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________________ 194 PAUMACARIU IV. Colophon at the end of the Paumacariu: 40. सिरि-विज्जाहर-कण्डे सन्धीओ होन्ति वीस-परिमाणां । उज्झा-कण्डम्मि तहा वावीस मुणेह गणणाए । 41. चउदह सुन्दरकण्डे एक्काहिय-वीस जुज्झ-कण्डे य । उत्तर-कण्डे तेरह सन्धीओ णवइ सव्वाउ। 42. Same as 28. 43. Same as 34, with trifling variants. 44. Same as 31, with trifling variants. 45. चउमुह-सयम्भुएवाण वाणियत्थं अचक्खमाणेण। तिहुअण-सयम्भु-रइयं पञ्चमिचरियं महच्छरियं ।। 46. सव्वे वि सुआ पञ्जर-सुअ व्व पढियक्खराइँ सिक्खन्ति । कइरायस्स सुओ पुण सुय व्व सुइ-गब्भ-संभूओ। 47. जइ ण हुउ छन्दचूडामणिस्स तिहुअण-सयम्भु लहुतणओ। तो पद्धडिया-कव्वं सिरि-पञ्चमि को समारेउ ।। 48. सव्वो-वि जणो गेण्हइ णिय-ताय-विढत्त-दब्व-सन्ताणं । तिहुअण-सयम्भुणा पुणु गहियं सुकइत्त-सन्ताणं ॥ तिहुअण-सयम्भुमेक्कं मोत्तूण सयम्भु-कव्व-मयरहरो। को तरइ गन्तुमन्तं मझे णिस्सेस-सीसाणं ।। 50. इय चारु पोमचरियं सयम्भुएवेण रइयं समत्तं । तिहुअण-सयम्भुणा तं समाणियं परिसमत्तमिणं ॥ चेष्टितमयनं चरितं करणं चारित्रमित्यमी यच्छब्दाः। . पर्याया रामायणमित्युक्तं तेन चेष्टितं रामस्य ॥ 52. वाचयति श्रुणोति जनस्तस्यायुर्वृद्धिमीयते पुण्यं च । आकृष्ट-खड्ग-हस्तो रिपुरपि न करोति वैरमुपश (म) मेति ।। 58. माउर-सुअ-सिरिकइराय-तणय-कय-पोमचरिय-अवसेसं । संपुण्णं संपुण्णं वन्दइओ लहइ संपुण्णं ॥ गोइन्द-मयण-सुअणन्त (? त्त)-विरइयं वन्दइ-पढम-तणयस्स । वच्छल्लदाएँ तिहुअण-सयम्भुणा रइयं (?) महप्पयं ॥ 55. वन्दइय-णाग-सिरिपाल-पहुइ-भव्वयण-गण-समूहस्स। आरोगत्त-समिद्धी-सन्ति-सुहं होउ सव्वस्स ॥ 56. सत्त-महा-सग्गङगी ति-रयण-भूसा सु-रामकह-कण्णा। तिहअण-सयम्भ-जणिया परिणउ वन्दव्य-मण-तणयं ।। इति रामायणपुराणं समाप्तम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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