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INTRODUCTION
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II.
From the Rig thane micariu. 1. The opening Kadavaka of tħe Rițşhanemicariu. 37. सिरि-परमागम-णालु सयल-कला-कोमल-दलु।
करहु विहूसणु कण्णे जायव-कुरुव-कुलुप्पलु॥ चिन्तवइ सयम्भ काइँकरम्मि हरिवंस-महण्णउ के तरम्मि ।। २ . गुरु-बयण-तरण्डउ लद्ध णवि जम्महोविण जोइउ को वि कवि ॥ ३ णउ णाइउ वाहत्तरि कलाउ एक्कू वि ण गन्थु परिमोक्कलाउ॥४ तहि अवसरे सरसइ धीरवइ करि कव्वु दिण्ण मइ विमल मइ॥५ इन्देण समप्पिउ वायरण रसु भरहें वासें वित्थरणु ॥६ पिङगले ण छन्द-पय-पत्थारु भम्मह-दण्डिणे हिं अलङकारु ।। ७ वाणेण समप्पिउ घणघणउ तं अक्खर-डम्वरु अप्पणउ ॥८ सिरि-हरिसें णिय-णिउणसणउ अवरेहि मि कइहिं कइत्तणउ ।। ९ छड्डणिय-दुवइ-धुवऍहिं जडिय चउमुहेण समर्मा पय पद्धडिया ॥१० जण-णयणाणन्द-जणेरियएँ आसीसऍ सब्वहुँ केरियएँ । ११ पारम्भिय पुणु हरिवंस-कहा स-समय-पर-समय-वियार-सहा ।। १२
॥घत्ता । पुच्छइ मागह-णाहु भव-जर-मरण-वियारा । थिउ जिण-सासणे केम कहि हरिवंसु भडारा ॥ १३ Colophons of some of the Sandhis of the Ritthanemicariu.
Colophon of the 1. Sandhi: 58. इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयम्भुएव-कए।
पढमो समुद्दविजयाहिसेय-णामो इमो संग्गो॥ Colophon of the 92. Sandhi: 59. तेरह जाइवकण्डे कुरुकण्डेकूणवीस सन्धीओ।
तह सठि जुज्झकण्डे एवं वाणउदि सन्धीओ। 60. सोमसुयस्स य वारे तइया-दियहम्मि फग्गुणे रिक्खे।
सिउ-णामेण य जोए समाणियं जुज्झ-कण्ड व (?) । 61. छठवरिसाइँ तिमासा एयारस वासरा सयम्भुस्स ।
वाणवइ-सन्धि-करणे वोलीणो इत्तिओ कालो।। 62. दियहाहिवस्स वारे दसवी-दियहम्मि मूलणक्खत्ते।
एयारसम्मि चन्दे उत्तरकण्डं समाढतं ।। 13. वरं तेजस्विनो मृत्युर्न मान-परिखण्डमं । ___मृत्युस्तत्क्षणकं दुःखं मान-भङगो दिने दिने । Colophon of the 99. Sandhi: 64. इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयम्भु-कए
कविराज-धवल-विनिर्मिते श्री समवसरणकथनं
नाम निन्याणवो सन्धिः॥ Beginning of the 100. Sandhi: 65. काऊण पोमचरियं सुद्धयचरियं च गुण-गणग्घवियं ।
हरिवंस-मोह-हरणे सरस्सई सुढिय-देह व्व ॥
(1) These passages are taken from Premi, 'Mahākavi Svayambhú aur Tribhuvana
Svayambhu', 1942, 392-395, excepting 66, which is taken from the Poona Ms. of the Ritthanemicariu.
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