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________________ संक्षिप्त सारार्थ। मात्र मोटी मोटी बातें दिखलाई हैं और अपनी सारी प्रतिभा समस्यापूर्तिके कार्यमें लगाकर काव्यजगतमें चमत्कृति पैदा कर गुरुकी महिमा बढाई है। काव्यकारने और भी प्रसिद्ध प्रसिद्ध काव्योंकी समस्यापूर्ति बनाई है इससे उनकी प्रतिभापूर्ण कवित्वशक्तिका पता चलता है। कविकुलकिरीट कालिदासके मेघदूतकी और श्रीहर्षरचित नैषध काव्यकी भी समस्यापूर्ति काव्यकारने बनाई है। इससे प्रतीत होता है कि काव्यकार एक अद्वितीय सिद्धहस्त समस्यापूरक थे। काव्यकार एक अद्वितीय कवि होने पर भी कहते हैं कि "नोद्रेकः कवितामदस्य न पुनः स्पर्धा न साम्यस्पृहा श्रीमन्माघकवेस्तथापि सुगुरोर्मे भक्तिरेव प्रिया। तस्यां नित्यरतेः सुतेव सुभगा जज्ञे समस्याऽद्भुता सेयं शारदचन्द्रिकेव कृतिनां कुर्याद् दृशामुत्सवम् ॥ माघः सान्निध्यकृद् भूयाद मल्लिनाथैस्तथैक्ष्यताम्। हास्येन मम दास्येऽस्मिन् यथाशक्त्युपजीविते॥ अस्या न मधुरा वाचो नालंकारा रसावहाः। पूर्वसङ्गतिरेवास्तु सतां पाणिग्रहश्रिये ॥" अर्थात्-किसी प्रकारके कविताके मदसे प्रस्तुत समस्यापूर्ति नहीं बनाई है । एवं श्रीमान् माघकविके साथ हमारी स्पर्धा भी नहीं है, तथा उनके समान होनेका भी हमारा दावा नहीं है । मात्र हमारे सुगुरुकी भक्तिको प्रस्तुत समस्यापूर्तिसे व्यक्त की है। हमारे प्रस्तुत कार्यमें यशःशरीरी माघकवि भी सहाय करें, टीकाकार मल्लिनाथ प्रभृति हमारी तरफ निगाह रक्खें । हमने तो यथाशक्ति यह दास्य कार्य किया है। प्रस्तुत समस्यापूर्तिकी वाणी मधुर नहीं अलंकार भी रसावह नहीं मात्र पूर्वसंगति मात्र है । तो भी गुरुभक्तिप्रदर्शक हमारी यह कृति सज्जनोंके करकमलमें हो ऐसी हमारी मनःकामना है। __ ये संस्कृत पद्य समस्याकारने देवानन्द महाकाव्यकी अंतिम प्रशस्तिमें दिये हैं। देखिए तो सही, इन पद्योंसे कर्ताकी सरलता, नम्रता, निरभिमानिता और गुरुभक्तिका रस किस प्रकारसे टपक रहा है। वर्तमान कालके मुमुक्षु लोक, कविराज मेघविजयजीके इन गुणोंका अनुकरण करें और काव्यरसके पिपासु गण प्रस्तुत काव्यको पढ कर माघके पढनेका आनन्दानुभवके साथ एक सुप्रसिद्ध जैनाचार्यके वृत्तान्तसे भी परिचित बनें । इति शुभम् । ४. देवानन्दमहाकाव्यका सरल और संक्षिप्त सारार्थ । [१] सब द्वीपोंमें उत्तम जंबूद्वीप । उसमें गंगानदीसे सुशोभित भारतवर्ष । भारतवर्ष में सर्वोत्तम देश गूजरात । वह समीपवर्ती समुद्रसे सुशोभित है । उसमें विकखर कमलयुक्त अनेक सरोवर हैं । उसके अनेक खेतोंमें संख्यातीत हल रात-दिन चलते रहते हैं । उन खेतोंमें उत्तमोत्तम ईख पकती है। गूजरात देशमें पार्श्वनाथ भगवानका शंखेश्वरनामक अद्भुत तीर्थ है, और दूसरे भी अनेकानेक पवित्र तीर्थोसे वह देश अलंकृत है । गूजरात देशमें गौओंका क्षीर नित्य प्रति झरता रहता है इससे उसका 'गूर्जर' नाम यथार्थ है। इस प्रकार अनेक शोभासे विभूषित गूर्जर देशमें पहाडकी तलहटिकाके पास इलादुर्ग (ईडर) नामक श्रेष्ठ नगर है । उस नगरका राजा नारायण है । नारायणके पिताका नाम पुंज और पितामहका नाम भाण था । राजा सुप्रसिद्ध राठोड वंशका था। उस नगरमें स्थिर नामका सर्वोत्तम व्यवहारी रहता था। स्थिरके पिताका नाम माधव था । स्थिरकी पत्नी रूपा थी जो बडी सुरूप और पतिव्रता थी । जब रोहिणी नक्षत्र शुभयोगयुक्त था तब विक्रम संवत् १६३४ के पोष शुक्ल त्रयोदशी रविवारके शुभ दिन, रूपाबाईने एक अद्भुत पुत्रको जन्म दिया। अद्भुतताके ही कारण पुत्रका नाम वासुदेवं रक्खा गया। १“चतुस्त्रिंशत्तमे वर्षे षोडशस्य शतस्य हि । पौषे मासे सिते पक्षे त्रयोदश्यां दिने रवौ" ॥-विजयदेवसूरिमाहात्म्य, सर्ग १, श्लो. १८ । २ वासकुमार-विजयदे० मा० ।
SR No.002517
Book TitleDevananda Mahakavya
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorBechardas Doshi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1937
Total Pages112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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