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बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना
अर्थात् कुलाचार्य कुलोपाध्याय कुलप्रवर्त्तक कुलस्थविर कुलरत्नाधिक आदि नामथी ओळखाता । गच्छो अने गच्छाचार्य आदि कुलाचार्य आदिने जवाबदार हता, कुलो गणाचार्य आदिने जबाबदार हतां, गणो संघाचार्य आदिने जबाबदार हता | संघाचार्य ते युगना समग्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीसंघ उपर अधिकार धरावता अने ते युगनो समस्त निर्मन्थ-निर्ग्रन्थीसंघ संघाचार्यने संपूर्णपणे जवाबदार हतो । जे रीते गच्छ कुल गण संघ एक बीजाने जवाबदार हता ते ज रीते एक बीजाने एक बीजानी जवाबदारी पण अनिवार्य रीते लेवी पडती हती अने लेता पण हता ।
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उदाहरण तरीके कोई निर्ग्रन्थ के निर्बंथी लांबा समय माटे बीमार रहेता होय, अपंग थई गया होय, गांडा थई गया होय, भणता - गणता न होय के भणवानी जरूरत होय, आचार्य आदिनी आज्ञा पाळता न होय, जड जेवा होय, उल्लंठ होय, निर्मन्थनिर्ग्रन्थीओमां झगडो पडयो होय, एक बीजाना शिष्य - शिष्याने नसाडी गया होय, दीक्षा छोडवा उत्सुक होय, कोई गच्छ आदिए एक बीजानी मर्यादानो लोप कर्यो होय अथवा एक बीजाना क्षेत्रमां निवासस्थानमां जबरदस्तीथी प्रवेश कर्यो होय, गच्छ आदिना संचालक संघपुरुषो पोतानी फरजो बजावी शके तेम न होय अथवा योग्यताथी के फरजोथी भ्रष्ट होय, इत्यादि प्रसंगो आवी पडे ते समये गच्छ, कुलने आ विषेनी जवाबदारी सोंपे तो ते कुलाचायें स्वीकारवी ज जोईए । तेम ज प्रसंग आवे कुल, गणने आ जातनी जवाबदारी भळावे तो कुलाचार्ये पण ते लेवी जोईए । अने काम पडतां गण, संघने कहे त्यारे ते जवाबदारीनो नीकाल संघाचार्ये लाववो ज जोईए ।
निर्ग्रन्थीसंघनी महत्तराओ
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जेभ श्रमण वीर-वर्धमान भगवानना निर्ग्रन्थसंघमां अग्रगण्य धर्मव्यवस्थापक स्थविरोनी व्यवस्था करवामां आवी छे ए ज रीते ए भगवानना निर्बंथीसंघ माटे पण पोताने लगती घणीखरी धर्मव्यवस्था जाळववा माटे महत्तराओनी एटले निर्ग्रन्थीसंघस्थविराओनी व्यवस्था करवामां आवी छे ।
अहीं प्रसंगोपात महत्तराशब्द विषे जरा विचार करी लईए । निर्ग्रन्थीसंघनी वडील साध्वी माटे महत्तरापद पसंद करवामां आत्र्युं छे, महत्तमा नहि-ए सहेतुक छे एम लागे छे अने ते ए के श्रमण वीर - वर्धमानप्रभुना संघमां निर्ग्रन्थीसंघने निर्ग्रन्थसंघी अधीनतामा राखवामां आव्यो छे, एटले ए स्वतंत्रपणे क्यारे य महत्तम गणायो नथी, के तेने माटे ' महत्तमा ' पदनी व्यवस्था करवामां आवे । ए ज कारण छे केनिर्मन्थसंघनी जेम निर्ग्रन्थीसंघमां कोई स्वतंत्र कुल-गण-संघने लगती व्यवस्था पण करवामां नथी आवी । अहीं कोईए एवी कल्पना करवी जोईए नहि के -' आ रीते तो
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