुखो वाह्यतां रथः ॥ 12 305-306
VP. वाहेहि रहवर मे तुरियं इन्दस्स अहिमुहं ।
| 12 120 325 सरु अग्गेउ मुकु सहसक्खें। 17 146. 325 निक्षिप्तमस्त्रमानेयं नाथेन वर्गवासिनाम् ।
12 322 VP. अग्गेयं पहरणं सुरिन्देण xx विसज्जियं ।
12 126 326 सरवरग्गि उल्हाविउ xxx धूमलगत्तउ। 326 धूमलक्ष्मांस (? मास्त्रं ) विध्यापितम् । 17 149.
12327 327 वहल-तमोह-पहरण पेसियं सुरेणं ॥ 327 सुरेन्द्रेण ततोऽसर्जि तामसात्रं समन्ततः। किड अन्धारउ तेण रणङ्गणु ॥ 17 15 1-2. तेनान्धकारिता चके ककुभाम्। 12 328.
VP. इन्देण पुणरवि लहुँ
विसज्जियं तामसं महासत्थं। 12 128. 328 पेक्खेंवि णिय-बलु भोणल्लन्तउ। 328 ततो निज-बलं मूढं दृष्ट्वा रत्नश्रवः सुतः ।
मेल्लिड दिणयरथु पजलन्तउ॥17 154, प्रभास्त्रममुचत् ॥ 12 330. 329 णागपास सर मुबह दसाणणु ॥ 17 15 5. 329 यमविमर्दैन xxx नागास्त्रमुज्झितम् ।
12 332. VP. नाय-सरा xxx लङ्काहिवेण मुक्का
____12 129. 330 गारुडत्थु वासवेंण विसजिउI7 15 7. 330 गारुडास्त्रं ततो दध्यौ सुरेन्द्रः। 12 336. 331 खगउड-पवणन्दोलिय मेइणि,
331 पक्षवातेन तस्याभूतxxx डोलारूढी गं वरकामिणी। 17 15 8. दोलारूढमिवाशेषंxxx बलम्। 12337. 332 तिजगविहूसणे गऍ चडिउ। 17 15 10a. 332 आरूढस्त्रिजगभूषम्। 12 340
VP. आरुहइ xxx भुवणालङ्कार-मत्तगयं ।
___12 131. 333 सम्म देवि असुऍण णिवखुड। 17 17 4. 333 तत उत्पत्य xxx बद्धवांशुकेन देवेन्द्रम् ।
12346-347.
VP. दिव्वंसुएण बद्धो। 12 137. 334 ताव जयन्तु दसाणण-जाएं
334 राक्षसाधिपपुत्रोऽपि गृहीत्वा वासवात्मजम्। आणिउ वन्धेवि। 17 17 6.
12 348. 335 त पडिवण्णु सम्वु सहसारें। 17 18 9. 335 VP. सहस्सारो इच्छइ सव्वमेयं तु ।
12137. 336 गड पम्ववि। 17 18 10a. 336 दीक्षां जैनेश्वरी प्राप। 13 106.
VP.गिहइxxx पव्वजं । 13 51. 337 रणे माणु मलेवि पुरन्दरहों
337 असौ देवाधिपग्राहो यातो मन्दि(?न्द)रमपरियवि सिहरई मन्दरहों।
न्यदा । जिनेन्द्रवन्दनां कृत्वा प्रत्यागच्छत् ॥ मावइ पडीवड जाव पहु॥ 18 1.
143. VP. सोxxx मेरुं गन्तुण चेइयहराइ थोऊण पडिनियत्तो आगच्छद। 14 1.
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