________________
बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना अने निर्मन्थीसंस्थाने प्रारंभथी ज अलग करी दीधेल छे अने आजे पण बन्ने य अलग ज छ । खास कारणे अने नियत समये ज तेमने माटे परस्पर मळवानी मर्यादा बांधवामां आवी छे । ब्रह्मव्रतनी मर्यादा माटे आ व्यवस्था अतिमहत्त्वनी छे अने आ जातनी मर्यादा, जगतनो इतिहास जोता, जैन श्रमणसंघना महत्तरोनी दीर्घदर्शिता प्रत्ये मान पेदा करे तेवी वस्तु छ ।
आटलं जाण्या पछी आपणे ए पण समजी लेवु जोईए के निर्ग्रन्थसंघना महत्तरोनी व्यवस्था जेम ज्ञानक्रियात्मक मोक्षमार्गनी आराधना, रक्षा अने पालन माटे करवामां आवी छे ते ज रीते निम्रन्थीसंघनी महत्तरिकाओनी व्यवस्था पण ए ज उद्देशने ध्यानमां राखीने करवामां आवी छे। तेम ज निग्रंथसंघ अने संघमहत्तरो जे रीते एक बीजाने पोतपोतानी फरजो माटे जवाबदार छे ते ज रीते निर्मन्थीसंघ अने तेनी महत्तराओ पण पोतपोतानी फरजो माटे परस्परने जवाबदार छे । अहीं ए ध्यानमा रहे के श्रमण वीर. वर्धमान भगवानना संघमां स्त्रीसंघने जे रीते जवाबदारीभर्या पूज्यस्थाने विराजमान करी अनाबाध जवाबदारी सोपवामां आवी छे तेम ज स्त्रीसंघमाटेना नियमोनू जे रीते निर्माण करवामां आव्युं छे ते रीते स्त्रीसंस्था माटे जगतना कोई पण संप्रदायमा होवानोभाग्ये ज संभव छ।
उपर निग्रंथ-निग्रंथीसंघना अप्रगण्य पांच स्थविर भगवंतो अने स्थविराओनो संक्षेपमां परिचय कराववामां आव्यो छे, तेमनी योग्यता अने फरजो विषे जैन आगमोमां घj घणुं कहेवामां आव्यु छे । ए ज रीते निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीसंघ विषे अने तेमनी योग्यता आदि विषे पण घj घणुं कहेवामां आव्युं छे । निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीसंघ
श्रमण भगवान महावीरना निर्मन्थ-निम्रन्थीसंघमां ते ते योग्यता अने परिस्थितिने लक्षीने तेमना घणा घणा विभागो पाडवामां आव्या छे । तेम ज तेमनी योग्यता अने पारस्परिक फरजो विषे पण कल्पनातीत वस्तुनी व्यवस्था करवामां आवी छे । बाल, वृद्ध, ग्लान, तपस्वी, अध्ययन अध्यापन करनारा, वैयावृत्य-सेवा करनारा, निर्मन्थनिम्रन्थीसंघनी विविध प्रकारनी सगवडो जाळववानी प्रतिज्ञा लेनार आभिप्रहिक वैयावृत्यकरो, गच्छवासी, कल्पधारी, प्रतिमाधारी, गंभीर, अगंभीर, गीतार्थ, अगीतार्थ, सहनशील असहनशील वगेरे अनेक प्रकारना निग्रंथो हता।
उपर जणाव्या प्रमाणेना श्रमण महावीर भगवानना समस्त निर्मन्थनिम्रन्थीसंघ माटे आन्तर अने बाह्य जीवनने स्पर्शती दरेक नानी-मोटी बाबतो प्रस्तुत महाशास्त्रमा अने व्यवहारसूत्र आदि अन्य छेदग्रन्थोमा रजू करवामां आवी छे । जेम के-१ गच्छ-कुल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org