SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किश्चित् प्रास्ताविक। प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थके बारेमें जितनी ज्ञातव्य बातें हैं उन सबका निर्देश, बहुत कुछ विस्तारके साथ, हम 'आगेके भागोंमें-चौथे पांचवें ग्रन्थमें-करना चाहते हैं इस लिये यहां पर अन्य कोई विशेष वातका उल्लेख न कर, सिर्फ इस ग्रन्थकी प्रस्तुत आवृत्तिके जन्मका थोडासा पूर्वेतिहास बतलाना, और उसके साथ इस ग्रन्थके, इतः पूर्व, जो संस्करण और भाषान्तर आदि हुए हैं उनका परिचय देते हुए, जिन पुरातन हस्तलिखित पोथीयोंका आश्रय लेकर हमने इसका संशोधन और सम्पादन किया है उनका परिचय मात्र कराना आवश्यक समझते हैं। प्रस्तुत आवृत्तिकी जन्मकथा. प्रबन्धचिन्तामणि जैसे ऐतिहासिक महत्त्व रखनेवाले अनेक ग्रन्थ, और ऐसे ही उपयोगी अन्यान्य अगणित ऐतिहासिक साधन, जैन भण्डारोंमें पडे पडे सड़ रहे हैं लेकिन उनका ठीक ठीक परिचय विद्वानोंको न मिल सकनेके कारण वे अभी तक प्रकाशमें नहीं आये । इस वस्तुका खयाल हमें पाटणके पुरातन जैन भण्डारोंका अवलोकन करते समय, आजसे कोई १८-२० वर्ष पहले हुआ । विद्यमान जैन साधुसमूहमें जिस ज्ञाननिमग्न स्थितप्रज्ञ मुनिमूर्तिका दर्शन और चरणस्पर्श करनेसे हमारी इस ऐतिहासिक जिज्ञासाका विकास हुआ उस यथार्थ साधुपुरुष-पूज्यपाद प्रवर्तक श्रीमत्कान्तिविजयजी महाराज-की वात्सल्यपूर्ण प्रेरणा पाकर हमने यथाबुद्धि इस विषयमें अपना अध्ययन-अन्वेषण-संशोधन-सम्पादनादि कार्य करना शुरू किया। हमारा संकल्प हुआ कि जैन भण्डारोंमें इतिहासोपयोगी जितनी सामग्री उपलब्ध हों उसे खोज खोज कर इकट्ठी की जाय और आधुनिक विद्वन्मान्य पद्धतिसे उसका संशोधन और सम्पादन कर प्रकाशन किया जाय । हमारे इस संकल्पमें, उक्त पूज्यवरके गुरुभक्त और ज्ञानोपासक शिष्यवर्य श्रीमान् चत्तुरविजयजी महाराज तथा प्रशिष्यवर श्रीमान पुण्यविजयजीकी सम्पूर्ण सहकारिता प्राप्त होने पर, हमने उन्हीं स्वाध्यायनिरत ज्ञानतपस्वी प्रवर्तकजीके पुण्यनामसे अंकित-प्रवर्तक श्रीकान्तिविजय जैन इतिहासमाला-नामक ग्रन्थावलिका प्रारंभ किया और भावनगरकी श्री जैन आत्मानंद सभा द्वारा उसे प्रकाशित करने लगे। विज्ञप्तित्रिवेणी, कृपारसकोष, शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रवन्ध, जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्यसंचय और प्राचीन जैनलेखसंग्रह इत्यादि ग्रन्थ उस समय प्रकट हुए और विद्वानोंने उनका अपूर्व ऐतिहासिक महत्त्व समझ कर उस प्रयत्नको खूब सराहा । हमने अपना यह संशोधन कार्य, संवत् १९७१-७२ में, जब हमारा निवास बडौदे में था, प्रारंभ किया था । उन्हीं दिनोंमें, बडौदा राज्यकी ओरसे प्रकाशित होने वाली गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीझ' का प्रकाशन कार्य भी शुरू हुआ था । उस सीरीझके उत्पादक स्वर्गीय साक्षररत्न श्रीचिमणलाल डाह्याभाई दलाल एम्. ए. हमारे घनिष्ठ मित्र थे । पाटणके जैन भण्डारोंका व्यवस्थित पर्यवेक्षण करनेमें तथा उन भण्डारोंमेंसे अलभ्य-दुर्लभ्य ग्रन्थोंकी प्राप्ति करनेमें भाई दलालजीको जो यथेष्ट सुविधा मिली थी वह उक्त पूज्यप्रवर प्रवर्तकजी ही की सुकृपाका फल था। इस लिये उनका और हमारा एक प्रकारका सतीर्थ जैसा सम्बन्ध था। समानशील और समव्यसनी होने के कारण, वे प्रतिदिन घंटों, बडौदेके जैन उपाश्रयमें आकर बैठते-उठते और हम उनके और वे हमारे का थे। इस सहयोगके परिणाममें, कितनेएक जैन ऐतिहासिक ग्रन्थ 'गायकवाडस् ओरिएन्टल सिरीझ' द्वारा भी प्रकट करनेका उन्होंने निश्चय किया और उनमेंसे, मोहराजपराजय नाटक का सम्पादन कार्य उक्त पूज्यवरके प्रधानशिष्य श्रीचतुरविजयजी महाराजने, कुमारपालप्रतिबोध नामक विशाल प्राकृत ग्रन्थका सम्पादन हमने और वसन्तविलास, नरनारायणानन्द, हम्मीरमदमर्दन आदि ग्रन्थोंका सम्पादन कार्य स्वयं दलालजीने अपने हाथ में लिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002519
Book TitlePrabandha Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorJinvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy