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ज्ञानबिन्दु __ इनके रचे हुए ग्रन्थोंमें कैसी गभीर, सूक्ष्म, विपुल एवं सर्वग्राही ऐसी तात्त्विक विचारसंपत्ति भरी पडी है इसका दिग्दर्शन, प्रस्तुत ग्रन्थ ज्ञानबिन्दुके 'परिचय' स्वरूप लिखे गये पण्डित सुखलालजीके अभ्यासपूर्ण निबन्धमें हो रहा है । इस परिचयके पाठसे हमें प्रतीत हो रहा है कि यशोविजयजीके ग्रन्थोंमें छिपे हुए दार्शनिक विचाररत्नोंकी परीक्षा करनेकी योग्य क्षमता, पण्डित सुखलालजीके सिवाय, जैन समाजमें शायद ही कोई विद्वान् रखता हो। हमारी कामना है कि पण्डितजी, यशोविजयजीके अन्यान्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका भी, ऐसा ही विस्तृत अभ्यासपूर्ण परिचय कराकर, विद्वद्वर्गमें उनके वास्तविक 'यश' के 'विजय'की प्रतिष्ठा करें।
: भारतीयविद्या भवन ।
आन्ध्रगिरी (अन्धेरी) वसन्तपञ्चमी सं. १९९८ J
जिन विजय
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