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आन्तर परिचय गण-संघना स्थविरो-महत्तरो-पदस्थोनी योग्यता, तेमनुं गौरव अने तेमनी पोताने तेम ज निर्ग्रन्थनिर्घन्धीसंघने लगती अध्ययन अने आचार विषयक सारणा, वारणा, नोदनादि विषयक विविध फरजो, २ संघमहत्तरोनी पारस्परिक फरजो, जवाबदारीओ अने मर्यादाओ, ३ निर्ग्रन्थनिर्ग्रन्थीसंघनी व्यवस्था जाळववा माटे अने उपरवट थई मर्यादा बहार वतनार संघस्थविरोथी लई दरेक निर्ग्रन्थनिर्ग्रन्थीना अपराधोनो विचार करवा माटे संघसमितिओनी रचना, तेनी मर्यादाओ-कायदाओ, समितिओना महत्तरो, जुदा जुदा अपराधोने लगती शिक्षाओ अने अयोग्य रीते न्याय तोलनार अर्थात् न्याय भंग करनार समितिमहत्तरो माटे सामान्य शिक्षाथी लई अमुक मुदत सुधी के सदाने माटे पदभ्रष्ट करवा सुधीनी शिक्षाओ, ४ निम्रन्थनिम्रन्थीसंघमां दाखल करवा योग्य व्यक्तिओनी योग्यता अमे परीक्षा, तेमना अध्ययन, महाव्रतोनी रक्षा अने जीवनशुद्धिने साधती तात्त्विक क्रियाओ, ५ निम्रन्थनिम्रन्थीओनी स्वगच्छ, परगच्छ आदिने लक्षीने पारस्परिक मर्यादाओ अने फरजो। आ अने आ जातनी संख्याबंध बाबतो जैन आगमोमां अने प्रस्तुत महाशास्त्रमा झीणवटंथी छणवामां आवी छे; एटलं ज नहि पण ते दरेक माटे सूक्ष्मेक्षिका अने गंभीरताभर्या उत्सर्ग-अपवादरूपे विधान पण करवामां आव्यु छे अने प्रायश्चित्तोनो निर्देश पण करवामां आव्यो छे । उल्लंठमां उल्लंठ अने पापीमां पापी निम्रन्थो तरफ प्रसंग आवतां संघमहत्तरोए केवी रीते काम लेवू ? केवी शिक्षाओ करवी ? अने केवी रहेम राखवी ? वगेरे पण गंभीरभावे जणाववामां आव्यु छ । प्रस्तुत महाशानने स्थितप्रज्ञ अने पारिणामिक बुद्धिथी अवलोकन करनार अने विचारनार, जैन संघपुरुषो अने तेमनी संघबंधारणविषयक कुशलता माटे नरूर आह्लादित थशे एमां लेश पण शंका नथी। ___ उपर निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीसंघना बंधारण विपे जे काई ट्रंकमा जणाववामां आव्युं छे, ए बधी प्रकाशयुगनी नामशेष वीगतो छे । ए प्रकाशयुग श्रमण महावीर भगवान् बाद अमुक सैकाओ सुधी चाल्यो छ । एमां सौ पहेलां भंगाण पड्यानुं आपणने स्थविर आर्यमहागिरि अने स्थविर आर्यसुहस्तिना युगमां जाणवा मळे छ । भंगाणनुं अनुसंधान तुरत ज थई गयुं छे परंतु ते पछी धीरे धीरे सूत्रवाचना आदि कारणसर अमुक सदीओ बाद घणुं मोटुं भंगाण पडी गयु छ । संभव छे के-घणी मुश्केली छतां आ संघसूत्र-संघबंधारण ओछामा ओछु, छेवटे भगवान् श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण आदि स्थविरोए आगमोने पुस्तकारूढ करवा निमित्ते वल्लभी-वळामा संघमेलापक कयों त्यां सुधी काईक नभ्युं होय (?) । आ पछी तो जैनसंघर्नु आ बंधारण छिन्नभिन्न अने अस्तव्यस्त थई गयुं छे । आपणने जाणीने आश्चर्य थशे के-आ माटे खुद कल्पभाष्यकार भगवान् श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमणे पण पोताना जमानामां, जैन संघमां लगभग अति नालायक घमा घणा संघमहत्तरो ऊभा थवा माटे फरियाद करी छे । तेओश्रीए जणाव्युं छे के
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