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आन्तर परिचय निम्रन्थीसंघने पराधीम ज बनाववामां आव्यो छे'। कारण के खरु जोतां श्रमण वीरवर्धमान भगवंतना संघमां कोईने य माटे मानी लीधेली स्वतंत्रताने स्थान ज नथी-ए उपर कहेवाई गयुं छे । अने ए ज कारणने लीधे निर्ग्रन्थसंघमांना अमुक दरज्जाना गीतार्थ माटे पण महत्तरपद ज मान्य करवामां आव्युं छे ।
निर्ग्रन्थीसंघमां प्रवर्तिनी, गणावच्छेदिनी, अभिषेका अने प्रतिहारी-आ चार महत्तराओ प्रभावयुक्त अने जवाबदार व्यक्तिओ मनाई छ । निर्ग्रन्थसंघमा आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक अने स्थविर अथवा रत्नाधिकवृषभनो जे दरज्जो छे ते ज दरजो निर्मन्थीसंघमा प्रवर्तिनी, गणावच्छेदिनी, अभिषेका अने प्रतिहारीनो छ । प्रवर्तिनीने महत्तरा तरीके, गणावच्छेदिनीने उपाध्याया तरीके, अभिषेकाने स्थविरा तरीके अने प्रतिहारी निर्मन्धीने प्रतिश्रयपाली, द्वारपाली अथवा ढूंके नामे पाली तरीके ओळखवामां आवती हती। आ चारे निर्गन्ध-निम्रन्थीसंघमान्य महानुभाव पदस्थ निन्थिीओ निर्ग्रन्थ. संघना अग्रगण्य संघस्थविरोनी जेम ज ज्ञानादिगुणपूर्ण अने प्रभावसंपन्न व्यक्तिओ हतीए वस्तुनो ख्याल प्रस्तुत कल्पभाष्यनी नीचेनी गाथा उपरथी आवी शकशे ।
कारण उवचिया खलु पडिहारी संजईण गीयत्था ।
परिणय भुत्त कुलीणा अभीय वायामियसरीरा ॥ २३३४ ॥ __ आ गाथामां बतावेला प्रतिहारी-पाली निर्ग्रन्थीना लक्षण उपरथी समजी शकाशे के निर्मन्थीसंघ विषेनी सविशेष जवाबदारी धरावनार आचार्या प्रवर्तिनी वगेरे केवी प्रभावित व्यक्तिओ हती ? ।
निर्ग्रन्थीसंघमां अमुक प्रकारना महत्त्वनां कार्यों ओछामा ओछां होवाथी अने ए कार्यों विषेनी नचाबदारी निर्ग्रन्थसंघना अग्रगण्य आचार्य आदिस्थविरो उपर होवाथी, ए संघमां स्थविरा अने रत्नाधिकाओ तरीकेनी स्वतंत्र व्यवस्था नथी । परंतु तेने बदले वृषभस्थानीय पाली-प्रतिहारी साध्वीनी व्यवस्थाने ज महत्व आपवामां आव्यु छ। आ पाली-प्रतिहारी साध्वीनी योग्यता अने तेनी फरजनुं प्रसंगोपात जे दिग्दर्शन कराववामां आव्यु छे (जुओ कल्पभाष्य गाथा २३३४ थी ४१ तथा ५९५१ आदि ) ते जोतां आपणने निर्ग्रन्थीसंघना बंधारणना घडवैया संघस्थविरोनी विशिष्ट कुशलतानुं भान थाय छे ।
उपर जणाव्या प्रमाणे निर्ग्रन्थीसंघनी महत्तरिकाओनी व्यवस्था पाछळ महत्वनो एक ख्याल ए पण छे के निपंथी संघनी अंगत व्यवस्था माटे तेमने डगले ने पगले परवशता न रहे । तेम ज दरेक बाबत माटे एक बीजाना सहवासमां के अतिप्रसंगमा आवQ न पड़े । अहीं ए वस्तु ध्यानमा रहे के-जैन संस्कृतिना प्रणेताओए निर्गन्थसंस्था
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