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ज्ञानबिन्दु में शायद ही जरूरत हो । एक तरह से बिखरी हुई सारी सामग्री परिशिष्ठों में समुचित वर्गीकरण पूर्वक संक्षेप में प्रतिबिम्बित हो जाती है । . ४. ज्ञानबिन्दुपरिचय-मूल ग्रन्थ के प्रारंभ में 'ज्ञा न बिन्दु परि च य' शीर्षक से प्रस्तावना दी गई है। इस में ज्ञानविन्दु के शाब्दिक देह और विचारदेह को स्पष्ट करने की भरसक चेष्टा की है। 'परिचय' में क्या क्या वस्तु आई है वह तो उस में दिये गए शीर्षकों से ही जानी जा सकती है । परिचय विस्तृत है सही पर जिज्ञासु अगर ध्यान से पढ़ेंगे तो वे देखेंगे कि इस में दार्शनिक ज्ञान सामग्री कितनी है । ज्ञानबिन्दु छोटासा ग्रन्थ हो कर भी अनेक सूक्ष्म दार्शनिक चर्चाओं से संभृत है । उस के वास्ते संग्रह किए गए टिप्पणों में भी तत्त्वज्ञान की तथा इतिहास की बहुत कुछ सामग्री संनिविष्ट है। इस लिए हमने 'परिचय' इस दृष्टि से लिखा है कि ज्ञानबिन्दु में की गई छोटी बड़ी चर्चाएँ, उन के ऐतिहासिक विकासक्रम से समझी जा सकें और टिप्पणों में संगृहीत समग्र सामग्री का सार ज्ञात होने के अलावा उस का ज्ञानबिन्दु की चर्चा के साथ क्या
यह भी विदित हो जाय । यद्यपि ग्रन्थकारने प्रधानतया, जैन परंपरा प्रसिद्ध पांच ज्ञानों की चर्चा इस ज्ञानबिन्दु में की है; पर इस चर्चा में उन का समग्र भारतीय दर्शन विषयक परिशीलन प्रतिबिम्बित हुआ है । यह देख कर हमने 'परिचय' इतनी व्यापक दृष्टि से लिखा है कि जिस से अभिज्ञ पाठक प्रत्येक विषय से संबंध रखने वाली जैन-जैनेतर परिभाषाएँ तथा उन का आर्थिक तारतम्य समझ सकें । 'परिचय' लिखने में हमारी यह भी दृष्टि रही है कि जैनेतर विद्वान् अपनी अपनी परिभाषा के अनुसार भी ज्ञानबिन्दु गत जैन परिभाषा को यथासंभव अधिक समझ सकें; और साथ ही यह भी दृष्टि रखी गई है कि जो जैन पाठक जैन परिभाषाओं से तथा जैन शास्त्रीय विषयों से अधिक परिचित हैं पर जैनेतर परिभाषाओं का एवं जैनेतर वाङ्मय का परिचय नहीं रखते वे ज्ञानबिन्दु की चर्चा को गहराई से समझने के साथ ही साथ दर्शनान्तरीय विचारशैली एवं मन्तव्यों से परिचित हो सकें । यहाँ हम अधिक न लिख कर 'परिचय' के बारे में इतना ही कहना ठीक समझते हैं कि जो मूल ग्रन्थ और टिप्पण आदिका अध्ययन व अवलोकन न भी करें फिर भी ज्ञान और तत्संबंधी अन्य विषयों की भारतीय समग्र दर्शनव्यापी जानकारी प्राप्त करना चाहें उन के वास्ते प्रस्तुत 'ग्रन्थ परिचय' एक नई वस्तु सिद्ध होगी।
'परिचय' में अनेक दार्शनिक शब्द ऐसे प्रयुक्त हुए हैं जो ज्ञानबिन्दु तथा उस के टिप्पणों में नहीं भी आए हैं । अनेक ऐसे ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के नाम भी आते हैं जो मूल ग्रन्थ और टिप्पणों में नहीं आए। अतएव 'परिचय' गत उपयुक्त शब्दों का एक जुदा परिशिष्ट जोड़ दिया गया है।
प्रतियों का परिचय
उपर सूचित किया गया है कि प्रस्तुत संस्करण में चार प्रतियाँ काम में लाई गई हैं । इन का संकेतानुसारी परिचय इस प्रकार है
(१) 'मु-मुद्रित नकल, जो 'जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर' से प्रकाशित हुई है उसे 'मु' संज्ञा से निर्दिष्ट किया है । सामान्य रूप से वह मुद्रित नकल शुद्ध है। फिर भी उस में कुछ खास त्रुटियां हमें ऊँची । कहीं कहीं ऐसा भी उस में है कि शुद्ध पाठ कोष्ठक में रखा
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